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तीर्थाटन

तीर्थाटन

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कमरे में शांति थी, सिर्फ घड़ी की टिक टिक सुनायी दे रही थी। कालबेल बजी तो निखिल ने कमरे में प्रवेश किया। अपने लेपटाप के बैग को एक ओर रखकर सोफे पर पसर गया।

सौम्या ने चाय की प्याली आगे बढ़ाते हुए कहा, आज गाँव से माँजी और बाबूजी का फोन आया था।

निखिल ने पूछा - क्या कह रहे थे ? आने के बारे में तो नहीं कह रहे थे।

सौम्या बोली- नहीं, कह रहे थे कि अभी खेती किसानी में काम है, अभी नहीं आ सकेंगे। मैंने भी अपनी बात का पुछल्ला छोड़ दिया कि अभी बच्चों के एग्जाम नहीं हुए हैं।

कुछ इधर उधर की बात के बाद, सौम्या ने एक सवाल निखिल के सामने दाग दिया, इस बार हम एग्जाम के बाद कहाँ जा रहे हैं।

निखिल ने कहा कि इस बार दक्षिण भारत का टूर बनाया है.. इसमें बालाजी व रामेश्वरम के साथ और भी जगह है। मैंने टिकटें भी बुक करवा ली है।

सौम्या बोली- वो तो ठीक है, लेकिन सूने घर की रखवाली के बारे में क्या सोचा है..

निखिल ने तपाक से कहा- गाँव से माँजी व बाबूजी आ जायेंगे ना। सौम्या व निखिल के चेहरे पर मुस्कान आ गयी। पेण्डुलम घड़ी ने रात्रि के नौ बजे के घंटे बजाये... कमरे में पुनः शांति हो गयी...


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