किस्सा दांतों का
किस्सा दांतों का
संजीव भइया ! सच सच बतलाईये ना आपका आगे का दो दांत सबसे अलग क्यों है ?
छोटी सी रूही अपने छोटे चाचा के दोस्त संजीव से पुछ रही थी ये सवाल।
उसके अपने चाचा जो चाचा कभी थे ही नहीं। हमेशा भाई ही थे। सब चाचा उसके बङे भाई थे।
ये वो जमाना था जब रिश्तों में गर्माहट थी। तब अकंल और आंटी नहीं थे। थी तब गांव के नाम से जाने जानी वाली चाचीयां और काकी।
सोनपुर वाली काकी को बुला ला !
हाजीपुर वाली को सनेश (मिठाई) दे आ !
अरे ! समस्तीपुर वाली काकी आई हैं!
तब थे भईया के सारे दोस्त भाई। और मां के भाई के दोस्त जो उस मोहल्ले में रहते थे मामा।
रुही के तीन चाचा और उनके सारे दोस्त उसके लिए भाई ही थे । जिनसे लाङ करवाना उसका मानो जन्मसिद्ध अधिकार था। वो सभी भी तो उसे नहीं देखने पर आवाज लगाने लगते थे।
ये गोलू कहां है रे ?
अरे ! टमाटर कोई भुत ले गया क्या तुझे? वैसे अच्छा है हमारी जान बच गई तुझसे।
और घर के किसी कोने में हो रुही ठुनकते हूए सबके सामने खङी हो जाती। और उसे देखते ही सब दुलार से कह उठते ...बस इसलिए तो कह रहे थे कि तुम जिस बिल में छुपी हो उससे बाहर आ जाओ। रूही फिर शुरू हो जाती अपनी शैतानियों में मशगूल।
तब कहां दीवारें खङी हूई थी दिलों में? मोहल्ले के हर घर से लङके शाम होते ही निकल जाते थे क्रिकेट खेलने। बारिश में हॉकी खेलना मानो कोई रिचुअल्स हो सब के लिए। गर्मी में रात के अंधेरे में बङे बङे लट्टू (बल्ब) जला बैंडमिंटन खेलते युवा और होसला अफजाई करते सभी बङे। जिंदगी में मिठास बहुत थी तब।
घर के बाहर वाले अहाते में चारपाई और कुर्सीयों और मुढ़ढ़ों के बीच रेडियो पर चल रहे कमेंट्री पर सबकी अपनी अपनी कमेंट्री देना और इन सबके बीच मां का छोटी बहन को सुलाने के लिए धीमे स्वर में लोरी गाने की आवाज सुन कमेंट्री की आवाज धीमी कर मां की लोरी सुनने के लिए सबका चुप हो जाना। बहन के सो जाने पर भी सबका आग्रह.... भौजी एकटा और लोरी गाइबीयो ना।( भौजी एक और लोरी गाइये ना)
। रिश्तों में अभी ओस की नमी बाकी थी ठंड के पाले नहीं परे थे उनमें। मोहल्ले में सबको पता था घर के लङके अगर घर में नहीं है तो जरूर अपने दोस्तों के साथ झा साहब के घर बैठे होंगे। उनके खाने-पीने की फ्रिक करने की जरूरत नहीं है।
संजीव भइया कौन से अलग थे ? वो तो खुद ही रूही को कांधे पर बिठा हॉकी मैच दिखाने ले जाते थे। उस दिन भी मैच देखकर ही तो लौट रही थी सबके साथ। छोटे चाचा हॉकी के स्टार प्लेयर जो थे।भला कैसे नहीं जाती उन्हें जीतते हुए देखने। सो सभी जीत की खुशी में उछलते कूदते लौट रहे थे। उस खुशी में संजीव भइया की हंसी ने फिर उसकी जिज्ञासा बढ़ा दी थी उनके बिना मेल के दो दांतों में।
उसकी उत्सुकता को हमेशा टाल जाने वाले भइया ने आज नहीं टाला और अपने दोनों दांतों की कहानी कहने लगे।
तुझे पता है ना हम माई को बहुत तंग करते थे।
उनके थे को सुन उस से रहा नहीं गया और बोल उठी..... भईया "थे"!
भईया हंस के बोल उठे..... अच्छा अच्छा ठीक है .... क
रता हूं। चाची की चम्मची।
वो उनके उस दिये उपाधी पर अपने दांत दिखाते हुए सर हिलाते हुए उन्हें आगे कहानी सुनाने के लिए बोली।
हां तो तू ही तो बीच बीच में टिप्पणी दे कर मुझे रोक देती है। संजीव भइया ने कहा उसे। फिर आगे कहना शुरू किया....
उस दिन माई को सुबह से तंग कर रहे थे हम । राजीव भईया से लङाई कर कर के माई को आजीज कर दिये थे। माई कई बार कह चुकी थी....देख मान जा नई त हम बङी मार मारम तोहरा के ( मान जाओ नहीं तो बहुत मार मारेंगे हम तुम को )
ठंडी सांस लेते हुए भईया...हम कहां मानने वाले थे ।लङते ही रहे। शाम के समय कोयला के चुल्हा के सामने बइठे थे कि माई रोटी सेंकेने लगी और हम गर्म गर्म खाने का सोच बैठ गये वहीं । बैठे ही थे कि फिर एगो ( एक)नया बदमाशी सुझ गया हमको माई को तंग करने का।
हम रसोई से एक चम्मच ले आये और लगे उस चम्मच से थारी (थाली) बजाने। माई बार बार कहे.... संजीव मत बजा माथ दु:ख रहा है तोरे शैतानी से। लेकिन हमको तो बजाना था सो हम बजाते रहे।
रुही को संजीव भइया की ये शैतानी नागवार गुजरी। उसकी पुरे मोहल्ले में सबसे सीधी चाची थी संजीव भइया की मां और भईया उनको तंग करें। ना.... इस बात पर तो एतराज करना जरूरी है।
भईया..... बहुत ग़लत बात ....आप चाची को तंग किये ?
संजीव..... हां तो क्या करता ? माई खाली जब देखो तब ... "राजीव" ... "राजीव "...करती रहती है।
संजीव भईया की ये बात आगे चल रहे राजीव भईया के कान में पहुंच गई। झट बोल उठे... अच्छा...कब करती है ऊ राजीव... राजीव। जब देखो तब तुम्हें ही ढ़ुढ़ती है माई।
संजीव...उ तो अब ना। पहले तो खाली तुम्हीं को दुलार करती थी माई।
रुही....ये संजीव भइया!!! फिर क्या हुआ वो बतलाईये ना!!!
संजीव...... हां बोल तो रहा हूं।तु ही तो बात धुमा लेती है।
हम नहीं राजीव भईया..... राजीव भईया...आप हमारी बात मत सुनिए। हां बोलो संजीव भईया।
संजीव..... फिर क्या...माई को बहुत जोर से गुस्सा आ गया और माई हाथ में ली बेलन जोर से मेरे पर फेंक दी। ऊ जो बेलन फेंकी सो बेलन सीधे उङते हूए मेरे सामने के दो दांत में आ कर लगा और मेरा सामने वाला दोनों दांत माई के बेलन से मार खा शहीद हो गया।
रुही.... फिर... फिर क्या हुआ ?
राजीव भइया..... फिर क्या? इसको तो कोई फर्क नहीं पड़ा ...हां माई बेचारी खुन देख बेहोश हो गई। बाबूजी पार्टी की मीटिंग से लौटे ही थे की ये सब हो गया और बाबूजी मां को और इसको लेकर भागे अस्पताल। (चाचा कम्युनिस्ट पार्टी के मेंबर ) फिर कुछ दिनों बाद जब इसका घाव ठीक हो गया तो नकली दांत लगवा दिये बाबूजी। माई बेचारी बहुत दिन तक इसको कुछ बोलती ही नहीं थी।
रुही..... संजीव भईया ... राजीव भईया सच बोल रहे हैं क्या?
संजीव...हां टमाटर वो सही कह रहे हैं।हम माई को बहुत तंग किये थे और माई के बेलन से ही टूटा था हमारा दांत। बस अब खुश सुनकर दांत का किस्सा।
रुही....हां... लेकिन हम चाची से भी पुछेंगे की आप सच बोले हो कि झुठ।
ये सुनते ही सब के सब दोस्त एक साथ...ये सच है। दो दातं की कहानी।