मोक्ष या षडयंत्र

मोक्ष या षडयंत्र

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पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ पड़ी ,जब हर किसी को पता चला सालों से बीमार हीरालाल का आज देहांत हो चुका ,हर किसी की ज़ुबान पर "भगवान उस पीड़ित दुखी इंसान की आत्मा को शांति दे ऐसा ग़मगीन वाक्यांश स्पष्ठ दिखाई दे रहा था ".....अब बेचारे को मोक्ष मिल जाए।ज़िन्दगी भर तो कारीगरी का काम किया । दो बेटे हैं ,उनकी भी परवरिश बीमारी के दुष्प्रभाव के भयंकर आग़ोश में निकली फिर भी बड़े भाई ने पिताजी के कारीगरी कार्यों को सीखने में कोई कठिनाई नही जताई ,छोटे भाई ने कुछ दिन तक अपनी आवारगी को मशहूर किया ,फिर पिताजी की बीमारी को देखते हुए कुत्ते जैसी सीधी दुम करते हुए, अपनी हरकतों में सुधार करते हुए कास्तकारी का काम ज्यो त्यों सीखा ।दोनों भाई की उम्र में कुछ खासा फर्क नही था।एक वर्ष का अंतर बस ।

दोनों जितना भी कुछ कमाते ,पूरा हिस्सा हीरालाल की महंगी दवाइयों में ही चला जाता बहरहाल कर्जे का स्तर भी धीमे कदमों से उछाल मारने लगा था ,दो वक्त की रोटी के लिए भी उन्हें ज़कात पर निर्भर रहना पड़ता था।

अब दोनों भाई का शरीर सूख के कांटा बन चुका था जैसे तैसे दिन रात कट रहे थे .आलम ये हो चुका था कि हीरालाल अब किसी भी समय मौत की गोद मे सोने हेतु आतुर हो गए थे । समय रात के ढाई बजे छोटे बेटे मुरलीधर ने पिताजी की व्यथा जानने हेतु उन्हें एक मार्मिक स्पर्श दिया ...हाथ ठंडे पड़ चुके थे कुछ मक्खियां भी अब आसपास मंडराने लगी थी मुरलीधर फूट फूट कर रोने लगा।बिना बाप के दुनिया कैसा सुलूक करती है वो पहचानता था,घनश्याम बड़ा भाई उसके करुण हृदय द्रवित करदेने वाले स्वर को सुनकर झट से आया ,और अपने पिता की मौत का मातम मनाकर जोर जोर से विलाप करने लगा।उसकी आवाज सुनकर गांव के सब लोग इकट्ठे हो गए।सभी राम राम कहने लगे और देह के समीप जाकर गुप्त आँसुओ को निमंत्रण देने का प्रयास करने लगे ,पंडित भी जमकर पाखण्ड और आडम्बर को रच रहे थे अब क्रियाकर्म के बाद श्राद्ध करो ...पर हालात ये थे कि पूरे घरमें बावन रुपये के अलावा कुछ नहीं था ।

ज्यो त्यों लोगो की मदद से क्रियाकर्म हुआ फिर लोगो ने श्राद्ध हेतु मुरलीधर और घनश्याम पर अनेको अध्यात्मिक ,मानसिक दवाब दिया ,कर्ज का बोझ लाखो का हो गया था. अब श्राद्ध करके इतने बड़े गांव के जनसमूहों को खिलाना कोई मामूली बात नहीं थी। तेहरवीं के दिन जब गांव के लोग और पंडित उनके घर आये तब सामने देख दृश्य से वो डर गए सामने ही पँखो पर अलग अलग कमरों में झूलती हुई दो लाशें ,जो श्राद्ध जैसी भयंकर कुप्रथा का विरोध करने में असक्षम थे ,तो उन्होंने मौत को ही गले लगा लिया ।

सोचिए ज़रा कुछ स्वार्थ परायण लोग अपने षड्यंत्र और प्रभाव को बनाने हेतु किसी निर्धन की स्थिति का भी अनुमान नही लगाते ।यह चिंतनीय विषय है कि मोक्ष कैसा मोक्ष?जब हमारा शास्त्र भी ये कहता है कि मरने उपरांत आत्मा दूसरा शरीर धारण करती है तब मोक्ष की क्या बात ,किसने मोक्ष को देखा है ? तो होनहार बुद्धिजीवियों हमें ऐसे ढोंग पाखण्ड ढकोसलों से बचना चाहिए ,और ऐसी कुप्रथाओं का आगे रहकर विरोध करना चाहिए ,जिससे घनश्याम और मुरलीधर जैसे निर्दोष मानसिक बोझिल व्यक्तियों को जीने का सहारा मिल सके।



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