Nikita Vishnoi

Tragedy

5.0  

Nikita Vishnoi

Tragedy

ख्वाहिशें

ख्वाहिशें

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आज ये साड़ी पहनूं या नहीं पर मुझे तो यही साड़ी पसन्द है पर उनको तो ये नहीं है, साक्षी सोच रही थी।

उसने कभी अपने मन का नहीं किया है, हर वक़्त बचपन से आज तक। किसी दूसरे की ख्वाहिशों की कल्पना को साकार करने में अपने अंतर्मन का गला घोंटने में साक्षी ने कोई कसर नहीं छोड़ी।

जींस का शौक था पर पापा को पसंद नहीं था क्योंकि पापा चाहते थे कि उनकी बेटी सलवार सूट ही पहने। घर का माहौल राजनीति का था, यहाँ भी इच्छाओं का रुदन, फिर मुझे डांस का शौक था, पर मेरे दादाजी नृत्य जैसी विधाओं को भी उपेक्षित, हीन नज़रो से ही देखते थे।

तब मैंने डांस से भी तलाक (नाता तोड़ना) कर लिया, फिर मेरी तमन्ना और विकसित हुई अब मैंने वक़ील बनने का निर्णय किया, भाई ने bio विषय दिलवा दिया, फिर एक एक करके मैंने सबके फैसलों को स्वीकृत करके उन्ही के हिसाब से चलने की एक अहम पहल को अंजाम दिया।

आज मैं एक सरकारी अस्पताल की नर्स हूं जो हर दिन आने वाले ख्याल को लोगों की पैनी नज़र के तराजू से तोलने का प्रयास करती है। मंज़िल रुख मोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ती। मैंने एक इंजीनियर लड़के से शादी करने का सार्वजनिक फरमान घर के सभी लोगों को सुनाया था।

नतीजा क्या निकला माँ ने एक दूर रिश्तेदार के भतीजे रोहन के साथ शादी कर दी, हम दोनों में ज़रा भी मेल नहीं है लेकिन सामंजस्य के अंतर्गत जीवन जीना मैंने बहुत अच्छे से सीखा है।

जिसकी भनक घरवालों तक पहुँची ही नहीं की हमारी बेटी समझौते की ज़िंदगी जी रही है। 2 साल हो गए शादी को हमारे, आज तक हम साथ में कही रोड़ पर भी नहीं टहले उन्हें अपने डॉक्टरी काम से फ़ुर्सत ही नहीं। कभी और शायद आज भी नहीं जबकि हमारी शादी की सालगिरह है आज।

जिंदगी मेरी कठपुतली बन गयी है हर किसी के इशारों पर चलना मेरी जिंदगी की बागडोर को नए सिरे से जोड़ देता है, जिसका कार्य यथोचित तरीके से संपन्न होता जा रहा है।

क्या अभी तक मैं सबके इशारों पर ही चलूंगी ? शायद हां और झिझकके नहीं।


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