Kameshwari Karri

Tragedy

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Kameshwari Karri

Tragedy

तलाक़ कोई रोग नहीं है

तलाक़ कोई रोग नहीं है

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उमादेवी की दो लड़कियाँ थीं। वह कॉलेज में इंग्लिश लेक्चरर थी। उसके पति विजय जूनियर कॉलेज में प्रिंसिपल थे। बड़ी लड़की अनु ने भी इंग्लिश में रिसर्च किया। छोटी बेटी अरुणा ने एम बी ए किया और कॉलेज में ही नौकरी करने लगी। माता-पिता को अब बच्चों के लिए रिश्ते देखने थे। 

खाने की टेबल पर पिता ने अनु से कहा - बेटा हम सोच रहे हैं कि आपके लिए रिश्ते ढूँढना शुरू करें। 

अनु बोली- आप लोग मुझ पर ग़ुस्सा नहीं होंगे तो मैं एक बात बताना चाहती हूँ। 

माँ ने कहा- क्या हुआ है किसी को चाहती हो क्या? बोलो हम बात कर लेते हैं। हमें कोई एतराज़ नहीं है। 

अनु ने एक तमिल लड़के तरुण के बारे में बताया कि हम दोनों शादी तो करना चाहते हैं पर हमें समय चाहिए। आप अरुणा की शादी करा दीजिए। 

उमा बोली- अनु लोग क्या कहेंगे कि बड़ी बेटी की शादी के पहले छोटी की करा रहे हैं। बड़ी बेटी में कुछ खोट होगा इसलिए उसकी शादी नहीं हो रही है। 

अनु ग़ुस्से में आकर कहने लगी आप लोगों के बारे में सोचते रहोगे या हमारे बारे में भी सोचेंगे मुझे जो कहना था। मैंने तो कह दिया है और हाँ मुझे अहमदाबाद जाना है क्योंकि मेरी वहाँ नौकरी लगी है और मैं कल ही निकल रही हूँ । जब मैं और तरुण शादी की बारे में सोचेंगे तब आप लोगों को बता दूँगी उस समय आप उनके माता-पिता से मिलने आ जाना। कहकर अपने कपड़े पैक करने चली गई। 

उमा और विजय ने सोच विचार करके अरुणा के लिए रिश्ते देखने लगे। वह पढ़ी लिखी नौकरी करने वाली सुंदर लड़की थी। बहुत से रिश्ते आए परंतु कुछ माता-पिता को कुछ ख़ुद अरुणा को पसंद नहीं आए। अंत में उमा की बहन ने एक रिश्ते के बारे में बताया। सबको यह रिश्ता पसंद आ गया। वह लड़का प्रतीक दो भाई थे। वह पढ़ा लिखा था सुंदर नहीं था पर अच्छी नौकरी कर रहा था। सास नहीं थी सिर्फ ससुर थे वे भी किसी एन जी ओ में कार्यरत थे।अरुणा और प्रतीक की धूमधाम हो गई। उमा विजय निश्चिंत हुए कि चलो एक लड़की का ब्याह तो अच्छे घर में हो गया है। दूसरी जब हरी झंडी दिखाएगी उसकी भी शादी करा देंगे तो रिटायर लाइफ़ निश्चिंत होकर बिताएंगे। कुछ दिन तो आराम से गुजर गए। एक दिन सुबह सुबह अरुणा की कॉलेज से फ़ोन आया कि अरुणा शादी के बाद से कॉलेज नहीं आ रही है और फ़ोन भी बंद आ रहा है क्या बात है। अरुणा के कॉलेज के लेक्चरर उमा को अच्छे से जानते थे। उमा को बुरा लगा कि अच्छी खासी नौकरी इस लड़की ने क्यों छोड़ दिया है और मुझे बताया भी नहीं है अरुणा को फ़ोन किया कि कारण पूछेंग अभी तो शादी हुए चार महीने ही हुए हैं । अरुणा से पूछा आख़िर बात क्या है। कितना भी पूछो पर वह बता ही नहीं रही थी। अब तो जब फ़ोन करो रोती थी कि प्रतीक अच्छा नहीं है। क्यों अच्छा नहीं है क्या बात है मारता पीटता है या पियक्कड़ है कहती है नहीं मारता पीटता तो नहीं था पर उसे किसी से भी बात करने नहीं देता था। अरुणा की इंग्लिश अच्छी थी यह उससे बर्दाश्त नहीं होती थी। प्रतीक पढ़ा लिखा था पर उसके पास कम्यूनिकेशन स्किल नहीं थे। इसीलिए उसे अरुणा को लेकर गिल्टी फ़ीलिंग होती थी। एक बार उसके दोस्त राजन ने कहा कि अरुणा से अच्छी इंग्लिश सीख ले बस उस दिन से अरुणा की हालत ख़राब हो गई थी। अपने ही घर में वह हाउस अरेस्ट हो गई थी। जब अरुणा के दोस्तों को पता चला तो उन्होंने उसे सलाह भी दिया था कि तू तो पढ़ी लिखी है नौकरी कर सकती है प्रतीक को छोड़ दे या तलाक़ दे दे और आराम की ज़िंदगी जी ले। इस घुटन भरी ज़िंदगी से अपने आप को आज़ाद कर ले। उसे मालूम है कि माता-पिता से तलाक़ की बात हज़म नहीं होगी। फिर भी अपने दोस्तों की बातें सुनकर बहुत ही हिम्मत जुटाकर उसने माता-पिता से कहा कि वह तलाक़ लेना चाहती है। उनके ऊपर मानो गाज गिरी दोनों एक-दूसरे को देखने लगे फिर दोनों चुपचाप अपने रूम में चले गए और दस मिनट बाद बाहर आए। बहुत ही सब्र के साथ उन्होंने अरुणा को समझाया बेटा लोग तो बोलेंगे ही तलाक़ ले लो अपनी ज़िंदगी जी लो पर तुम नहीं लेना। हम समाज में अपना मुँह नहीं दिखा पाएँगे दुनिया भर में हमारी बदनामी हो जाएगी। हम तो तुम्हें एक ही सलाह देते हैं तुम वहीं रहोहमारी इज़्ज़त की धज्जियाँ मत उड़ाओ एक तो तुम्हारी बहन ने शादी नहीं की थी और अब तुम्हारा यह हाल हम क्या करें। माता-पिता की बात मानकर अरुणा हाउस वाइफ़ बनकर रह गई। प्रतीक ने उसे आड़े हाथों लेना शुरू किया था उसे मालूम हो गया था कि अरुणा के माता-पिता क्या चाहते हैं। इस समझौते भरी ज़िंदगी में ही अरुणा का बेटा हो गया। बेटा जैसे जैसे बड़ा हो रहा था पिता के नक़्शे कदमों पर चलने लगा। पिता ने बेटे को भी अपने समान बना दिया था। माँ की वह भी इज़्ज़त नहीं करता है। अरुणा को अब दोनों की बातें सुननी पड़ती हैं। अरुणा ने अपने मायके और ससुराल दोनों से नाता तोड़ दिया। माता-पिता देखने आना चाहते हैं तो भी मना कर देती है। अब वह किसी के भी सामने अपने दर्द को दिखाना नहीं चाहती थी। 

इधर अनु और तरुण का ब्रेकअप हो गया है और वह अभी भी अहमदाबाद के एक कॉलेज में नौकरी करती है। उसने माता-पिता को बता दिया कि अब वह शादी नहीं करेगी। 

अरुणा पति के साथ ही रहती है परंतु पति अपना खाना बनाकर खाता है और वह खुद अपने लिए बना लेती है। बेटे की मर्ज़ी हुई तो घर में खाता है नहीं तो नहीं। वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है माता-पिता के बारे में उसे सब मालूम है जिसका वह फ़ायदा उठाता है। 

अगर समय रहते दुनिया के बारे में न सोचकर अरुणा के माता-पिता ने उसे तलाक़ लेने दिया होता तो अरुणा की ज़िंदगी अलग मोड़ पर होती थी। आज इतने सालों बाद भी माता-पिता को सुकून नहीं है और न ही अरुणा को। हम माता-पिता को अपने बच्चों के जीवन उनकी ख़ुशियों के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि लोगों को तो कोई मतलब ही नहीं है जब दूसरा केस मिला तो पहले वालों को छोड़कर दूसरों के बारे में बातें करते हैं उनका काम ही है बातें करना फिर ऐसे लोगों के बारे में सोच कर हम अपनी बेटियों की ज़िंदगी को नरक क्यों बनाए !!!



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