Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Leena Jha

Others

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सुधा

सुधा

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किरण नये शहर में कॉलेज की तरफ से सेमिनार में आई थी। कुछ और साथी भी थे। सभी रिशेप्शन पर अपने अपने कमरे की चाबी लेने के लिए खङे थे तभी किरण ने बर्षो बाद वो जानी पहचानी आवाज सुनी। उस आवाज को सुनते ही उसकी नजरें उस शख्स को ढ़ूढ़ने लगीं। लॉबी के एक कोने में कुछ लोगों के साथ वो खङी बातें कर रही थी। शायद वो यहां घुमने आई थी। किरण के कदम अपने आप उसकी तरफ चलते चले गए। वहां जा किरण ने हल्के आवाज में पुकारा.... सुधा!!!

अपने नाम की पुकार को सुनते ही सुधा पहचान गई थी उस आवाज को। इस तरह तो केवल किरण ही बुलाती थी उसे। रिश्ते में भतीजी थी किरण पर हम उम्र थीं दोनों और पक्की सहेलियां थी ।उन दोनों के पिता भी रिश्ते से ज्यादा अपनी दोस्ती को मानते थे।

 किरण के पिता सरकारी दफ्तर में अफसर थे तो सुधा के पिता सरकारी कॉलेज में प्रोफेसर थे।दोनों साथ पढ़ें थे । लेकिन सोच में बहुत अतंर था दोनों के। किरण के पिता बेटा या बेटी शिक्षित होनी जरूरी है मानते थे पर सुधा के पिता स्त्री को हमेशा हीनभाव से देखते ।बेटीयों की शिक्षा भी उन्होंने अपने हिसाब से करने दिया। किरण के पिता ने उसकी शादी भी इन शर्तों पर की थी कि उसकी पढ़ाई नहीं रोकी जायेगी ...नौकरी करना ना करना उसकी मर्जी होगी।

बारहवीं के परीक्षा के बाद किरण गांव गई थी चाचा की शादी में तब उनकी आखिरी मुलाकात थी। किरण का गांव जाना उसके बाद बंद हो गया। दोनों सहेलियों में चिठ्ठी के आदान प्रदान का सिलसिला रहा पर सुधा के पिता की सख्ती की वजह से वो संपर्क भी नहीं रहा।

वर्षों के अतंराल बाद मिल रही थी दोनों। दोनों अपने अपने मन की बातें एकदूसरे से कह देना चाहती थी।किरण ने सुधा से पुछा.....


" सुधा तुम यहां कैसे आई हो घूमनें ?"


  सुधा.... "मेरे पति सेमिनार में शामिल होने आये हैं। तुम कैसे यहां आई हो ? अकेली हो या पति भी साथ हैं?"


किरण.... 'मैं भी सेमिनार के लिए आई हूं और अकेले तो नहीं हूं कॉलेज के साथी साथ हैं हां पति नहीं हैं साथ।"


दोनों अभी शुरू ही कीं थी अपनी बातें कि किरण के साथियों ने उसे आवाज लगाना शुरू कर दिया। 


 "किरण ..जल्दी आओ यार ...हमारे कमरों की चाबी मिल गई है। चलो जल्दी ।"


किरण ने उन्हें रूकने का इशारा कर सुधा से कहा.... "सुधा तुम इसी होटल में रुकी हो ना!! "


सुधा के हां कहने पर किरण ने उससे उसके कमरे का नम्बर पुछा और आधे घंटे में उसके कमरे में मिलने का कह अपने साथियों की तरह बढ़ गई।

किरण के आत्मविश्वास से भरे बढ़ते कदमों को देख थोङी जलन हो रही थी सुधा को और वो उसे जाते हुए र्निमिमेष देख रही थी। तभी उसके पति ने उसके कांधे पर हाथ रख उसे पुछा...

 

"सुधा कौन थी वो ? पहली बार किसी से ऐसे बात करते देख रहा हूँ तुम्हें।"


सुधा जैसे सपने से जगी हो वैसे ही मनःस्थिति में होंठों पर हल्की मुस्कान के साथ कहा... "वो किरण है!!"

 

पति ने कई किस्से सुन रखे थे किरण के सुधा के मुंह से।


 " अच्छा... यहां अकेली क्या कर रही है?"


सुधा..."वो भी सेमिनार के लिए आई है।बोल के गई है आधे घंटे में हमारे कमरे में मिलने आयेगी।"


वाह..".ये तो बहुत अच्छा हुआ। तुम्हारी उससे मिलने की इच्छा भी बहुत थी। देखा तुम आना नहीं चाह रही थी और आते ही बिछङी सहेली मिल गई तुम्हें।"


पति की बातें सुन सुधा हसंने लगी। फिर दोनों पति पत्नी दोस्तों से मिल अपने कमरे की तरफ चल दिय। किरण के आने का समय जो हो रहा था। किरण के आने की सोच सुधा थोङी घबरा भी रही थी। 


'जाने कितनी बदल गई हो किरण?"

"नौकरी करती है अब ..जाने उसकी दोस्ती उसे अब महत्वपूर्ण हो कि नहीं?"


 उसके बैचेनी को समझ पति ने सुधा को समझाया...."परेशान मत हो सुधा! किरण तुम्हें अभी भी अपनी सहेली समझती है। आखिर क्यों वो तुम्हें पुकारती यदि नहीं चाहती तो?"


पति की बातें सुन सुधा को थोङी तसल्ली मिली.कमरे में पहुंच कर सुधा किरण इंतजार का करने लगी।थोड़ी देर में दरवाजे की दस्तक ने किरण के आने की बात पक्की कर दी। सुधा ने झट से दरवाजा खोल किरण का हाथ पकड़ उसे अंदर खींच लिया और कहने लगी...


"नीचे मैं तुझे देख इतनी खुश हो गई की अपने पति से परिचय करवाना भुल गई। इन से मिल मेरे पति प्रमोद मिश्रा । ये प्रोफेसर हैं । फिर पति के तरफ देख कहने लगी...ये किरण है ..मेरी एकमात्र सहेली।" 

सुधा के परिचय करवाने के बाद तीनों एकदूसरे से बातों में लग गये। एक दूसरे का हाल जानने के बाद किरण और प्रमोद अपने अपने विषय के बारे में बातें करने लगे ।सेमिनार से जुङी बातें होने लगी दोनों में। देखते देखते रात के खाने का समय हो गया । वो तीनों साथ खाने के लिए नीचे आये जहां बाकी लोगों से भी परिचय का आदानप्रदान होने लगा । जब सभी अपने अपने कमरे के लिए जाने लगे तब सुधा ने किरण से पुछा...


"किरण तेरे साथ कमरे में कोई और भी है?"


किरण के इंकार करने पर सुधा अपने पति से बोलने लगी...


"आज रात मैं किरण के कमरे में रूक जाऊं...मुझे उससे बहुत बातें करनी है।"


प्रमोद जान रहे थे सुधा अपने मन की बात किसी से नहीं करती। किरण ही है जिससे सुधा अपनी बात कहना चाहती है।उन्होंने हंसते हुए कहा...


"हां भाई...अब तो आप हमें कहाँ पुछेंगीं ..सहेली जो मिल गई है.. जाईये.. वैसे भी मुझे सुबह सेमिनार में जो पेपर देना है उसकी तैयारी करनी है। आप निश्चिंत हो कर जाइए


किरण दोनों पति पत्नी की आपस की बात सुन प्रमोद की समझदारी पर खुश हो रही थी। उसे लग रहा था कि उसकी दोस्त खुश है अपनी जिंदगी में।

किरण और सुधा किरण के कमरे में रात्रि विश्राम के लिए कपङे बदल आराम से बिस्तर पर बैठ गई। तब किरण ने अपने अंदर के सवालों को सुधा के सामने रखा...


"अब बतला सुधा कैसी है तु?"


सुधा जैसे किरण के पुछने की राह देख रही थी। बर्षो से अपने अंदर दबा रखा हर दर्द आज वो किरण को कह हल्का हो जाना चाहती थी।

सुधा की आंखें शुन्य में देखने लगी...

"क्या बतलाऊं तुझे? मेरे घर के हालात तो तुझे पता था। पिताजी ने मां को कभी इंसान का दर्जा दिया ही नहीं। वो तो बस रात में उनकी शारिरीक भुख मिटाने की साधन थी। जब तब छोटी छोटी बातों पर उनसे मारपीट करना आम बात थी । कौन कह सकता था कि वो एक पढ़े लिखे इंसान थे जो कॉलेज में प्रोफेसर थे? 

दसवीं की परीक्षा के बाद ही उन्होंने मेरा घर से बाहर निकलना बंद कर दिया।तुम जब गांव आई थी मुझे तुमसे मिलने नहीं दिया था ।मुझे अपने पसंद के विषय पढ़ने से मना कर दिया। मेरे जिद्द करने पर मुझे तो नहीं मां को बहुत मारा ...ये कह कि तुम्हारे शह पर ऐसा कर रही है वो। फिर मैं ने मन मार लिया अपना। सारी पढ़ाई फिर प्राइवेट से ही किया। तुम सब का गांव आन छूट गया था इसलिए तुझे पता नहीं होगा । जब मैं ग्रेजुएशन कर ली तो सभी पिताजी पर दबाब देने लगे मेरी शादी के लिए। और किरण सच कहूँ तो मैं भी उस नरक से निकलना चाह रही थी। रोज मां को मार खाते ,बहनों को डर से सहम कर कोने में दुबकते...छोटे भाई को अपनी बङी बहनों पर हाथ उठाते देख थक गई थी मैं। "


किरण की स्तब्धता देख सुधा बोल उठी..".ऐसे आश्चर्य क्यों कर रही है.. बबलू को पिताजी ने पूरी छुट दे रखी थी मारने की.. वो जिसे चाहे मार सकता था... आखिर बेटा था उनका..संपत्ति इतनी थी जो चाहे करे।"


सुधा की बातें सुन किरण सदमे में थी। छोटे में जब भी गांव गई सुधा के यहां खाना जरूर रहता है उसका और मां का। चाची कितने मधुर स्वभाव की सुघड़ गृहिणी थी।कितनी चीजें बनाना सीखा था मां ने उनसे। पर हां कभी चाची को किसी और से मिलते नहीं देखा। गांव की और स्त्रियों से मेलमिलाप नहीं देखा। मां का बिना बात सवाल ना करना शायद उन्हें मां के करीब ले आया था। कई बार चाची को आंख पोंछते देखा था मां से बातें करते समय पर कभी मन में ये बात नहीं आई कि बात इतनी गहरी है। चाची इतने कष्ट में है। सुधा ने भी कभी घर की बात नहीं बतलाई। शायद झिझक से।


किरण को अपने ही सोच में गुम देख सुधा ने आवाज लगाई..." किरण!!!"


किरण वर्तमान में लौटते हुए बोल उठी...


" बोल ना...आगे क्या हुआ?"


सुधा समझ रही थी किरण की मनोदशा पर आज वो अपनी सहेली से सब कुछ कह देना चाहती थी। इसलिए वो बात आगे बढ़ाते हुए बोल उठी।

कई रिश्ते आये । सब अच्छे अच्छे थे ।पर पिताजी सब में कुछ ना कुछ कमी निकाल मना कर देते थे। मुझे लगने लगा था वो चाहते ही नहीं मेरी शादी हो 

एकदिन उनके अपने सिनियर ने मेरा हाथ अपने भांजे के लिए मांग लिया। उनके साथ काम करनेवालों को भी उनका बाहरी रुप ही पता था जो बहुत अच्छा था। खैर इस रिश्ते में वो चाह कर भी कोई कमी नहीं निकाल पाये और मजबुरन उन्हें हां करना पङा । मेरी शादी एक महीने के अंदर हो गई और मैं अपने ससुराल आ गई। ससुराल में मैं शुरू शुरू में सहमी रहती थी लेकिन समय बीतने के साथ मैं समझ गई थी यहां मेरे घर जैसी बात नहीं है। प्रमोद जी से मैंने आगे की पढ़ाई करने की इच्छा बताई तो वो तुरंत तैयार हो गए। घर में बाकी सब ने भी मेरे इस निर्णय में साथ दिया।सब ठीक चल रहा था एकदिन अचानक पिताजी आ गए मुझे मायके ले जाने के लिये। ये कह कर की मां कि तबीयत खराब है। ससुराल वालों ने उनकी बात पर विश्वास कर मुझे भेज दिया।

जानती है किरण घर जा कर मैं ने क्या देखा? "

सुधा के इस सवाल पर किरण बस उसका मुंह देख रही थी।अब तक वो समझ गई थी जो भी सुधा ने देखा वो उसके सोच से अलग होगा। किरण को चुप देख सुधा ने खुद जबाब दिया... 


मां बिल्कुल ठीक थी । पिताजी ने उससे झुठ बोला था कि मैं बीमार हूं इसलिए वो मुझे लेने जा रहे हैं। मां मुझे और मैं मां को स्वस्थ देख स्तब्ध थी। अब मैं समझ गई थी कि पिताजी झुठ बोल मुझे यहां किसी कारण से लाये हैं। मैं तुरंत लौट जाना चाहती थी वहां से। पर पिताजी ने कहा..


 "थक गई होगी तुम । आराम कर लो कल बातें करेंगे। वो रात मैं बस छत देखते काट दी। सुबह चाय के साथ मैं गई थी उनके पास। मेरे कुछ कहने से पहले वो बोल उठे...


"तुम्हें इस रिश्ते को तोङ देना है। हमारे हैसियत के बराबर नहीं हैं ये लोग। दहेज के लिए तुम्हें प्रताड़ित कर रहे हैं ऐसा कहना है तुम्हें शिकायत में।"


उनकी बात सुन मैं हतप्रभ थी। कुछ नहीं लिया था मेरे ससुराल वालों ने। और मेरे सुख को वो दुःख में बदल रहे थे। जानती थी इंकार करूंगी तो कमरे में बंद कर देंगे मुझे। मैं ने हां में सर हिला दिया उनके सामने और मन बना ली इनके घर से जाते ही मैं भी चुपके से निकल जाऊंगी। एकबार ससुराल पहुंच जाऊंगी तो प्रमोद सब संभाल लेंगे इतना विश्वास था मुझे।

   

दूसरे दिन उनके जाने के बाद मैं आधे घंटे समय बिताती रही फिर बस पैसे ले घर से निकल गई मां को ये कह कि कुछ खरीदना है । बाहर झट चौक आ रिक्शा पकड़ स्टेशन पहुंची। रिक्शावला तेरे ही खेतों में काम करनेवाले का भाई था। शायद वो मेरे बार बार मुङकर देखने से समझ गया था कि मैं छुप कर जा रही हूं। उसने ही मेरी टिकट खरीद डब्बे में बिठा दिया था और जाते जाते कहा था वो जानता है पिताजी ठीक नहीं कर रहे हैं।

  ससुराल पहुंच कर मैं समझ नहीं रही थी क्या बोलूं सबको। मेरे पिताजी का असली रुप कैसे बतलाऊं। मैं ने वहां झुठ कह दिया। मां ठीक है इसलिए वो लौट आई है और सामान रेल में चोरी हो गया। 

मुझे लगा पिताजी अब फिर नहीं आयेंगे। पर कितनी गलत थी मैं अब वो जब तब आ कोई ना कोई बहाने से मेरे ससुराल वाले से लङाई करते थे। उनकी इन बातों से थक मैं ने प्रमोद को सब सच सच बता दिया। प्रमोद मुझे डांटा इतने दिनों तक बात छुपाने के लिए। फिर जब पिताजी आये तो उन्हें धमकी दी की वो पुलिस को सब बता देंगे कैसे वो मां को मारते हैं और मुझे मजबूर कर रहे हैं रिश्ते तोङने के लिए।

उनकी बातें सुन पिताजी गुस्से में बहुत कुछ बोल मुझ से हमेशा के लिए रिश्ता तोङने की धमकी देने लगे। तब मैं बोल उठी कि मैं ऐसा रिश्ता नहीं रखना चाहती।

किरण को हतप्रभ देख सुधा ने कहा.... "हां उस दिन रिश्ता टूट गया मेरा उनसे। पर सच बोलूं मुझे कोई दुःख नहीं था उस रिश्ते के टूटने का बस तकलीफ थी छोटी बहनों को उस नरक में छोङ आइ थी। मुझे मेरी मां से भी अब सहानुभूति नहीं थी। क्यों नहीं वो कभी खङी हुई अपने लिए? क्यों नहीं घर छोङ निकल गई वो ? तब शायद ये सब नहीं होता।" 


किरण बस चुपचाप सब सुन रही थी। आज बरसों का दुःख शब्दों में बदल रहा था और वो नहीं चाहती थी उसके कुछ कहने से सुधा अपना दुःख फिर अपने अंदर छुपाने लगे। सुधा को चुप देख किरण ने धीरे से पुछा था.....फिर क्या हुआ?"


लगा जैसे सुधा किसी तंद्रा हसे जाग गई हो वैसे ही चौंक गई वो। फिर मुस्कुरा कर बोलने लगी कुछ दिन सब ठीक रहा या यूं कहूँ कि दो साल तक सब ठीक रहा। फिर सब बच्चे के लिए बोलने लगे घर में। चाहती तो मैं भी थी। पर हमनें कभी इसे रोकने की कोशिश भी नहीं की थी इन दो सालों में फिर भी मैं गर्भवती नहीं हूई थी। ये बात जानने के बाद सासु मां ने डाक्टर से सलाह लेने के लिए कहा। 

प्रमोद और मैं महिला डॉक्टर से मिले। उसने हमारी बातें सुन मुझसे कुछ सवाल किये। फिर पुछा.....

"महावारी ठीक से होता है तुम्हारा?"


किरण मेरी महावारी कभी नियम से नहीं हुई और जब हुई भी तो ना के बराबर। मेरे इस जबाब को सुन डॉक्टर आश्चर्य में थी।


 वो बोल उठी..."कैसी मां है तुम्हारी... उसने तुम्हें समय पर किसी को दिखलाया क्यों नहीं? "


मैं उसके झल्लाहट को समझ नहीं पा रही थी।फिर उसने मुझे समझाया कि मेरी परेशानी की वजह महावारी हो सकती है। खैर उसने बहुत सारे जांच लिख दिया हमें और जल्द से जल्द करवा के रिपोर्ट दिखाने कहा। उसकी बातें सुन हम दोनों परेशान हो गए थे। हमनें दूसरे दिन ही सारे जांच करवाये और रिपोर्ट आते ही उससे मिलने गये। डॉक्टर ने बतलाया मेरा गर्भाशय पुरी तरह विकसित नहीं हो पाया था ।अगर समय पर इलाज हो जाता तो शायद सब ठीक हो जाता। ये सुन मैं बिल्कुल टुट गई। प्रमोद ने बहुत जगह दिखलाया इस उम्मीद में कि शायद कुछ हो जाये अब भी ।पर ऐसा सभंव नहीं था। प्रमोद की दोस्त जो विदेश में डॉक्टर है उससे भी हमनें विचार लिया था।


सुधा ने फिर गहरी सांस ले आगे कहा... "कुछ महीनों मैं बहुत परेशान रही ।फिर लगा मेरे मां बाप की गलती की सजा इस परिवार को क्यों? ये मेरी नियति है । इसमें प्रमोद क्यों पीसे?मैंने उन्हें मुझे छोङ दूसरी शादी की सलाह दी। जानती है उन्होंने क्या कहा?

किरण के सवालिया नजरों का जबाब सुधा ने खुद दे दिया बिना कुछ पूछे।"


प्रमोद ने कहा..."सुख दुःख में साथ रहने की बातें हुई थी सुधी। ऐ नहीं कि जब मैं दुःख में रहूं तो तुम साथ दो और तुम पर दुःख आये तो मैं अपना रास्ता बदल लूं"।"

 फिर उन्होंने पुछा था..".अच्छा बतलाओ ..मेरे में कोई कमी रहती तो क्या तुम मुझे छोङ देती ?"

मेरे जबाब देने से पहले वो खुद बोले उठे थे..." नहीं ना...फिर मैं कैसे ये फैसला ले लूं ? अब हमरा साथ हमेशा के लिए है और आज के बाद इस विषय में कोई बात नहीं होगी।"

किरण स्तब्ध हो र्निमिमेष सुधा का मुंह देखे जा रही थी और सोच रही थी क्या कभी सुधा के दुःखों का अंत होगा ? सुधा कभी पुर्ण खुशी नहीं पायेगी?तभी सुधा ने किरण को उसके सवालों के घेरे से बाहर लाते हुए जबाब भी दे दिया।"मैं और प्रमोद अब बच्चे को गोद लेने की सोच रहे हैं । किरण मैं ठीक कर रही हूं ना?"

किरण ने झट अपने बांहों में ले सुधा की सारी आशंकाओं को दूर करते हुए कहा..

" बहुत सही निर्णय है तुम दोनों का। मां भावनाओं से बनते हैं जन्म देने से नहीं और मुझे पुरा विश्वास है तुम एक बहुत अच्छी मां बनोगी।"


किरण के मुंह से ये आश्वासन पा सुधा निश्चिंत हो गई। दोनों सहेलियों थोङी देर इधर उधर कि बातें कर सोने चली गई।

दूसरे दिन सेमिनार अटेंड कर सुधा और किरण दोनों अपने अपने जिंदगी में फिर से लौट गए पर इस वादे के साथ की अब दोनों सहेलियां एकदूसरे से संर्पक बनाये रखेंगी।



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