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Vikas Wings

Horror

4  

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तैरती हुई लाश

तैरती हुई लाश

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सूर्यउदय का समय था और एक लगभग 50 वर्षीय व्यक्ति तालाब की ओर से दौड़ा चला आ रहा था। उस व्यक्ति का नाम छोटेलाल था। जैसे ही वह हरिया के घर के नजदीक पहुंचा तो चिल्लाते हुए कहता है, “अरे ओह हरिया! कहां मर गया? तालाब में एक लाश तैर रही है।

हरिया सुनते ही घर से निकाला और कहता है, “का केह रहे हो भैया, तनिक ध्यान से देखते लाश वाश नहीं होगी।”

हरिया की पत्नी घर के द्वार से सब सुन रही थी।

छोटेलाल - “अरे हरिया! वो लाश ही है, मेरी तो देखते ही जान निकल गई तौय मेरी बात पे विश्वास न हो रहो हो तो तू खुद चल के देख ले।”

हरिया - "चलो भैया!"

हरिया और छोटेलाल तालाब की ओर निकले ही थे कि हरिया के पत्नी ने गांव में जाकर कह दिया कि तालाब में लाश पड़ी हुई हैं।हरिया और छोटेलाल तालाब के पास पहुंचे। हरिया ने तालाब में हर तरफ देखा लेकिन उसे लाश कहीं नाराज नहीं आई। छोटेलाल कह रहा था कि लाश यहीं पीपल के पेड़ के समांतर तालाब में तैर रही थी।तब तक वहां गांव के अन्य लोग भी पहुंच गए। सब ने मिलकर देखा तो तालाब में कहीं भी लाश नहीं थी।

हरिया ने छोटेलाल से कहा, “मोय लागे, तोय कोई वहम था, लाश वाश ना हाती।”

छोटेलाल - "अरे हरिया जा बता मैं का तोशे जूठ बोलूंगा, और जूठ बोलके मोय का मिल जागो।"

गांव का एक व्यक्ति कहता है, “अरे छोटे भैया, तुम जूठ नहीं बोल रहे हो लेकिन कभी कभी का होय कि हमें वहम हो जाए। बाकी बात और कछु नहीं हैं।”

सब ने मिलकर छोटेलाल से कहा कि तुझे वहम होगा तो छोटेलाल ने भी मान लिया कि उसे वहम होगा।  लेकिन छोटेलाल को पूरा विश्वास था कि उसने तालाब में लाश देखी है।

हरिया घर पहुंचा तो उसके घर के घर की सभी महिला इस इंतजार में बैठी थी कि उसमें किसी की लाश है। हरिया के आते है ही सब पूछने लगी कि तालाब में किसी की लाश है। हरिया जबाव देता है, “अरे भाभी कोई की लाश नहीं थी तालाब में वो तो बस छोटे भैया को, कोई वहम हुआ होगा कि लाश है। रात में कोई सपना देखा होगा तो, मोए ऐसों लगे है कि सुबह वो अचानक तालाब में दिखाई दे गया होगा।”

वे सभी महिलाएं अपने अपने घर चली जाती है, लेकिन गांव में इस तरह कि बातें आग की तरह फैलती है।

आधा एक घंटा में ही यह बात पुरे गांव में फैल गई थी। कुछ को लग रहा था कि यह मात्र छोटेलाल का वहम है, तो कुछ यह भी मान रहे थे कि शायद तालाब में लाश थी, लेकिन जब सब गए होंगे तो वह कहीं गायब हो गई होगी। बरहाल सच क्या था यह तो किसी को पता नहीं था, लेकिन सिर्फ लाश के डर से ही गांव वालों में अपने बच्चों को तालाब के पास जाने से इंकार कर दिया था, जिन्हें लग रहा था कि वहां लाश नहीं है उन्होंने भी अपने बच्चों को तालाब में जाने से मना कर दिया था।

भाले ही गांव वालों को लग रहा था कि वह छोटेलाल को मात्र एक वहम है, लेकिन पूरा गांव में उस लाश का डर जरूर था।लगभग 1 महीना बीत गया, लेकिन दुबारा फिर कभी, किसी को तालाब में लाश नहीं दिखी। अब तालाब पर दुबारा बच्चे और बूढ़े सभी जाने लगे थे। गर्मियां भी खत्म होने वाली थी।

14 जून के आस पास साल की पहली बारिश भी हो गई लेकिन दुबारा किसी ने उस लाश को नहीं देखा।

धीरे धीरे बारिश से ही तालाब में थोड़ा जल स्तर बढ़ गया था। 14 जून से बारिश शुरू हुई थी और 20 जुलाई आ गई। हर रोज बादल बरसते रहे थे। लेकिन लगभग जुलाई के अंत में बहुत तेज बारिश हुई और तेज बारिश के कारण तालाब की नहर खोलने तक की नौबत आ गई।गांव के मुखिया ने जल अधिकारों से बात कर के तालाब की नहर चालू कर ने का फैसला लिया।अधिकारी कुछ मजदूरों के साथ नहर खोलने गए तो जहां नहर से पानी तालाब से बाहर की ओर जाना था वही वह लाश पुनः दिखाई दी।

जब मजदूरों को लाश दिखी तो उन्हें नहर खोलने से पहले तय किया कि “नहर खोलने से यह बात अधिकारी को बताई जाए।”

अधिकारी थोड़े ही दूर मुखिया के साथ बात कर रहा था। जब मजदूर अधिकारी के पास पहुंचे और अधिकारी को बताया कि “जहां नहर है, वहीं एक लाश पड़ी है।”

जैसे ही मुखिया ने सुना तो वह समझ गया कि यह वही लाश है। मुखिया ने तनिक भी समय नहीं लिया और दौड़ कर नहर के पास पहुंच गया। लाश को देखते ही मुखिया के पसीने छूट गए, क्योंकि उस लाश में उसे अपने मरे हुए पिता जी पी छवि दिख रही थी। मजदूरों ने पहले लाश के चेहरे पर गौर नहीं किया था।

जब मुखिया ने उन्हें बताया कि इसमें मेरे मारे हुए पिता की छवि दिख रही है। तो उन्होंने लाश को देखा तो उन्हें भी अपने उन सगे संबंधियों के चेहरे दिखने लगे जिन्होंने कुछ समय पहले ही इस दुनिया को अलविदा कहा था। सारे मजदूर कांप उठे, बारिश में भी शरीर पर पसीना आ गया था। मुखिया और अधिकारी के साथ वहां खड़े तो थे लेकिन डर से कांप रहे थे।

मुखिया ने लाश की सूचना पुलिस को दी, मौके पर ही पुलिस पहुंच गई। पुलिस ने आके देखा और तय किया कि नहर को धीरे धीरे खोलें तो उस पार लाश आसानी से निकली जा सकती है।

मजदूर डर से कांप रहे थे, लेकिन उन्होंने किसी तरह नहर को खोलने का कार्य शुरू किया। दूसरी तरफ दो पुलिस कर्मी ने लाश पकड़ने के लिए खड़े थे।

मजदूर धीरे धीरे नहर खोलने का कार्य कर रहे थे। जैसे ही थोड़ा सा नहर का द्वार खुला और नहर में पानी आया लाश द्वार में आ फसी। पुलिस कर्मियों ने लाश खींचने की कोशिश की लेकिन वह उसे खींचने में असमर्थ रहे। पुलिस कर्मियों ने कहा की द्वार थोड़ा और खोल दिया जाए, जिससे हम लाश खींच सके।मजदूरों ने फिर से अपना द्वार खोलने के लिए प्रयास किया लेकिन इस बार वह टस से मस नहीं हुआ।मजदूरों से द्वार नहीं खुल पा रहा था, तो अधिकारी और मुखिया दोनों ने भी द्वार खुलवाने का प्रयास किया।

सब मिलके प्रयास कर रहे थे और अचानक द्वार पूरा खुल गया और जो पुलिस कर्मी उस लाश को खींच रहा था, उस पुलिस कर्मी को लाश अपने साथ बहा ले गई। बाकी पुलिस कर्मी लाश के साथ साथ दौड़े लेकिन मुखिया, अधिकारी और मजदूर गांव की ओर दौड़े।

बचालो! बचालो! चिलाते हुए गांव की ओर दौड़े।

पुलिस कर्मियों ने काफी दूर तक लाश का पीछा किया लेकिन वह अचानक गायब हो गई। पुलिस ने उसी समय गोताखोरों को बुलवाया, कई किलोमीटर दूर नहर में जाल भी बिछा दिया। लेकिन पुलिस को न तो लाश मिली और ना ही वह पुलिस कर्मी जो लाश के साथ बह गया था।पुलिस ने लगभग 8-10 दिन उस रहस्यमई लाश और इस पुलिस कर्मी की तलाश की लेकिन पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा। उस घटना के बाद गांव में डर का माहौल था, बच्चे तो बच्चे, बड़े व्यक्ति भी रात में बाहर निकलने से डर रहे थे। तालाब से तो गांव का संबंध ही टूट गया था। बच्चे डर से रात रातभर रोने लगे। मुखिया उस हादसे को सह नहीं पाया और लगभग 20 दिन बाद ही मृत्यु हो गई।

मुखिया की मृत्यु के बाद गांव में से कोई भी अकेला गांव से बाहर नहीं जाता था।लगभग उस घटना के डेढ़ महीने बाद पास के गांव में (जहां से नहर गुजरती थी), वहां एक व्यक्ति ने फिर लाश को तैरते हुए देखा। उस गांव के लोगों ने भी पुलिस को बुलाया लेकिन उतने समय में वह लाश वहां से गायब हो गई। किसी ने तांत्रिक को बुलाने की भी सलाह दी। कुछ दिन बाद गांव वाले एक तांत्रिक को भी लाए, लेकिन तांत्रिक से कुछ हुआ नहीं।

उसके बाद उस गांव में हर रोज किसी न किसी को वह लाश दिखती, लेकिन कुछ ही क्षण में गायब हो जाती। हर बार लाश अलग स्थान पर दिखती थी। लाश में कुल मिलाकर 13 लोगों को अपना शिकार भी बना लिया था।

आप-पास के गांव में यह उस रहस्यमई लाश का डर आग को तरह फैल रहा था। लोगों ने डर के मारे, किसी भी तालाब के पास जाना बंद कर दिया।

बादल में बिजली भी कड़कती थी, तो जैसे आज लाश कह रही है कि वह किसी और को ले लाएगी। बारिश की एक- एक बूंद एक तीर की तरह लगती थी। बारिश की बूंद जो लोगों पर घाव कर रही थी, वह घाव दिख जरूर नहीं रहा था, लेकिन इस घाव से इंसान अंदर ही अंदर मर रहा था।

यह खबर एक ब्राह्मण को पता चली कि एक तैरती हुई लाश लोगों को अपना शिकार बना रही है। वह ब्राह्मण उस गांव में आए जहां लाश को अंतिम बार देखा गया था।

उस ब्राह्मण का नाम पंडित अवधनारायण था। उस ब्राह्मण ने अपनी ज्योतिष शास्त्र से तैरती हुई लाश को, अजीवन में अदृश्य कर दिया और बिना रुके तैरती रहने के लिए बाध्य किया।उसके बाद वह लाश किसी को नहीं दिखाई दी, लेकिन डर आज भी बना हुआ है। आज भी उस गांव में तैरती हुई लाश के नाम से लोग कांपने लगते है।



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