तहजीब
तहजीब
हाँ, वहाँ सब तहजीब ही सीखने आते थे। बस यही शायद उस जमाने की रिवायत थी।
कोठों पर बड़े बड़े परिवार के लोग तहजीब सीखने जाते थे पर फिर भी वह बदनाम गलियाॅ हुआ करती थी, आज का विषय वह नहीं हैं आज का विषय हैं, रूही जान की दौरे हालत की आज जो लोग उस किसी जमाने में सारी रात वाह वाह करते थे वह लोग आज दिन में उस गली से निकलने में भी घबराते हैं।
पता नहीं काहे, रूही बिटियाँ को रूहीजान बनाने वाले यही सफेदपोश लोग ही तो हैं, फिर काहे लोग बदल गये रूहीजान आज भी महफिले सजाती हैं। सांरगीवाला सांरगी बजाता हैं, तबला वाला धरकिट धिन करता है। रूही जान गला साफ करकें गजल गाती हैं, एक आद लोग आज भी पहुँच जाते हैं पर रूही जान के चाहने वाले कहते हैं हम तो अब वहाँ नही जायेगें, रूहीजान में वह दम खम नहीं रहा, वाह रे दुनिया वाह रे दुनिया वाले, कल तहजीब सीखने सीखाने भेजते थे।
आज रूही जान बुरी बन गयी गयी पर कुछ तो सोचो रूहीजान कैसे जीयेगी बस एक ही आशा में जिंदा है,कभी तो सुध। लेगेे, कल शायद रूही जान ना रहेगी साथ। मेम यह रिवायते भी थम जायेगीं हम लोग भी दादरा ठुमरी सुनने को तरस जायेगें।