तंगी
तंगी
(लघुकथा)
रोज की तरह भोला जल्दी उठकर नित्यक्रियाओं से निवृत्त होकर विद्यालय जाने को तैयार हुआ तो देखा कि रसोई में खड़ी उसकी माँ रामा का मुंह उतरा हुआ है। कपड़े पहनते हुए भोला रसोई में गया और बोला- 'माँ, जल्दी से मुझे मेरा टिफिन पैक करके दे दो मुझे स्कूल निकलना है'। माँ ने भोला की बात का जवाब नहीं दिया। वह अपनी आर्थिक तंगी के बारे में सोच रही थी कि यह कैसी मजबूरी है, औरों की तरह पास्ता, पिज्जा तो दूर मैं अपने बेटे को पराठे भी नहीं खिला पा रही हूं। डीजल, पेट्रोल की तरह खाद्य तेलों की कीमत भी आसमान छू रही है। यह सोच ही रही थी कि भोला पुनः आकर बोला- 'माँ हो गया'? माँ सामने चार सूखी रोटियाँ रखे खड़ी थी। वह पछताते हुए बोली- बेटा, आज तो तेल, डालडा कुछ भी घर में नहीं है, वरना मैं तुम्हारे लिए पराठे बना देती'। आज अगर तुम्हारे पिताजी जिन्दा होते तो शायद ये दिन न देखने पड़ते। भोला अब तक अपनी माँ की उदासी का कारण समझ चुका था। वह तुरंत पल्टी मारते हुआ बोला- 'अरे माँ ! सूखी रोटी ही रखो, वैसे भी तेल की तली चीजें, मोटापा बढ़ती हैं, बहुत नुकसान करती हैं, ऐसा कल स्कूल में हमारे सर जी बता रहे थे'। इतना कहते हुए वह खुशी- खुशी अपने स्कूल के लिए निकल गया, और उसकी माँ भी काम पर जाने की तैयारी करने लगी।
