तेनालीराम और लूका
तेनालीराम और लूका
राजा कृष्णदेव राय का दरबार लगा है; फरियादी जा चुके है अब हल्के-फुल्के विषयो पर हास-परिहास हो रहा है तभी दरबान दरबार में आकर बोला, "महाराज ग्रीस देश से बलशाली लूका आया है उसके पास एक तोता और एक शेर है वो आपसे मुकाबला करना चाहता है।"
राजा कृष्णदेव राय कुछ देर सोचते रहे और फिर बोले, "ठीक है उसे दरबार में आने दो।"
थोड़ी देर में दरबार में सात फ़ीट ऊँचा भूरे बालो वाला दैत्याकार पुरुष उपस्थित हुआ; उसके कंधे पर एक विशाल तोता बैठा था और उसके सीधे हाथ में एक मजबूत जंजीर थी। जंजीर से एक बहुत विशाल शेर बंधा था जो धीरे-धीरे गुर्रा रहा था।
तभी वह व्यक्ति एक अनजान भाषा में कुछ बोला और उसके बोलना बंद करते ही उसके कंधे पर बैठा तोता बोला, "महाराज मेरा नाम लूका है मै सुदूर ग्रीक देश से आया हूँ, मैं आपकी भाषा नहीं बोल सकता लेकिन मेरा बुद्धिमान तोता प्लूटो पूरी दुनियां की भाषाए बोल सकता है, अब हम दोनों के बीच में जो वार्तालाप होगा उसे ये प्लूटो हम दोनों के लिए अनुवाद कर बोलेगा।"
"ठीक है कहो क्या कहना चाहते हो?" राजा कृष्णदेव राय शांत स्वर में बोले।
"महाराज मैं ग्रीक देश का सबसे बड़ा योद्धा हूँ मै आज तक युद्ध में हर प्रकार के इंसान और पशु को हरा चुका हूँ। जब मेरे देश में मुझसे लड़ने वाला कोई भी मनुष्य या पशु न बचा तो मैं अपने इन दोनों साथियों के साथ पूरी दुनिया को अपनी बुद्धि व बल के समक्ष नतमस्तक कराने निकल पड़ा हूँ........"
"तो यहाँ क्या करने आये हो?" राजपुरोहित उसे बीच में टोकते हुए बोला।
"महोदय आप दरबारी है आपको ज्ञात होना चाहिए कि महाराजा मुझसे बात कर रहे है तो आपको बीच में नहीं बोलना चाहिए।" लूका शांति से बोला।
"लूका आप बोलिए......." राजा कृष्णदेव राय राजपुरोहित की तरफ क्रोध से देखते हुए बोले।
"महाराज मेरी बुद्धि व बल को देख कर ग्रीक के महाराज ने मुझे अपनी सेवा में रखना चाहा था लेकिन फिर उनकी अनुमति से मै सारी दुनिया को अपनी अपनी बुद्धि व बल के समक्ष नतमस्तक कराने निकल पड़ा हूँ अब तक मै दुनिया के ११९ राजाओ को अपनी बुद्धि व बल से पराजित कर उनको अपने समक्ष नतमस्तक करा चुका हूँ......अब मै आपके राज्य में आ गया हूँ। अब मै आपसे मुकाबला करना चाहता हूँ।" लूका बोला।
"किस प्रकार का मुकाबला?" राजा कृष्णदेव राय बोले।
"महाराज मै आपसे बुद्धि और बल दोनों का मुकाबला करना चाहता हूँ, सबसे पहले बुद्धि का मुकाबला होगा। बुध्दि के लिए आपके लिए चुनौती है कि आप मेरे शेर के साथ एक रात उसके कमरे में बिताए अगर आप जिंदा बच जाएं तो आप अगले दिन उसे अखाड़े में खुले हाथ हराए। यदि आप उसे हरा देते है तो फिर आपको मुझसे मुकाबला कर मुझे हराना होगा।" कहकर लूका ने अपनी बात समाप्त की।
"क्या तुम सिर्फ महाराज से ही मुकाबला करना चाहते हो?" राजपुरोहित बोला।
"नहीं, यदि महाराज चाहे तो अपने राज्य के किसी अन्य नागरिक से मेरा बुद्धि और बल का मुकाबला करा सकते है लेकिन यह मुकाबला सिर्फ एक व्यक्ति ही करेगा।" लूका बोला।
"तो महाराज इस समय पूरे राज्य में तेनालीराम से बुद्धिमान और बलशाली कोई भी व्यक्ति नहीं है........" राजपुरोहित महाराज को संबोधित करते हुआ बोला।
तभी राजा कृष्णदेव राय पुरोहित की बात काटते हुए बोले, "नहीं राजपुरोहित जी तेनालीराम एक बुद्धिमान व्यक्ति है लेकिन......."
"कैसी बात करते है महाराज, मेरे रहते आप क्यों मुकाबला करेंगे......मैं बल और बुद्धि में लूका को हरा दूँगा।" तेनालीराम ने खड़े होते हुए कहा।
"अरे नहीं तेनालीराम तुम नहीं........"
"महाराज मै कल लूका से बुद्धि और बल दोनों का मुकाबला करूँगा यदि मै हार गया तो ये जो चाहे करे लेकिन अगर मै जीत गया तो इन्हे पाँच वर्ष मेरा अंगरक्षक बनकर रहना होगा; इन्हे मंजूर हो तो कल मुकाबला नियत कर दिया जाए।" तेनालीराम बोला।
"मंजूर है महाराज......" लूका तेनालीराम की कमजोर कदकाठी की तरफ देखते हुए बोला।
अगले दिन रात होने से पहले लूका अपने शेर का पिंजरा दरबार में लेकर आया और तेनालीराम को पिंजरे में जाने के लिए कहा।
तेनालीराम ने एक बार चिंतित महाराज की तरफ देखा और शेर के कमरे में प्रवेश कर गया। उसके शेर के पिंजरे में प्रवेश करते ही शेर के गुर्राने की आवाज आई और फिर सब शांत हो गया।
अगले दिन सुबह शेर वाले कमरे का दरवाजा खोला गया तो राजा कृष्णदेव राय बहुत चिंतित थे, लेकिन जब तेनालीराम अपनी आँखे मलते शेर के कमरे से बाहर आया तो वह आश्चर्यचकित रह गए।
तत्काल शेर और तेनालीराम को शाही अखाड़े ले जाया गया जहाँ प्रजा और दरबारियों की भीड़ जुटी हुई थी। निहत्था तेनालीराम और शेर अखाड़े में लाए गए। शेर ने तेनालीराम की तरफ देखा और फिर अखाड़े की भीड़ की तरफ देखा लेकिन तब तक तेनालीराम ने एक लंबी छलांग मार कर शेर को एक लात मारी। लात खाते ही शेर जमीन पर लेट गया और तेनालीराम उसकी सिर पर पैर रखकर खड़ा हो गया।
तेनालीराम दो मुकाबले जीत चुका था, लेकिन उसकी जीत पर अब तक किसी को विश्वास नहीं हो रहा था।
तीसरा मुकाबला शक्तिशाली लूका से होना था। उस मुकाबले की सोच कर राजा कृष्ण देवराय बहुत चिंतित थे। थोड़ी देर बाद मदमस्त हाथी की तरह झूमता लूका तेनालीराम से कुश्ती लड़ने आया। कुश्ती शुरू हुई तो लूका ने एक जबरदस्त लात तेनालीराम को मारी और तेनालीराम हवा में उछल कर अखाड़े में आ गिरा लेकिन अगले ही पल वह उठ खड़ा हुआ और दौड़ कर अपने सिर की एक टक्कर लूका के पेट पर मारी। लूका दर्द से कराहा और अखाड़े में नीचे गिर गया। तेनालीराम फुर्ती से उछल कर एक बार फिर उसके पेट पर गिरा और लूका ने हाथ जोड़कर हार मान ली।
राजा कृष्णदेव राय को अब तक तेनालीराम की जीत पर विश्वास नहीं हो रहा था, वो अपने महल में वापिस आ गए और तत्काल तेनालीराम को महल में बुलवाने का आदेश दिया।
"तेनालीराम मुझे अब भी तुम्हारी विजय का विश्वास नहीं है......मुझे सत्य जानना है कि किस प्रकार तुम शेर के कमरे में जीवित रहे और किस प्रकार तुमने शेर और लूका को हरा दिया।
"महाराज आप तो सर्वज्ञ है; आप सब समझ चुके है लेकिन फिर भी आपकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए बता देता हूँ।" तेनालीराम अपने दोनों हाथ जोड़ कर राजा कृष्णदेव राय के समक्ष नतमस्तक होते हुए बोला।
"बताओ......." राजा कृष्णदेव राय बोले।
"महाराज कल जब लूका अपने शेर और तोते के साथ दरबार में आया तो मै समझ गया था कि लूका मांसभक्षी देश से आया है तो मांसभक्षण ही करेगा....उसका शेर तो मांसभक्षी है ही.........." तेनालीराम बोला।
"तो क्या तुमने उनके खाने के मांस में कोई दवा मिलवा दी........" राजा कृष्णदेव राय बोले।
"नहीं महाराज ऐसा करने से तो आपकी ख्याति पर दाग लग जाता कि मुकाबले में धोखा हुआ......." तेनालीराम बोला।
"महाराज दोनों जब दरबार में आए तो शेर और लूका कम से कम दो दिन से भूखे थे; क्योकि हमारे सबसे नजदीक राज्य की दूरी भी पाँच दिन से अधिक की है, उनके पास अधिक से अधिक तीन दिन का भोजन रहा होगा, वो समाप्त होने के उपरांत वो भूखे ही रहे होंगे; मैंने उनकी भूख को उनके विरुद्ध हथियार बनाया और अगले ही दिन मुकाबला करने की बात रख दी।" तेनालीराम बोला।
"भूख को हथियार कैसे बनाया?" राजा कृष्णदेव राय ने पूछा।
"महाराज जिस सराय में लूका ठहरा है वहाँ के मालिक को मैंने उन्हें सामान्य दाम में दुगना खाना खिलाने के लिए कहा। सराय का मालिक बहुत मक्कार है उसने अपना घाटा बचाने के लिए शेर और उसके मालिक को मृत पशुओ का मांस खिलाया जो कभी-कभी पेट सम्बन्धी समस्या पैदा करता है। कल जब मै शेर के पिंजरे में गया तो मै अपने साथ पुनः मृत जानवर का मांस ले गया जिसे मै सारी रात शेर को खिलाता रहा। शेर पालतू था मेरे हाथो उसने आराम से मांस खाया और अत्यधिक पेट भरा होने के कारण अखाड़े में लेट गया और मै विजयी हुआ।" तेनालीराम बोला।
"और लूका को कैसे हराया?" राजा कृष्णदेव राय ने पूछा।
"महाराज सराय का सड़ा मांस खाकर लूका बीमार था मेरे सेवको ने बताया वो सारी रात खराब खाने की शिकायत करता रहा और पेट दर्द के लिए वैध की मांग करता रहा, लेकिन मैंने सुबह उसे वैध से मिलने का अवसर न दिया और मुकाबले के लिए ललकार दिया और मुकाबले में पहले से दुखते उसके पेट पर दो बार प्रहार कर उसे धरासाई कर दिया।" तेनालीराम बोला।
"अच्छा हुआ हमने उसे महल में ठहरने का निमंत्रण न दिया क्योंकि यहाँ ऐसा नहीं होने दिया जाता।" राजा कृष्णदेव राय बोले।
"सत्यवचन महाराज.......तब मै कोई दूसरा उपाय सोचता। अब लूका मेरा दास है उसका वैध से इलाज कराकर पाँच साल अपने सामान्य कार्य कराऊंगा तब तक विश्व के समस्त राजाओ को अपने सामने नतमस्तक कराने का उसका स्वप्न टूट चूका होगा।" तेनालीराम ने राजा कृष्णदेव राय से जाने की अनुमति लेते हुए कहा।