Kumar Vikrant

Comedy

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तीन गुलाम/आजादी

तीन गुलाम/आजादी

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'दिलदार सिंह आज हमे तुम्हारे तबेले में बेगार करते हुए पूरे तीन साल हो चुके है, कब दोगे हमे आजादी?' झम्मन लाल तबेले के मालिक दिलदार सिंह का नाम लेते हुए बोला।

हमेशा की तरह धीरा और बीरा ने झम्मन लाल को चढ़ा कर दिलदार सिंह से भिड़ा दिया था और खुद दूर खड़े तमाशा देख रहे थे।

'अबे किस बात की आजादी चाहिए तुम्हे? तीन टाइम डट कर खाते हो, महीने की पगार भी लेते हो। अबे मैं तो तुम्हे दरोगा लक्कड़ सिंह के चंगुल से छुड़ा कर लाया था, तुमने भरे बाजार में जो मारपीट की थी उसकी सजा तो मिलती सिर्फ छह महीने लेकिन लक्कड़ सिंह तुम तीनो पर चोरी-चकारी के सारे अनसुलझे केस लाद कर कम से कम पाँच साल के लिए जेल भेजता; सड़ जाते तुम तीनो जेल में पड़े-पड़े........आजादी चाहिए तुम्हे? लो आजाद किया अब दफा हो जाओ यहाँ से। अब कहीं फँसो तो मुझे गलती से भी फोन न करना।' दिलदार सिंह गुर्रा कर बोला।

सलाम साब कहकर तीनों तबेले से ऐसे भागे जैसे उनके पीछे भूत लगे हो।

'देख बे झम्मन लाल सारी मुसीबतो की जड़ तुम ही हो, उस दिन एक्ट्रेस जूली के चक्कर में हमसे न भिड़ता तो न हम दरोगा लक्कड़ सिंह के हाथ चढ़ते न ही वो हमारी आजादी के बदले दिलदार सिंह से पैसा लेता और न ही हमे उस पैसे की बदौलत हमे दिलदार सिंह के तबेले में बेगार करनी पड़ती। अब हम से दूर हो जा हमारी आँखों से; हमारे आस-पास भी नजर आया तो तेरे हाथ पैर तोड़ देंगे।' धीरा ने झम्मन लाल को घूरते हुए कहा।

'अबे मर गए हाथ पैर तोड़ने वाले.......औकात है तो हाथ लगा कर दिखाओ।' झम्मन लाल धीरा की गिरेबान पकड़ कर बोला।

'उकसा मत बेटे हम तेरे से भिड़ने वाले नहीं है.......' बीरा हँस कर बोला।

'अबे जाओ अपना रास्ता नापो।' कहकर झम्मन लाल अपनी राह चल पड़ा। बदकिस्मती से धीरा और बीरा को भी उसके पीछे चलना पड़ा। अभी वो मुश्किल से एक किलोमीटर भी नहीं चले होंगे कि उनकी बगल से एक तेज रफ़्तार वैन निकली और वैन से एक बड़े साइज का सूटकेश गिरा या गिराया गया। वो तीनो झपट कर उस सूटकेश के पास गए। गिरने से सूटकेश खुल गया था और सूटकेश से ५००-५०० रूपये की गड्डिया बाहर निकल पड़ी। नोटों के ढेर पर तीनो टूट पड़े और उन नोटों को अपनी जेबो में भरने लगे लेकिन नोटों की गड्डिया इतनी ज्यादा थी कि उन्हें अपनी कमीजें उतार कर गड्डियों को उनमे भरकर पोटलियां बांधनी पड़ी।

अंत में उन्होंने खाली सूटकेश सड़क से दूर फेंक दिया और अपनी नोटों की पोटलिया उठा कर शहर की तरफ चल पड़े, क्या तकदीर थी उनके पास नोट थे लेकिन मजबूरी में पैदल चलना पड़ रहा था।

तकदीर की मार तभी उनकी बगल से दरोगा लक्कड़ सिंह की खटारा जीप निकली और उनसे कुछ दूर जाकर रुक गई।

दरोगा लक्कड़ सिंह जीप से उतरा और उन्हें घूरता हुआ बोला, 'क्यों बे लफंगो नंगे कहाँ जा रहे हो, और इन पोटलियों में क्या है?'

'दरोगा जी दिलदार सिंह ने हमे आजाद कर दिया है, हमारे पास बैग नहीं थे तो हमने अपनी जरूरत का सामान अपनी शर्ट में भर लिया है।' झम्मन लाल थोड़ा सकपकाते हुए बोला।

'बेटे मुझे तो कुछ और ही माजरा दिख रहा, पकड़ लो बे इन लफंगो को और इनकी पोटलियों की तलाशी लो, लगता है दिलदार सिंह के तबेले से कुछ चुरा कर लाए है।' दरोगा लक्कड़ सिंह ने अपने साथ आये सिपाहियों से कहा।

आनन-फानन में उन तीनो की तलाशी ली गई और उनकी पेंटो की जेबो से और पोटलियों से नोट बरामद कर लिए गए।

'हुजूर ये तो कहीं डकैती मार के आए है; इनके पास तो ढेरो नोट की गड्डियां है।' एक सिपाही ने जोर से कहा।

'अच्छा; देखूं तो सही कितना माल है........अबे ये तो सब जाली नोट है........दिलदार सिंह के तबेले की आड़ में तुम नकली नोटों की स्मगलिंग करते हो, पकड़ लो सा..... को इस बार तो लंबे नपोगे बेटा।' दरोगा लक्कड़ सिंह गुर्रा कर बोला।

एक घंटे बाद धीरा, बीरा और झम्मन लाल को हवालात में उलटे टांग कर उन पर लट्ठ बरसाए जा रहे थे ताकि वो नकली नोट छापने वाले गैंग का पता बता दे और उनकी बैग सड़क पर पड़ा मिलने की बात को बिलकुल नहीं माना जा रहा था।

'हुजूर हमारे मालिक को हमारी गिरफ्तारी की खबर कर दो।' पिटते-पिटते झम्मन लाल रोते हुए बोला।

'कौन है बे तुम लोगो का मालिक?' दरोगा लक्कड़ सिंह गुर्रा कर बोला।

'दिलदार सिंह है हुजूर।' बीरा रोते हुए बोला।

'अबे वो तो शरीफ आदमी है उसे नोटों की तस्करी में लपेटते शर्म नहीं आ रही तुम लोगो को?' दरोगा लक्कड़ सिंह उन तीनो पर लट्ठ बरसाते हुए बोला।

'हुजूर न हमारा, न हमारे मालिक दिलदार सिंह का इस नोटों के झंझट से कोई लेना-देना है। हम तो दिलदार सिंह को सिर्फ इस लिए याद कर रहे है ताकि हमेशा की तरह वो हमे इस झंझट से बचा सके।' धीरा ने फुक्का फाड़कर रोते हुए कहा।

'बेटा आज तक तुम लोग सिर्फ मारपीट के चक्कर में अंदर हुए हो लेकिन ये जाली नोटों का धंधा? इसमें तो तुम लोग कम से कम दस साल के लिए जेल जाओगे.......और दिलदार सिंह भी तुम्हें ने बचा सकेगा।' दरोगा लक्कड़ सिंह अपना हाथ रोकते हुए बोला।

'हुजूर दरख्वास्त है एक बार हमारी गिरफ्तारी की खबर हमारे मालिक दिलदार सिंह को कर दो; उसके बाद चाहे हमे फाँसी चढ़ा देना।' तीनो ने एक सुर में रोते-रोते कहा।

'चलो बे नीचे उतारो इन्हे, अब इनकी मरम्मत शाम की की जाएगी। इतना जोर दे रहे है इसलिए दिलदार सिंह को भी इनकी गिरफ्तारी की खबर दे दो।' दरोगा लक्कड़ सिंह अपना पसीना पोंछते हुए बोला।

दिलदार सिंह अगले दिन आया उस समय तक उन तीनो को तीन बार रुई की तरह धूना जा चुका था और जाली नोटों के असली तस्कर भी गिरफ्तार किये जा चुके थे। उन तीनो के पास तो खोटा सिक्का भी नहीं था इसलिए दरोगा लक्कड़ सिंह उनकी एवज कुछ पैसा दिलदार सिंह से ऐंठने के चक्कर में था।

'दरोगा जी अगर इन तीनो के चक्कर में मुझे बुलाया है तो बहुत गलत किया, इन्होने क्या किया, क्यों किया और इनके साथ क्या होगा इससे मेरा कोई मतलब नहीं है।' दिलदार सिंह दरोगा लक्कड़ सिंह के सामने बैठते हुए बोला।

'सुन लिया बे तुम तीनो ने, अब जेल जाने की तैयारी करो।' दरोगा लक्कड़ सिंह बोला और सिपाहियों से उन्हें छोड़ देने को कहा।

सिपाहियों से छूटते ही तीनो ने दिलदार सिंह के पैर पकड़ लिए और रो-रो कर उन्हें बचा लेने की फरियाद की।

'बेटे तुम तीनो नमक हराम हो जिस थाली में खाते हो उसी में छेद करते हो। मैं हर बार तुम्हे बचा लेता था लेकिन इस बार तो तुम्हारा कारनामा ऐसा है कि तुम्हे बचाने से मेरे ऊपर भी कलंक लग जाएगा।' दिलदार सिंह उठते हुए बोला।

'बचा लो मालिक, नहीं तो जेल में सड़ कर मर जाएंगे........' तीनो जोर-जोर से रोते हुए बोले।

'क्यों दरोगा जी कुछ उम्मीद है इनके बचने की?' दिलदार सिंह ने दरोगा लक्कड़ सिंह से पूछा।

'दिलदार सिंह नोटों के असली तस्कर तो सुबह पकडे गए, लेकिन नोट तो इनके पास से भी बरामद हुए कौन जाने ये भी उन तस्करो के साथी हो?' दरोगा लक्कड़ सिंह उन तीनो की तरफ देखते हुए बोला।

'दरोगा जी ये तीनो मक्कार तो है और नोटों की तस्करी भी कर सकते है लेकिन मेरे तबेले में इन्हे ऐसा कारनामा अंजाम देने का मौका नहीं मिला होगा, बहरहाल मैं इन्हे छुड़ाने को तैयार हूँ लेकिन इस रिहाई की कीमत होगी मेरे तबेले में दो साल तक बिना दाम के काम।' दिलदार सिंह बोला।

'हुजूर हम तीनो तेरे गुलाम है बस इस बार बचा ले फिर दो साल नहीं तीन साल तक तेरी गुलामी कर लेंगे।' वो तीनो दहाड़े मारकर रोते हुए बोले।

हमेशा की तरह दरोगा लक्कड़ सिंह ने दिलदार सिंह से तीनो की रिहाई का दाम पचास हजार रूपये माँगा लेकिन अंत मामला पाँच हजार पर मामला सैटल हुआ वो भी उधार में।

वो तीनो हवालात से निकल कर सीधे दिलदार सिंह के तबेले में पहुँचा और बिना किसी के कहे गोबर और चारे के टोकरे ढोने लगे।


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