तेज़ाब
तेज़ाब
"तुम्हारा फ़ोन कहाँ है, क्या साइलेंट मोड पर रखा है तुम आजकल व्यस्त भी बहुत बताती हो, पहले कभी मैंने तुम्हें इतना फ़ोन से चिपकता नही देखा, चल क्या रहा है,आजकल मेरे पीठ पीछे।" सौरभ ने अंजली का हाथ कसकर पकड़ते हुए पूछा ...
"अरे आप मुझ पर शक क्यूँ कर रहे हो, क्या तुम्हारी पत्नी पर तुम्हें इतना भरोसा भी नही हैं अंजली ने कहा।"
"है भरोसा लेकिन, आजकल तुम्हारी हरकत कुछ और ही जवाब दे रही है जैसे मेघ सूरज के प्रकाश को ढक कर मौसम के मिजाज़ को बदल देता है, उसी तरह तुम भी अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से अपने रहस्य को छिपा रही हो ..."
"ख़बरदार जो कभी कुछ राज तुम्हारा मुझे पता चला तो, तेजाब से जला दूँगा तुम्हारा ये नूर जो अभी के समय बहुत उफान पर है सौरभ ने आक्रोशित अंदाज़ में कहा।"
अगले दिन सौरभ ऑफ़िस की ओर जा रहा था वो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, उसने घर में सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए जिससे ये पता चल सके कि अंजली उसके साथ धोखा तो नहीं कर रही है। समय दोपहर 2.०० बजे घर के मुख्य द्वार पर कोई आया उसने फटाफट अंजली के हाथ में कुछ थमाया और मुस्कुराते हुए वहाँ से निकल गया, थोड़ी देर बाद अंजली तैयार होकर घर के बाहर खड़ी कार में जाकर बैठ गयी, कार जो ड्राइव कर रहा था ये वही शख्स था जिसने घर पर आकर अंजली को कुछ थमाया था। सौरभ एक एक बारीकियों पर नज़र गड़ाये बैठा था। मेरे साथ धोखा बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा अंजली, अब तुम्हारी खैर नही ,झट से कार चलाकर मार्केट की ओर चल पड़ा सौरभ ने आव देखा न ताव तुरंत तेज़ाब लेकर घर पर जाकर रख दिया। अंजली शाम के 5 बज चुके थे अभी तक नहीं आयी थी, अब तो सौरभ आग के लपटों के समान और भी गर्म हो गया था, कुछ देर बाद अंजली ढेर सारा सामान लेकर आयी और जैसे ही उसने सौरभ को घर में बैठे देखा वो हक्का बक्का हो चुकी थी सौरभ ने तेज़ाब की बोतल उठायी और अंजली पर उड़ेल दी।
"हाय माँ ...बचा लो" और एक गहरी चीख ने पूरे सदन को गूंजा दिया था सौरभ की माँ ने तुरंत हॉस्पिटल के लिए सौरभ को ले जाने के लिए कहा ..."रे अधम तूने ये क्या किया ये बेचारी तेरे बर्थडे पार्टी के लिए सुबह से योजना बना रही थी, तुझे खुश करने के लिए इसने रात को एक बहुत बड़ी पार्टी का आयोजन किया था इस सीता की अग्निपरीक्षा भी ली वो भी इस तरह..." सौरभ दुख के अंधियारे में गश्त लगा रहा था, उसने शंकालु प्रवत्ति के कारण वाकई सीता जैसी पत्नी के साथ दुर्व्यवहार किया, पर अफसोस हॉस्पिटल में जाने से पूर्व ही अंजली ने अपना दम तोड़ दिया था।
ये एक सच्ची कहानी है लेकिन कहानी का रूख किरदार के रूप में अलग थे, बस अब बहुत हुआ अग्निपरिक्षाओ को देने की ज़रूरत अब महिलाओ को नहीं है वो सक्षम है सबल है अब पहले से अधिक आत्मनिर्भर भी है , अब चीखने की जरूरत सबला को नहीं है क्योंकि अब महिला अबला नहीं है।