तीन बजे
तीन बजे
दोपहर के तीन बजते ही उसके कानो में दरवाजे की घंटी सुनाई दी। मेघा ने जैसे ही दरवाजा खोला तो सामने अपनी सबसे बड़ी ननद तनु को पाया।देखते ही उसका माथा ठनक गया। अभी - अभी तो वो रसोई का काम खत्म करके चुकी थी और अब फिर से चाय बनानी पड़ेगी। खैर अपने चेहरे पर एक मधुर सी मुस्कान बिखेरती वो चाय ले ही आई।तनु दीदी के आने का कोई ठोस कारण उसे समझ ही नहीं आया। दूसरे दिन फिर वही दोपहर के तीन बजते ही दरवाजे की घंटी बजी। दरवाजा खोला तो सामने अपनी दूसरे नंबर की ननद मधु को खड़े पाया।उनकी आवभगत में भी उसकी सारी दोपहर खराब हो गई।तीसरे दिन फिर वही दोपहर के तीन बजते ही दरवाजे की घंटी बजी। दरवाजा खोला तो सामने अपनी तीसरे नंबर की ननद पिंकी को खड़े पाया। बेचारी मेघा करती तो क्या करती .... अपने बीमार ससुर की वजह से उसे अपनी तीनो ननदों को जबरदस्ती झेलना पड़ा। रात को बिस्तर पर अपने पति शैलेश से वो बस अपनी थकान का रोना ही रोती रही।शैलेश अपने काम में व्यस्त रहते हुए भी उसकी सभी बातों को ध्यान से सुन रहा था। अचानक उसने सवाल किया , " कितने बजे आई थी तीनो ? " मेघा , " तीन बजे।"शैलेश , " और पापा ने अपनी आखिरी साँस कब ली थी ?मेघा , " तीन बजे।"शैलेश , " ओह , आखिर ये तीनो अपनी आखिरी चाल चल ही गई। मेघा , " क्या मतलब ... मैं समझी नहीं ? शैलेश , " अरे यही कि इन तीनो का तीन दिन लगातार एक समय पर आने का मकसद ही यही था कि पापा से अपनी पुश्तैनी जमीन अपने नाम करा लें और फिर ठीक तीन बजे उन्हे इस संसार से मुक्ति दे दें।मेघा , "जमीन का लालच इतना बुरा होता है .... ये मैने सपने में भी कभी नहीं सोचा था। "