तेरे इश्क में

तेरे इश्क में

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वो नाम का ही रुपेश नहीं था बल्कि वाकई बहुत ही खूबसूरत आदमी था वो। आशिकी करना और आशिकी में लुट-पिट जाना उसका जीवन जीने का तरीका था। कई बार आशिकी करके वो अपनी प्रेमिकाओं के हाथ लुटकर अपनी पत्नी सूरज मुखी के हाथो से वो पिट चुका था। चमड़ी इतनी मोटी थी जालिम की कि इतनी बार लूट पिट कर भी वो सुधरा नहीं था, उसकी खोपड़ी पर उसकी बीवी और कुछ प्रेमिकाओं की चप्पलें इतनी बार पड़ चुकी थी कि कभी उसके सर के बालो की घनी फसल अब हलकी होकर गंजेपन की और अग्रसर थी।

तीन-तीन मिठाई की दुकानों का मालिक और गुलफाम नगर का मशहूर हलवाई होने के बावजूद रुपेश को अचानक फैशन डिजायनिंग का शोंक चढ़ आया और झब्बन लाल कॉलेज की फैशन डिजायनिंग की इवनिंग क्लासेज में एडमिशन ले बैठा।

"गली-मोहल्ले की औरतो से पिट कर मन नहीं भरा जो अब फिर से कॉलेज की लड़कियों से पिटने का शौंक चढ़ आया है। कसम खाकर कहती हूँ इस बार किसी औरत के चक्कर में लगे तो चारो बच्चो को लेकर अपने भैया के घर चली जाउंगी फिर तुम उस औरत के साथ रहना इस भूत बंगले में।" —सूरज मुखी उस के एडमिशन की बात पर भड़क कर बोली थी।

"अरे यार तुम तो बेकार में शक करती हो।" —रुपेश दबी जुबान में बोला।

"बेकार शक, इस बार चलाओ किसी औरत से चक्कर फिर बताती हूँ तुम्हे और उस चुड़ैल को कि मैं कोई अबला नारी नहीं हूँ; सर फोड़ दूंगी तुम दोनों के।" —सूरज मुखी रौद्र रूप धारण करते हुए बोली थी।

इससे पहले सूरज मुखी का और मूढ़ उखड़ता रुपेश ने घर से रपट लेने में ही भलाई समझी।

कॉलेज में फैशन डिजायनिंग की पार्ट टाइम ट्यूटर लता से उसका प्रेमालाप पिछले तीन महीने से बिना किसी रुकावट के चल रहा था, घर में अपना व्यवहार इतना नार्मल रखा बन्दे ने कि बीवी भी ना समझ सकी कि उसका पंछी कौन सी उड़ान भर रहा था। लेकिन ये मुगालता था रुपेश का उसकी इस नई-नई आशिकी की खबर झब्बन लाल कॉलेज में पढ़ने वाले उसके बड़े बेटे कुल दीपक के जरिये सूरज मुखी को लग चुकी थी और वो उन दोनों को रंगे हाथ पकड़ कर उनका जलूस निकालने की फ़िराक में थी।

"आओ मैडम आज फग्गन कुल्फी वाले की दुकान से कुल्फी फालूदा खिलाता हूँ आपको।" —रुपेश ने इवनिंग क्लास खत्म होने के बाद लता से कहा।

"अरे क्या कुल्फी फालूदा जैसी वाहियात चीज की बात करते हो, आओ सिटी मॉल चलते है, मुझे कुछ ड्रेसेज लेनी है वही खाना खा लेंगे।" — लता रुपेश की कार में बैठते हुए बोली।

कॉलेज तक रोज लता का पति छोड़ जाता था और शाम को रुपेश उसे उसके घर तक छोड़ जाता था।

शाम का समय होने के कारण मॉल में अच्छी चहल-पहल थी। लेकिन आज स्टार नाइट होने की वजह से मॉल में एंट्री अपनी आई डी दिखा कर पास बनवाने के बाद ही रही थी। पास के लिए दो विंडो थी जिनपर महिलाए और पुरुष बारी-बारी से अपना पास बनवा कर मॉल में प्रवेश कर रहे थे। लता और रुपेश के पास बनने में आधा घंटा लगा, पास लेकर जैसे ही वो मॉल के अंदर घुसे तभी एक सूटेड-बूटेड अधेड़ उनकी तरफ बढ़ा बोला— "अरे लता जी आप तो अपनी प्रोफाइल फोटो के मुकाबले बहुत ही खूबसूरत हो, अच्छा हुआ आपने कल मैसेंजर से अपना प्रोग्राम बता दिया नहीं तो हम तो आपसे फेस टू फेस मिलने की उम्मीद ही छोड़ बैठे थे। और आप इस हलवाई के साथ कहाँ घूम रही हो, थोड़ा स्टैण्डर्ड का ख्याल भी रखा करो।"

"क्या बोला बे भैंसे मेरे से स्टैण्डर्ड खराब होता है तेरा, ला अभी स्टैण्डर्ड सही करता हूँ तेरा।" —कहते हुए रुपेश ने उस अधेड़ का गिरेबान पकड़ लिया।

"क्या करते हो रुपेश छोड़ो गिरेबान इनका ये मेरे मित्र है।" — लता गुर्रा कर बोली।

"बेटे मेरा गिरेबान पकड़ के अच्छा नहीं किया तूने, तेरा गुलफाम नगर में रहना ना भुला दिया तो मलखान सिंह नाम नहीं मेरा।"—अधेड़ अपना गिरेबान छुड़वाकर बोला।

"अबे जा जहाँ दिल करे निपट लेना मेरे से, तेरी सारी चर्बी उतार के रख दूंगा।" —रुपेश भी भड़क कर बोला।

लता ने बड़ी मुश्किल से दोनों को शांत किया और अपना गेट पास रुपेश के ऊपर फेंकते हुए बोली— "सम्हालो इस कचरे को।

रुपेश ने शांति के साथ लता का गेट पास अपने पास के साथ अपने पर्स में रख लिया। उसके बाद लता पैर पटकती हुई ड्रेस जोन में अपने लिए ड्रेस लेने जा पहुंची।

"अरे मैडम आप, मै साहू आपका ऑनलाइन फ्रेंड, बताइये क्या लेंगी आप ठंडा या गर्म? —एक फॉर्मल कपडे पहने शोरूम का एक सेल्समैन लता को देखते हुए बोला।

"साहू? —अच्छा मजनू गली वाले।" — लता मुस्कराते हुए बोली।

"अजी हम तो मजनू हो गए आपको देख के। ये हलवाई की दुम अपने साथ क्यों लगा रखी है, चलता करो इसे फिर करूंगा मै आपकी स्पेशल सेवा।" —सेल्समैन रुपेश को तिरछी निगाह से देखते हुए बोला।

"किसे बोला हलवाई की दुम?" —रुपेश उस सेल्समैन की गिरेबान पकड़ते हुए बोला।

"तुझे बोला दुमछल्ले एक सैकिंड में गिरेबान छोड़ दे नहीं तो मार-मार के दुम्बा बना दूंगा तेरा।"—सेल्समैन गुर्रा कर बोला।

रुपेश अपनी बेइज्जती पर भड़का हुआ था उसने सेल्समैन की गिरेबान ना छोड़ी, उससे छह इंच लंबा तगड़ा सेल्समैन उसे घसीट कर शोरूम से बाहर ले गया और पब्लिक के सामने रुपेश को जमीन पर गिरा-गिरा कर मारा। रुपेश ने मुकाबले की कोशिश की लेकिन कहाँ वो ४२ साल का आदमी और कहाँ वो २४ साल का लड़का, जब वो सेल्समैन उसे पीटते-पीटते थक गया तो वो पानी पीने शो रूम में चला गया।

"क्या आज अपनी बेइज्जती कराने का पूरा जिम्मा लेकर आये हो मेरे साथ? अब चलो यहाँ से, सारा मूड ख़राब करके रख दिया।" —लता गुस्से में पैर पटकते हुए बोली और खानसामा रेस्त्रां की और चल पड़ी।

"रुपेश की एक-एक हड्डी दर्द कर रही थी और वो गिरते-पड़ते लता के पीछे भागा जा रहा था।

मॉल में स्टार नाइट होने की वजह से रेस्त्रां में अच्छी खासी भीड़ थी, एक लंबे-तगड़े वेटर ने उन्हें बड़े अदब से एक टेबल पर बैठाया और फिर अचानक लता की और देखते हुए बोला— "अरे लता जी आप, देखिये क्या तकदीर है मेरी मै तो 'अड्डा' नाइट क्लब में बाउंसर था, लेकिन पुलिस ने रेड मारकर क्लब बंद करा दिया और मैं बेचारा यहाँ वेटरी कर रहा हूँ।" —वो वेटर लता की खूबसूरती को निहारते हुए बोला।

"कोई बात नहीं भोलू कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता।" —लता उस वेटर का नाम याद करते हुए बोली।

"भोलू नहीं कल्लू दादा है मेरा नाम, ये आपका पति है?" —कल्लू दादा ने फटे हाल रुपेश को हिकारत से देखते हुए पूछा।

"मेरा पति और ये! नहीं-नहीं ये तो ऐसे ही है।" —लता ने लगभग फुसफुसाते हुए कल्लू दादा से कहा।

"तो फिर इसके साथ यहाँ क्यों बैठी हो आओ मेरी स्पेशल रिजर्व्ड टेबल पर चलो मै आज तुम्हे स्पेशल सर्विस दूंगा और इस फटेहाल को घसीटा संभाल लेगा।" —कल्लू दादा पर्स्नल होते हुए बोला और स्नेह लता को अदब के साथ कोने की रिजर्व्ड टेबल पर ले गया।

जब तक डिनर चला तब तक रुपेश का ध्यान अपने खाने पर कम और कल्लू दादा और लता पर ज्यादा रहा। लता कल्लू दादा के साथ खूब हंसी मजाक कर रही थी और कभी-कभी रुपेश की और भी देख लेती थी।

"तुम्हारे तो कुछ ज्यादा ही फ्रेंड है।" —वापसी के सफर में रुपेश बिना लता की और देखे हुए बोला।

"क्या मतलब है तुम्हारा? तुम होते कौन हो ये सब बकवास करने वाले? ये बात कहने की हिम्मत तो आज तक मेरे पति की नहीं हुई तुम कौन होते हो कहने वाले? जैसे तुम हो ना वैसे ही वो सब भी है, इसलिए ज्यादा न उड़ो बस अपनी हद में रहो।" —लता गुर्रा कर बोली। 

"अच्छा मुझे औकात बताती है मेरी......उतर मेरी कार से और दफा हो जा।" —रुपेश भी गुर्रा कर बोला।

लता को एकदम ताव आया और वो कार रोकने को कहने ही वाली थी कि सुनसान सड़क को देख कर वो बोली— "अरे डियर जरा सी बात का बुरा मान गए, अरे वो सब तो ऑनलाइन फ्रेंड है असली फ्रेंड तो तुम ही हो मेरे रोज मिलने वाले।"

ये बात सुनकर रुपेश का गुस्सा शांत हो गया।

अगले दिन सुबह जब रुपेश सो कर उठा तो उसकी हड्डियां कल पड़ी मार की वजह से कड़कड़ा उठी और उसके मुंह से आह निकल गई।

"क्या हाय-तौबा मचा रखी है, लाओ १०० का नोट दो; कुल दीपक को जेब खर्च देना है। —सूरज मुखी बड़बड़ाते हुए बोली।

"पर्स से निकाल लो।" —कहकर रुपेश फिर से लेट गया।

जरा सी देर बीती थी कि सूरज मुखी की चिल्लाती हुई आवाज ने उसे अलर्ट कर दिया।

"कौन है ये चुड़ैल?"—सूरज मुखी रुपेश के पर्स से निकले लता का गेट पास को उसके के मुँह पर लहराते हुए बोली।

"ये......ये......अभी समझाता हूँ।

"तुम समझाओगे मुझे, ये मॉल का गेटपास है कल का, मैं यहाँ घर-गृहस्थी में उलझी थी और तुम इस चुड़ैल के साथ मॉल में तर माल खा रहे थे। आज मैं तुम्हें समझाऊंगी कि सूरज मुखी क्या चीज है।" —सूरज मुखी बरामदे के कोने में पड़े मजबूत झाड़ू को उठाते हुए बोली।

दस मिनट की जबरदस्त पिटाई के बाद रुपेश फटेहाल अपनी दुकान की और भाग चला क्योंकि घर से तो उसका दाना-पानी कई दिनों के लिए उठ चुका था।


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