अज़ीब दास्तां है ये

अज़ीब दास्तां है ये

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बिन फेरे हम तेरे, कितना रोचक, रोमांचक लग रहा है न सुनकर, लेकिन इसके गहराई स्थल तक पहुँचोगे, तो घृणा और अलगाव के अलावा कुछ भी नया नहीं लगेगा, क्योंकि ये अनंत से शून्य में सिमटा हुआ एक पायदान है ।

एक लड़की जिसे उसके माँ बाप ने उसको मुम्बई जैसे महानगर में पढ़ने के लिए भेजा, आर्थिक तंगी के बाबजूद भी उसके सपनो के सुनहरे रास्ते को बंद नहीं होने दिया उसे घर गिरवी रख कर पढ़ाया, नए शहर मुम्बई में उसे एक हमउम्र अजनबी से प्यार हो गया, लड़की ने शादी की इच्छा जतायी पर क्या हुआ लड़के ने एक दूसरे को और बेहतर ढंग से समझने का फैसला लेते हुए लिव इन रिलेशनशिप जैसी अमेरिकन पश्चिमी सभ्यता के उदाहरण दिए तो लड़की भी थी, दो दिन के प्यार में अंधी।

उसने साथ में रहने के लिए रजामंदी देदी, शारीरिक संबंध भी दोनों के बन चुके थे और 6 महीने तक चलने वाला ये युगल जोड़ा, कुछ नासमझी के कारण तुरन्त ही तलाक पर आ गया। लड़की ने बहुत समझाया कि हम शादी करने वाले है यूं आकस्मिक निर्णय नहीं लिए जाते है लेकिन लड़के का मन भर चुका था लड़की से।

उसने सब कुछ भूला देने की हिदायत दी और वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गया, लड़के के जाने के बाद लड़की को पता चला की वो माँ बनने वाली है उसने लड़के को बहुत फोन भी मिलाया पर हर बार नम्बर बंद ही निकला, लड़की टूट चुकी थी वो इस बात को अपने घर पर भी नहीं बता सकती थी।

उसने अबार्शन कराने का सोच कर बहुत टाइम घर वालों से झूठ, फ़रेब में निकाल दिया, जब उसे पता चला कि उसके माँ पापा उससे मिलने आ रहे हैं वो अपने माँ बनने के बोझ से दुखी थी और बात जब बिना शादी के प्रेग्नेंट होने का था तब तो मामला बेहद ही अकल्पनीय था उसने आव देखा न ताव अपने दुपट्टे से खुद को फाँसी लगा लिया।

एक पश्चिमी संस्कृति के दुष्प्रभाव ने लड़की की जिंदगी, उसके मासूम बच्चे की ज़िंदगी, और एक हँसते खेलते परिवार की बेटी और खुशी को छीन लिया जो कि बहुत ही निंदनीय है।


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