थर्ड जेंडर
थर्ड जेंडर
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दिसंबर की ठिठुरती रात थी और स्नेहा स्टेशन पर अपने गाड़ी का इंतजार कर रही थी। बिहार से जयपुर जाने के लिए सीधी कोई रेल नहीं थी। उसे दिल्ली से रेल बदलना था। वो जल्दी से जल्दी जयपुर पहुंचना चाह रही थी जहां अपने छोटे से बच्चे को अपनी ननद के पास छोड़ वो बिहार गई थी। पति भी जयपुर में नहीं थे। वो नौकरी के लिए दूसरे शहर में थे। दोनों दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मिलने का प्रोग्राम बनाये थे जहां उसे रेल में बिठा फिर पति अपने शहर के लिए निकल जाते। पर उस दिन रेल देर से चल रही थी और पति को भी दूर जाना था तो उसने उन्हें चले जाने के लिए कहा। पति को बस से जाना था इसलिए उनका निकलना जरूरी था नहीं तो बाद में बस नहीं मिलती। पर वो पत्नी को ऐसे अकेले छोड़ कर जाने में हिचकिचा रहा था। उनके सामान को उठाने वाले कुली ने दोनों के असमंजस को देख पति को आश्वासन दिया कि वो स्नेहा के सामानों को अच्छी तरह जमा देगा और महिला बोगी में बिठा देगा ताकि उसे कोई दिक्कत नहीं होगी।
पति के जाने के एक घंटे बाद रेल के आने पर कुली ने अपने कहे अनुसार महिला बोगी में सामान रख उसे बैठा दिया और जाते जाते बगल के बोगी में बैठे टिकट कल्कटर के बारे में भी बतलाता गया। कोई दिक्कत होने पर उससे संपर्क करने की बात कह वो चला गया। पूरे बोगी में अकेली थी वो। उसने अपने बैग से किताब निकाल पढ़ना शुरू ही किया था की एक पति पत्नी का जोड़ा उस बोगी में चढ़ा और उसके सामने वाले सीट पर बैठा। उसने उन्हें देख सोचा शायद पत्नी जा रही है और पति उसे बिठाने आया है। पर फिर दोनों के पास कोई सामान नहीं है देख थोड़ी असमंजस में आई। पर फिर ज्यादा ध्यान नहीं दे अपने किताब में लग गई। जब रेल चलनी शुरू हुई तब उसने ध्यान दिया की पुरुष भी वहीं बैठा है और जाने का उसका कोई इरादा नहीं है। दोनों पति पत्नी के व्यवहार भी संशकित करने वाली लग रही थी उसे। उसने उस स्त्री से पूछा उसके पति क्यों महिला बोगी में हैं? महिला कुछ स्पष्ट जवाब नहीं देकर बातों को घुमाने लगी। स्नेहा थोड़ी देर तो वहां बैठी फिर अपने को असुरक्षित महसूस करने लगी। वो धीरे से उठ दूसरे बोगी में बैठे टिकट कलेक्टर को बुलाने चली गई। वहां जा कर उसने अपनी समस्या उन से बतलाई। वो तुरंत उठ उसके साथ आये और दोनों पति पत्नी को डांट कर जनरल बोगी में बैठने को कहा। टिकट कलेक्टर के डांटने पर पति तो चला गया पर पत्नी बैठी रही वहीं पर। टिकट कलेक्टर के जाने के थोड़ी देर बाद स्त्री उठकर बाथरूम जाने के बहाने से पति को बुला लाई और उसे उपर सामान रखने की जगह सुला दी। स्नेहा अब बुरी तरह डर गई और जल्दी से टिकट कलेक्टर के पास जा उससे कहीं सुरक्षित जगह बैठने की जगह देने के लिए आग्रह करने लगी। तब टिकट कलेक्टर ने उसे आश्वासन देते हुए बोला "आप डरें नहीं। आपको जयपुर तक सुरक्षित पहुंचाना मेरी जिम्मेदारी है। मैं अभी आपके सुरक्षा का इंज़माम करता हूँ।" ये कहने के बाद उसने उस बोगी में सफ़र कर रहे हिजड़ों से स्नेहा के साथ महिला बोगी में बैठने के लिए कहा। पहले तो उन्हें समझ नहीं आया कि ऐसी आग्रह उनसे क्यों कि जा रही है। फिर जब टिकट कलेक्टर ने उन्हें पूरी बात बताई तो उनकी पूरी टीम जो चालीस लोगों की थी और वो सब अजमेर जा रही थीं तुरंत स्नेहा के साथ उस बोगी में बैठने को तैयार हो गई। अब वो सब स्नेहा के साथ महिला बोगी में आ गई और उस जोड़े को वहां से जाने के लिए मजबूर कर दी।
उस रात दिल्ली से जयपुर तक के सफ़र में स्नेहा ने उन सब के अलग रूप को देखा। सब एक दूसरे का ख्याल रखते हुए सफ़र कर रही थी। उनका अपना परिवारिक ढांचा था। ये सफ़र पिकनिक सा हो गया था। जितनी सुरक्षित वो उनके बीच महसूस कर रही थी उतनी वो अपने जेंडर के बीच भी नहीं कर पाती । उस पांच घंटे के सफ़र में स्नेहा ने उन सब से उनकी ज़िंदगी के अनेक अनछुए पहलुओं को जाना। जिन्हें समाज कभी स्वीकार नहीं करता उनके अंदर कितनी मानवता है तब और स्पष्ट हो गया जब रेलवे स्टेशन पर उन्होंने अपने जानकर ऑटो रिक्शा चालक से स्नेहा को सुरक्षित घर पहुंचाने को कह स्नेहा को भेजा। घर जाते जाते वो सोच रही थी र्थड जेंडर है कौन? वो या हम? इसे पूरे सफ़र में स्नेहा ने अपने आप को र्थड जेंडर ज्यादा महसूस किया। जितनी मानवता उनमें था वो कैसे समाज के लिए अस्वीकार हो सकते हैं? अस्वीकार तो वो है जो इन्हें स्वीकार नहीं करें। ये तो समाज के सबसे कोमल पहलू हैं जिन्हें आजतक किसी ने समझा ही नहीं पूरी तरह से।
ऐसे कई उधेड़बुन में स्नेहा कब घर पहुंच गई उसे पता भी नहीं चला। ऑटो रिक्शा से उतरते हुए उसने चालक को धन्यवाद देते हुए उससे उसकी तरफ से उन सब को धन्यवाद देने के लिए कह घर के अंदर अपने बच्चे को अपने कलेजे से लगाने चल दी। साथ ही साथ खुद से एक वादा करी अब कभी उन्हें हिकारत की नज़रों से नहीं देखेगी। उन्हें हमेशा सम्मान से देखेगी।