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गांव की दिवाली

गांव की दिवाली

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भारत गांवों का देश है। भारत की लगभग 65 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती हैं। अगर छोटे मोटे कस्बें छोड़ दें, तो ज्यादातर गांवों में कृषि ही एक मात्र व्यवसाय हैं। भारत के अधिकतर त्यौहार फसल कटते समय या फसल काटने के बाद ही आते हैं। दिवाली भी बारिश की फसल आने के बाद या किसी वर्ष फसल के साथ साथ दिवाली आती हैं। आज हम उसी गांव की दिवाली और गांव की फसलों की ही एक ऐसी अनसुनी कहानी की बात करेंगे जो प्रेरणाओं से भरी हुई है।


आज हम रामपुर के गांव के ऐसे किसान परिवार के बारे में जानेंगे जो बहुत ही कर्मठशील है। इस परिवार के मुखिया है उमेद सिंह जी। उमेद सिंह जी का एक छोटा सा परिवार है जिसमें उनकी पत्नी रामवती सिंह व गोलू और सिम्मी दो बच्चे हैं। उमेद सिंह जी के माता पिता भी उनके साथ ही रहते हैं। उमेद सिंह जी के परिवार में कुल मिलाकर 6 सदस्य हैं।


उमेद सिंह जी की उम्र 38 वर्ष, उनकी पत्नी की उम्र 35 वर्ष व गोलू की उम्र 12 वर्ष और सिम्मी की उम्र 15 वर्ष थी।

उमेद सिंह जी एक छोटे किसान थे, उनके पास सिर्फ 6 बीघा जमीन थी। इसके बाद भी वह अपने परिवार के साथ आनंदमय जीवन व्यतीत कर रहे थे। उमेद सिंह जी थोड़े में भी खुश होने वालें इंसान थे। परिवार खुश रहे बस, इससे बड़ा उनका कोई सपना नहीं था। 


मई माह में अपनी बहन के बेटे की शादी से लौटने के बाद ही उन्होंने बारिश की फसल की तैयारियां शुरू कर दी थी। क्योंकि बारिश की फसल के बाद दिवाली आने वाली थी और दिवाली पर बच्चों के लिए कपड़े और गोलू भी जिद्द कर रहा था कि उसे भी साइकिल चाहिए क्योंकि उसके मामा ने अपने बेटे को नई साइकिल दिलाई है। 


उमेद सिंह ने खेत में खाद डाल दिया था बस बारिश के इंतजार कर रहे थे कि कब बारिश हो और वह खेत में बीच डाले और इस बार अच्छी पैदावार करे जिससे वह अपने बच्चों के सपने पूरे कर पाएं। 


टीवी और समाचार पत्रों में बताया था कि मानसून 18 जून को आ जायेगा लेकिन 25 जून आ गया था और अभी तक पानी की एक बूंद भी नहीं गिरी थी। उमेद सिंह जी को लगाने लगा था कि इस बार मानसून देरी से आएगा और फसल दिवाली के बाद कटेगी।


लेकिन अंतः 30 जून को साल की पहली बारिश हुई। सिम्मी और गोलू ने बारिश में भीग कर पहली बारिश का लुफ्त उठाया। उसके दूसरे ही दिन दोनों को बुखार भी आ गया तो उमेद सिंह ने थोड़ा सा पिट भी दिया। उस पिटाई का दोनों पर बिलकुल भी असर नहीं हुआ और शाम को फिर बारिश हुई और फिर जीभर के बारिश में मस्ती की। पहले दिन बारिश के भीगने से को बुखार आया था वो दुसरे दिन फिर से बारिश में भीगकर छू हो गया।


2 दिन की जोरदार बारिश के बाद खेत इस लायक हो गए थे कि उनमें बीज डाल सकते थे। लेकिन उमेद सिंह जी को आशंका थी कि कहीं कल फिर से तेज बारिश हो गई तो बीज खराब हो जायेगा। इसलिए उन्होंने ने एक दो दिन इंतजार करना जरूरी समझा।


उन्होंने 2 दिन का इंतजार नहीं किया, 1 दिन बाद ही खेत में बीज डाल दिया। बीज डालने के 2 से ढाई घंटे बाद ही काले बादल आसमा में छाने लगे। उमेद सिंह जी के सारे परिवार ने सोच लिया था कि आज तो बीज खराब होने वाला हैं। उमेद सिंह जी को काले बादलों का तनिक भी भय नहीं था वो शांति पूर्वक अपने अन्य कार्यों में व्यस्त थे। उनकी पत्नी ने उनसे आकार कहा कि मेरा जी घबरा रहा हैं, मुझे डर लग रहा है कि आज बारिश हो गई तो बीज साढ़ जायेगा, फिर हमारे पास बीज भी नहीं हैं और इस समय बीज बहुत मंगा मिलेगा। उमेद सिंह जी कुछ कहते उसे पहले गोलू ने कहा मां आज बारिश नहीं होगी।


रामवती की ने गोलू से कहा “आज बारिश कहे नहीं होगी, देख रहा है काले बादल सर पे मंडरा रहे है और तू कह रहा हैं बारिश नहीं होगी।”

गोलू अपनी मां से पूछता है “मां आज हवा कैसी चल रही हैं?”


रामवती की कहती “तुझे खुद नहीं दिख रहा है कैसी चल रही हैं।


गोलू कहता हैं “मुझे दिख रहा है कि आज हवा पूर्व से पश्चिम की ओर चल रही हैं।


इतने में उमेद सिंह जी कहते है “और ज्येष्ठ मास में कभी भी पूर्व से पश्चिम की हवाओं में पानी नहीं गिरता हैं।


इतना सुनकर ही रामवती जी की घबराहट दूर हो गई थी। 

अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों ज्येष्ठ मास में पूर्व से पश्चिम की हवाओं में बारिश क्यों नहीं होती तो मैं आपको बता दूं कि भारत में मानसूनी हवाएं दक्षिण पश्चिम एवं दक्षिण से उत्तर या उत्तर से पश्चिमी की ओर चलती हैं। क्योंकि मानसून हवाएं बंगाल की खड़ी, अरब सागर एवं हिंद महासागर से होकर गुजरती हैं।


उमेद सिंह जी कोई वैज्ञानिक नहीं थे बस होने हवाओं का जरा सा ज्ञान था और ज्ञान से इंसान के व्यक्तित्व में निखार आता हैं वही निखर इस समय उमेद सिंह जी के व्यक्तित्व में नजर आ रहा था। उस दिन बारिश नहीं हुई तब जाके उमेद सिंह जी के परिवार ने चैन की सांसें ली।


4-5 दिन में फसल खेत में दिखने लगी और 10-12 दिन में खेत हराभरा हो गया।


फसल काफी अच्छी थी तो सिम्मी ने भी देर नहीं की और एक लकड़ी में बांधकर एक काला मटका खेत में टांग आई।

उमेद सिंह जी ने फसल में कई तरह तरह के कीटनाशक दवाएं का छिड़काव कर दिया जिससे फसल में किसी भी तरह का कोई कीड़ा न लगे, क्योंकि अगर एक बार कीड़ा फसल में लग गया तो सारी फसल को नष्ट कर देता हैं।


गोलू ने सोचा की फसल अच्छी आई तो उसे मांगी साइकिल मिलेगी तो उसने स्कूल जाना बंद कर दिया। पहले दिन गोलू पर किसी ने ध्यान नहीं दिया कि वह मांगी साइकिल के लालच से स्कूल नहीं जा रहा है। लेकिन जब दूसरे दिन भी वह सुबह से ही खेत में जा पहुंचा तो उमेद सिंह जी के उससे पूछा कि “बेटा आज स्कूल की का छूटी हैं।”


गोलू कहता हैं “नहीं! खेत में अच्छी फसल निकले इसलिए मैं खेत में काम कर रहा हूं।”


उमेद सिंह जी ने उसके बाद न कुछ कहा, न कुछ सुना बस गोलू की पिटाई शुरू कर दी और पीटते पीटते उसको स्कूल छोड़ा। उसके बाद काफी गोलू साइकिल के लालच में आकर खेत में नहीं गया। हर रोज स्कूल जाने लगा।


किसानों की जिंदगी इतनी आसान कहां होती हैं, उमेद सिंह ने खेत में बीज डाला, बीज से पौधा भी निकल आया लेकिन पौधा निकलते ही बारिश कहीं गायब हो गई।


पौधा लगभग 30 दिन का होने वाला था। उमेद सिंह जी की मां ईश्वर से हजारों मीनतें कर रही थी कि “हे ईश्वर बारिश करा दे नहीं तो मेरे बेटे का परिवार भूखा मर जायेगा।”

जब बारिश नहीं हूं तो गांव वालों ने मिलकर गांव के मंदिर पर अखण्ड रामायण का पाठ करवाया।


अब इसे चमत्कार कहूं या ईश्वर की कोई अलौकिक शक्ति अखंड पाठ के दूसरे दिन ही जोरदार बारिश हुई।


फिलहाल वो सब छोड़ते हैं। बारिश के होते ही पूरे परिवार के चेहरे पर एक खुशी की लहर थी और यह खुशी फसल के कटने से पहले तक बनी रही।


फसल कटने का समय आ गया था, चिलचिलाती धूप पढ़ रही थी तो उमेद सिंह जी पूरे परिवार के साथ फसल कटने में लग गए।2 दिन में मिलकर उन्होंने ने फसल काट दी और सोचा कि आज काफी थक गए है इसको कल मशीन से निकल लेंगे। 


सब बहुत खुश थे कि फसल बिना किसी मुसीबत की आराम से घर में आ जाएगी। उमेद सिंह की रात में नींद नहीं लग रही थी वह सोच रहे थे कि बस किसी तरह यह रात और निकल जाए उसके बाद तो वह सुबह होते ही फसल को मशीन से निकलवा लेंगे।


रात के 2 बज गए लेकिन उमेद सिंह जी को नींद नहीं आई रही थी।

ढाई बजे के तकरीबन वह सोए और साढ़े तीन बजे के करीब एक शोर सुनाई दिया, वह शोर सुनके उनकी आखें खुल गई, तब तक उन्हें उनकी मां की आवाज भी सुनाई दी, उनकी मां तेज स्वर में कह रही थी कि हे ईश्वर कुछ तो रहम कर, बस आज की तो रात थी।


उमेद सिंह जी अपने विस्तार पर पढ़े पढ़े यह सब सुन रहे थे।

वह शोर बारिश का था जो ज्यादा देर तक नहीं सुनाई दिया। लगभग 10-12 मिनट तक ही रहा था लेकिन उस 10-12 मिनट के शोर की वजह से उमेद सिंह जी की फसल 2 दिन बाद निकली। क्योंकि फसल भीग गई थी और भीगी फसल मशीन से नहीं निकल सकती थी।


दो दिन बाद फसल निकली, उमेद सिंह जी खुश थे, इतने परिश्रम के बाद फसल घर में आ गई थी। लेकिन बाकी सब ज्यादा खुश नही थे क्योंकि जो उन सब ने सोचा था फसल उससे कम निकली थी। गोलू भी अपने पिता से कह रहा था कि मैं स्कूल नहीं जाता और आपके साथ खेत में काम करता तो शायद फसल ज्यादा निकल सकती थी। 


उमेद सिंह जी ने बड़ी ही सहजता से गोलू से पूछा “अगर परसो कुछ घंटे बारिश हो जातिब्तो क्या होता?”


गोलू ने कहा “सारी फसल बारिश में नष्ट हो जाती।”


उमेद सिंह जी कहते है “बारिश की फसल सट्टा की तरह है, इसमें जरूरी नहीं की हर बार आप जीतें, कभी कभी आपको हारना भी पढ़ता हैं और अपनी किस्मत अच्छी हैं।

क्यों की न तो हम इसमें जीतें और नहीं हरें। जीतना है उसमें संतुष्ट रहना सीखो। जो व्यक्ति बहुत अधिक का लालच रखता हैं अंत में उसे थोड़ा भी नहीं मिल पता हैं।


गोलू को समझ आ गया और स्कूल के लिए निकल गया।

उमेद सिंह जी फसल में से अगले साल के लिए बीज निकाल कर बची हुई फसल बेंच आए। 


फसल बेंचने के बाद जो पैसे मिले थे, उनसे सबसे पहले गोलू के लिए एक साइकिल खरीदी और सिम्मी के लिए नए कपड़े, यह सब खरीदने के बाद भी पैसे बच रहे थे तो अपनी मां और पत्नी के लिए साड़ियां खरीद ली। 


दिवाली पर गांवों में जानवरों के लिए भी श्रंगार खरीदा जाता है क्योंकि की दिवाली के एक दिन बाद गोवर्धन पूजा होती हैं।

उमेद सिंह जी के पास 7-8 पालतू जानवर भी थे, जो उनके परिवार का ही एक हिस्सा थे। उनके लिए श्रंगार खरीदा और कुछ मिठाइयां बनाने के लिए समान व उसके बाद घर के लिए चल दिए।


दिवाली में बस तीन दिन बाकी रह गए थे। लेकिन उमेद सिंह जी बच्चों के लिए फटाखे नहीं लाए थे क्योंकि उन्हें पता था कि अगर वह अभी फटाखे ले गए तो दिवाली तक बच्चे सारे चला देंगे।


जब उमेद सिंह घर पहुंचे तो गोलू खुशी के मारे पागल हो गया नई साइकिल मिल गई थी। सिम्मी भी नए कपड़े मिलने पर खुश थी। उमेद सिंह जी ने जब मां को नई साड़ी दी तो वह पूछने लगी की अपने लिए क्या लाया हैं। तो उमेद सिंह ने हंसकर कहां मैं फसल बेचकर अपने परिवार की खुशियां खरीद के लाया हूं। मुझे इससे ज्यादा और कुछ चाहिए भी नहीं।


उमेद सिंह की मां ने कहा “जो खुद दिवाली पर नए कपड़ों और फटाखों के लिए रोया करता था आज वो पुराने कपड़ों में दिवाली मानने लगा है। मेरा बेटा इतनी जल्दी इतना बड़ा हो जायेगा मैंने कभी सोचा भी नहीं था।


उमेद सिंह कहते हैं “मां बहुत लंबा समय लगा है मुझे बड़ा होने में एक दो साल की बात नहीं है, पूरे 21 साल लगे हैं।

उमेद सिंह की मां ने उन्हें गले से लगा लिया और आखों में गरेरू आ गए।


मां के बाद उमेद सिंह ने अपनी पत्नी को नई साड़ी दी तो वो कहने लगी कि आप और पिता पुराने कपड़े पहनकर मनाएंगे तो बताइए मैं यह नई साड़ी कैसे पहन सकती हूं। उमेद सिंह अपने परिवार में को बस खुश रखना चाहते थे, और वो उसके लिए हर संभव प्रयास भी कर रहे थे।

उमेद सिंह जी दिवाली वालें दिन ही बच्चों के लिए फटाखे लेने बाजार गए। बच्चों को फटाखे और मिठाइयां लेकर आएं।


उमेद सिंह जी और उनके परिवार ने जुलाई से दिवाली की तैयारी शुरू की थी वो नवम्बर में जाके पूरी हुई।


बच्चें काफी खुश थे, बच्चों ने खूब फटाखे चलाएं और मिठाइयां खाई। गोलू ने अपने सारे दोस्तों को अपनी साइकिल की शहर करवाई। नई साइकिल को गोलू एक मिनट के लिए भी अकेला नहीं छोड़ रहा था। उमेद सिंह जी भी अपने परिवार को खुश देकर संतुष्ट थे।



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