आलता
आलता


आज दोपहर स्नेह पुराने जरूरी कागजातों को सभांलने बैठी थी। उन्हीं कागजों के बीच उसे पुरानी एलबम मिल गई। सब कुछ भुल वो उस एलबम में तस्वीरे देखने लगी। कब दोपहर शाम में ढल गया उसे पता ही नहीं चला। दफ्तर से लौट अनुज उसे ढ़ुढ़ते हूऐ स्टोर रूम में आया तब उसे समय का पता चला। स्नेह को पुरानी एलबम लिए देख अनुज ने कहा
फिर पुरानी यादों में उलझीं हैं आप।आदत नहीं बदली है आपकीउसके युं कहने पर स्नेह ने भी जबाब में कहा..
"जैसे तुमने नहीं छोङी मुझे आप कहने की आदत।"
स्नेह की बात सुन अनुज कुछ कहता उससे पहले पापा.... पापा की आवाज ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया।दोनों की पांच साल की नन्ही सी बेटी अपने पिता को ढ़ूढ़ते हूऐ वहां आ गई थी। उसके चेहरे को देखते ही अनुज समझ गया कि वो अपने भाई कि शिकायत करने आई है।
अनुज..."मेरी गुङिया को उसके भय्यू ने फिर क्या कर दिया?"
काव्या... "पापा ...भय्यू बोलता है मुझे अस्पताल से ले आये थे भय्यू के कहने से। मैं आपकी और अम्मा की बेटी नहीं हूं।"
अनुज ने स्नेह की तरफ देख कहा .... "आपसे बातें बाद में होगीं.. पहले मेरी राजकुमारी की शिकायत दुर कर लूं।"
स्नेह ने हंस कर कहा... "अब तुम्हारे पास समय कहां मेरे लिए... तुम्हारी राजकुमारी जो आ गई।"
हंसता हुआ अनुज काव्या को गोद में उठाये बच्चों के नोकझोंक सुलझाने चल दिया। स्नेह और अनुज में बच्चे अनुज के ज्यादा करीब थे।अनुज के जाने के बाद स्नेह सारे कागजातों समेत वो एलबम भी बक्से में बंद कर स्टोर रूम से निकल आई थी ।घर के कामों के बीच मन रह रह कर पुरानी बातें याद कर रहा था।
अनुज ..जो आज उसका हमसफ़र है कभी देवर था उसका। उसके ससुर फौज में थे। मायके फौजवालों से भरा है स्नेह का। वो ग्रेजुएशन में थी तब बङे मामा के बेटे की शादी में गई थी।भाई भी फौज में था और मामा भी। वहीं अनुज के पिता जो मामा के दोस्त थे कर्नल झा अपने बङे बेटे अभिनव और पत्नी के साथ आये थे उस विवाह में शामिल होने।अभिनव भइया के दोस्त थे और प्राइवेट कंपनी में कार्य करते थे। वो घर में सब से घुलेमिले हूऐ थे। शादी के घर में भीङ भाङ में कर्नल साहब को स्नेह का स्वभाव बहुत पसंद आ गया।उन्हें स्नेह अभिनव के जीवनसाथी के रूप में पसंद आ गई।उन्होंने अपनी पत्नी से विचार पुछा। पत्नी को स्नेह पहले दिन से ही पसंद आ गई थी ।वो शादी से फारिग हो कर घर में बात करना चाहती थीं। पर पति के विचार जान उन्होंने देर करना उचित नहीं समझा और उसी रात बेटे से स्नेह के लिए पूछ लिया।अभिनव को स्नेह पसंद आ गई थी। दुसरे दिन कर्नल साहब ने अपने दोस्त से स्नेह के मातापिता से बात करने कहा। सभी परिवार के हर सदस्य को जानते थे इसलिए वो सभी राजी थे इस विवाह के लिए। तुरंत स्नेह और अभिनव की सगाई कर दी गई।शादी छः महीने बाद की रखी गई क्योंकि अभिनव को छुट्टियां नहीं थी।
वो छः महीने दोनों में पत्र का आदान प्रदान होता रहा। दोनों एकदूसरे को समझने लगे अच्छी तरह। शादी के समय लगा ही नहीं जैसे अनजाने लोगों के बीच जा रही हो।सबके बारे में कितना कुछ अभिनव ने चिठ्ठी के माध्यम से बतला दिया। ससुराल जैसा कुछ लगा ही नहीं उसे। बिल्कुल बेटी की तरह ही अपनाया था सासु मां और ससुर ने। पंद्रह दिनों उनके पास रह वो भी अभिनव के साथ चली गई थी उसकी पोस्टिंग जहां थी वहां। वो पंद्रह दिन अभिनव के साथ मिल अनुज ने कितना मस्ती किया था उसके साथ। दोनों भाइयों में अंतर भी तो मात्र दो साल का था। दोनों भाई कम दोस्त ज्यादा थे। शादी के एक साल कैसे बीत गए पता भी नहीं चला। कुछ दिनों से अभिनव थकान महसूस कर रहे थे। थोङे दिनों तक तो हल्के में बात ली उन्होंने।पर लगातार ऐसा होने से डॉक्टर को दिखलाना ठीक समझा । डॉक्टर भी शुरू में साधारण सी बात मान इलाज किया पर जब इलाज से जैसी उम्मीद थी वैसा नतीजा नहीं मिलने पर उन्होंने आगे जांच करना उचित समझा। गहन जांच के बाद पुरे घर पर मानो पहाड़ टूट गया। अभिनव को रक्त कैंसर था वो भी आखिरी दौङ में। समय बहुत कम था उनके पास। बीमारी ने बहुत दबे पांव आ कर दबोचा था अभिनव को। जान रहे थे सभी की जिंदगी के इस लङाई में हार जायेंगे।पर क्या जान लेने मात्र से कोई जीना छोङ देता है??? नहीं.. अभिनव के परिवार ने भी यही किया।वो सभी उसके इलाज में लग गए।बंबई टाटा मेमोरियल में इलाज के लिए ले गए। किंतु काल के क्रूर हाथों ने अभिनव को डॉक्टर द्वारा दी गई समय सीमा तक भी नहीं रहने दिया। अभिनव की मृत्यु के बाद स्नेह सास ससुर के साथ रहने लगी। अभिनव के बीमार और इलाज के बीच उसने ध्यान नहीं दिया की उसकी महावारी नहीं हो रही है। उसके चक्कर आने को थकान और परेशानी कारण समझा सब ने। पर अब उसके गिरते सेहत को देख सास तुरंत डॉक्टर को दिखलाने ले गई। डॉक्टर ने जांच के बाद बतलाया स्नेह दो महीने के गर्भ से है। एक तरफ ये समाचार खुशी दे रहा था तो साथ ही गम
को ताजा कर गया था। सब सोच रहे थे आज अनुभव होता तो कितनी खुशीयाँ मनाते वो सब।
स्नेह कुछ दिनों से देख रही थी हमेशा हंसते रहने वाले उसके पापा जब से उसके गर्भवती होने का सुने तब से चुप चुप से रहने लगे हैं। वो हमेशा जैसे किसी चिंता में रहते हैं। कई बार उसने उन्हें अपनी तरफ देखते पाया है। आंखों में उनके कई सवाल देख रही थी वो। कई बार पूछा पर हर बार वो टाल जाते उसके सवालों को। मां से भी कहा उसने और अनुज से भी फोन पर बोली ।
अनुज पापा कि तबीयत कुछ ठीक नहीं लगती मुझे।पुछती हूं तो कुछ बतलाते नहीं। एकबार तुम आ कर दिखला देते और उनके मन की बात भी जानने की कोशिश करते।
भाभी मैं अगले सप्ताह आ रहा हूँ। छुट्टी के लिए बात कर लिया है। पापा का पूरा चेकअप भी करवा दूंगा और उन्हें समझाऊंगा भी ।आप परेशान मत हो।चिंता हो रही थी उसे कि उन्हें ना कुछ हो जाये? अनुज ने कहा तो है अगले सप्ताह आने के लिए।
पापा से बात कर उनकी पूरी जांच भी करवायेगा। इस बीच मां भी पापा से बातें कर उनके मन की बात जानने की कोशिश कर रही हैं।रात खाने पर उसने पापा से अनुज के आने की बात कही।सुन उन्होंने कहा...अच्छा है आ जाये। मुझे कुछ जरूरी बात करनी है उससे।
स्नेह को ये सुन कुछ आराम महसुस हूआ। सोचने लगी चलो किसी से मन की बात करेंगे तो दुःख कम हो जायेगा। सब जानते हैं घर में पापा अभिनव के ज्यादा करीब थे।इसलिए सब परेशान हो रहे थे उनके चुप्पी पर।
दुसरे दिन नाश्ते के बाद सब बैठे थे तभी स्नेह के मामा उससे मिलने आ गए।
उन्हें देख कर्नल झा ने कहा.... "अच्छा हो गया तुम आ गए दोस्त... मैं तुम्हें फोन कर बुलाने की सोच रहा था।"
स्नेह के मामा अपने दोस्त के बोलने से समझ गए थे कि वो उनसे कुछ गंभीर बात करना चाहते हैं। शाम होते ही वो कर्नल झा को टहलने के बहाने पार्क ले गए ।
वहां उन्होंने उनसे पूछा.... "अब बतलाओ ...क्या बात है?"
कर्नल झा ने कहा...." मैं स्नेह की दुसरी शादी करवाना चाहता हूँ। "
स्नेह के मामा के कुछ कहने से पहले उन्होंने कहा..." पहले मेरी पूरी बात सुन लो फिर बोलना।
स्नेह मेरे लिए बहू कम बेटी ज्यादा है।अभी बच्ची है ।उसकी सारी उम्र पङी है सामने।मैं उसे युं जिंदगी काटते नहीं देख सकता। मेरी बेटी भी होती तो मैं यही करता।"
स्नेह के मामा ने पूछा... "स्नेह से पूछा है?"
कर्नल झा..."वो बच्ची है... अभी भावनाओं में उलझी है.. नहीं समझती... पर हम तुम तो जिंदगी देखे हैं और समझते हैं।"
स्नेह के मामा समझ गए थे कि मित्र ने सब सोच लिया है।पूछा... "लङका कौन है?"
कर्नल झा ने कहा... "अनुज।"
दोनों थोङी देर चुप रहे फिर कर्नल झा ने कहा... "अगले सप्ताह वो आ रहा है तब मैं पहले उससे फिर स्नेह से बात करूंगा। तुम स्नेह के माता पिता से बात कर उन्हें समझा लो।"
स्नेह के मामा अपने मित्र के इस सोच से सहमत थे।उन्होंने वादा किया अपने बहन और बहनोइ को वो राजी कर लेंगे इस पुनःविवाह के लिए।अब कर्नल झा को अनुज के आने का इंतजार था।
अनुज के आते ही उन्होंने उसके कहने से अपना पूरा चेकअप करवा लिया।फिर उससे बोले कि उन्हें अनुज से बहुत जरूरी बात करनी है। रात के खाने के बाद स्नेह और सासु मां किचन समेट रही थी तभी अनुज के साथ कर्नल झा बाहर टहलने निकल गए। उन्होंने अनुज से सीधे उसकी और स्नेह की शादी की बात की। अनुज थोङा परेशान हो उठा। अब तक जिसे भाभी कहा ,सम्मान दिया उससे शादी । बङे भाई के यादों के साथ ये धोखा नहीं होगा। कर्नल साहब बेटे कि उलझन समझ रहे थे।
उन्होंने उसे कहा... "नहीं ये धोखा नहीं होगा ।तुम उसके यादों को संभाल रहे हो। वो खुश होगा तुम्हारे इस निर्णय से। वो नहीं चाहेगा उसकी आने वाली संतान पिता के प्यार से वंचित रहे। दूसरी जगह शादी करोगे तो शायद वो स्नेह और उसके बच्चे को वो प्यार ना दे सके ।फिर स्नेह अभी बच्ची है। कैसे अकेले जिंदगी काटेगी। अगर तुम्हें स्नेह पसंद नहीं तो मैं स्नेह के लिए कोई और लङका देखुंगा।"
अनुज सारी बातें सुनने के बाद अपने पिता से एक दिन सोचने के लिए मोहलत मांग लिया। काफी सोचने के बाद अनुज ने स्नेह की रजामंदी होने पर विवाह के लिए हां कह दिया।
दुसरे दिन कर्नल झा ने अपने मित्र को फोन कर स्नेह के माता पिता की मर्जी जाननी चाही। मित्र ने उनके पूर्ण सहमत होने की बात की और अगले सप्ताह उनके साथ आने का आश्वासन दिया।
अब कर्नल झा ने स्नेह से बात करने के लेए बिठाया साथ उनके उनकी पत्नी भी थी।दोनों की बातें सुन स्नेह बिल्कुल इंकार कर दी इस विवाह के लिए। अनुज से भी नाराज हो बैठी। सबसे बातें बंद कर अपने कमरे में बंद रहने लगी।सप्ताह सभी ने तनाव में बिताया। सब परेशान थे इस तनाव का असर स्नेह और होने वाले बच्चे पर ना हो।
अगले सप्ताह स्नेह के मामा और माता पिता के आते ही स्नेह जो भरी हुई थी बातों से.. बिलख उठी...वो उनके साथ जाने की जिद्द करने लगी। बहुत मुश्किल से उसे उसकी मां ने समझा शांत किया और झा साहब के परिवार से स्नेह को अपने साथ ले जाने की इजाजत मांगी। उन्होंने पूरे परिवार को समझाया कि वहां से हट कर नये परिवेश में स्नेह को समझाना आसान रहेगा।फिर मां बाप से बात खुलकर कर पायेगी वो तो मां उसे समझाने में भी समर्थ रहेंगी। उनकी बातों को सुन सब स्नेह को उन सब के साथ भेजेने को तैयार हो गए।
मायके में थोङे दिन बीतने पर मां ने स्नेह को समझाना शुरू किया। जो स्नेह पहले बात सुनने को तैयार नहीं थी अब मां की बातें सुन सोचने पर मजबूर हो रही थी। धीरे धीरे स्नेह को बात समझ में आ रही थी कि सब उसके भलाई के लिए ये निर्णय ले रहे हैं। कुछ दिनों बाद उसने भी अपनी सहमति दे दी इस शादी के लिए। उसके हां करते ही दोनों परिवार ने आननफानन में बहुत सादगी से उसकी और अनुज की शादी करवा दिया।
शादी की शुरुआत में कितनी असहज थी वो अनुज के साथ। अनुज ने तब बहुत सहनशीलता दिखाई थी। कितने सयंम साथ इस रिश्ते में उसे धीरे धीरे सहज होने का समय दिया था उसने। शादी के दस साल होने जा रहे हैं ।दोनों के दो बच्चे हैं कविश और काव्या। अनुज ने कभी कविश और काव्या में अतंर नहीं किया। बहुत सहज ही कविश को अपना लिया अनुज ने। बर्थसर्टिफिकेट पर भी अपना नाम ही लिखवाया था । मां पापा भी धीरे धीरे बच्चों का साथ पा फिर से पहले की तरह जिंदगी जीने लगे हैं। अभिनव अभी भी उन सब के जिंदगी का हिस्सा है ...यादों में।