आनंदमय जीवन का रहस्य
आनंदमय जीवन का रहस्य
प्राचीन समय में दो राज्य हुआ करते थे। पहला राज्य कुषाण व दूसरा डलकी। कुषाण राज्य एक समृद्धशाली राज्य था, जिसके पास धन की कमी नहीं थी। जबकि दूसरा राज्य डलकी कुषाण की अपेक्षा कम समृद्धशाली राज्य था।
अब मजे की बात यह है कि डलकी राज्य के लोग कुषाण राज्य की अपेक्षा में ज्यादा खुशहाल और आनंदमय जीवन व्यतीत कर रहे थे। कुषाण राज्य के राजा सूरजमल ने अपने राज्य के तीरथ ऋषि को डलकी राज्य भेजा कि “जाइए और देखकर आइए कि डलकी राज्य में ऐसा क्या है जो हमारे पास नहीं है, वहां के लोग इतने खुश कैसे रह रहे हैं।
कुषाण राज्य के राजा सूरजमल एक प्रतिभाशाली शासक थे। वे कुषाण राज्य को विकास की एक नई दिशा की ओर ले गए थे, लेकिन वह एक बात से काफी परेशान थे कि उनकी प्रजा के ज्यादातर लोगों में महुसी का भाव उत्पन्न हो चुका था और वह लोग अपने व्यक्तिगत जीवन में काफी दुखी रहने लगे थे। राजा सूरजमल सोचते थे कि उनका राज्य एक समृद्ध राज्य है, जहां के लोगों के विकास के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किया था, लेकिन इसके बाद भी क्या कारण है कि प्रजा में असंतोष भाव ने जन्म ले लिया है।
इस चिंता का एक और कारण कुषाण का पड़ोसी राज्य डलकी था। डलकी कुषाण की अपेक्षा में कम धनी राज्य था लेकिन वहां की प्रजा में संतोष था। डलकी की प्रजा खुशहाल और आनंदमय जीवन व्यतीत कर रही थी।
राजा सूरजमल के अंदर डलकी राज्य के लिए घृणा उत्पन्न होने लगी थी कि डलकी उनके राज्य की अपेक्षा कम धनी है इसके बाद भी वहां के लोग आनंदमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं और कुषाण राज्य समृद्ध है इसके बाद भी यहां की प्रजा दुखी है।
राजा ने सोचा कि क्यों न वह अपना एक दूत डलकी भेजे और वह वहां जाकर शोध करें कि वहां के लोगों के पास ऐसा कौन सा अनमोल रत्न है, जो कुषाण राज्य के पास नहीं है।
राजा सूरजमल ने एक तीरथ नाम के ऋषि को इस शोध के लिए योग्य समझा क्योंकि तीरथऋषि, मोह माया और इच्छाओं का त्याग कर चुके थे।
राजा सूरजमल ने डलकी राज्य के राजा मानसिंह को एक पत्र लिखकर सूचित किया कि उनके राज्य के एक मुनि तीरथ ऋषि डलकी आ रहे है वह कुछ समय तक डलकी में ही रुकेंगे।
तीरथ ऋषि कुछ दिनों पश्चात डलकी पहुंचे। वहां राजा मानसिंह ने उनका स्वागत किया। सूरजमल ने तीरथ ऋषि के साथ बहुत सारा धन पहुंचाया था जो राजा मानसिंह ने उसी समय प्रजा में बंटवा दिया। यह देख तीरथ ऋषि के मन में एक आश्चर्य भाव ने जन्म लिया। क्योंकि यह धन राजा सूरजमल ने राजा मानसिंह लिए भेजा था न की डलकी राज्य की प्रजा के लिए, और राजा मानसिंह को यह स्वयं ही रखना था।
तीरथ ऋषि ने कुछ समय उपरांत राजा मानसिंह से पूछा “महाराज! राजा सूरजमल ने वह धन आपके लिए भेजा था, ना की आपकी प्रजा के लिए।”
राजा मानसिंह ने बड़ी ही सरलता से इस प्रश्न का जवाब दिया “ऋषिवर यह धन है अगर इसे मैं संभाल कर रखता तो यह वर्षों तक उतना ही रहता था, जितना राजा सूरजमल ने मुझे दिया था। लेकिन अब प्रजा इस धन को अपने कार्यों में या जरूरतों के रूप में उपयोग कर के उससे अधिक धन अर्जित करेगी और फिर कर(ब्याज) के रूप में वह मुझे वापस कर देगी। इससे प्रजा भी खुश रहेगी और राजा भी।”
मानसिंह के वचनों ने तीरथ ऋषि के मन ने उनके लिए एक अलग स्थान बना लिया था।
तीरथ ऋषि ने वहां के लोगों से जानना शुरू कर दिया था कि क्या कारण है जो वह इतना खुशहाल और आनंदमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
तीरथ ऋषि जब कुषाण से आए थे तो वह सिर्फ 1 माह के लिए डलकी आए थे। लेकिन वह डलकी में 6 माह से भी अधिक समय बीताकर गए। खास बात यह है कि वह डलकी से अपनी इच्छानुसार नहीं गए। जब वह 6 माह तक लौटकर कुषाण नहीं पहुंचे तो राजा सूरजमल ने कुछ सैनिकों को तीरथ ऋषि का हाल जानने के लिए भेजा, जब वे सैनिक वापस कुषाण पूछें और उन्होंने बताया कि तीरथ ऋषि वहीं अपना एक आश्रम बनाकर रहने लगे है तब राजा सूरजमल ने राजा मानसिंह को एक पत्र लिखा की सैनिक तीरथ ऋषि को लेने आ रहे है, उनकी वापस कुषाण लौटने की व्यवस्था कर दी जाए।
तब जाके तीरथ ऋषि वापस कुषाण आए। अब सवाल यह है कि ऐसा क्या था डलकी के पास, जो हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। तीरथ ऋषि ने डलकी के लोगों पर शोध भी किया, लेकिन इसके बाद भी वह डलकी छोड़कर नहीं जाना चाहते थे।
जब तीरथ ऋषि वापस लौटे और राजा सूरजमल ने उनसे पूछा की मुनि आप जिस उद्देश्य से डलकी गए थे, क्या आपको उस उद्देश्य की पूरा हुआ?
तीरथ ऋषि ने बड़े ही सहज भाव से कहा “महाराज अगर मुझे उस उद्देश्य की प्राप्ति नहीं हुई होती तो शायद मैं कब का कुषाण वापस लौट आता। मैं उस आनंदमय जीवन का लाभ लेकर आया हूं, जो शायद कुषाण में संभव नहीं हैं।”
सूरजमल कहते है, “डलकी वासियों के पास ऐसा कौन सा गुप्त धन है जिसको हम प्राप्त नहीं कर सकते।”
तीरथ ऋषि कहते है, महाराज मैं आपको बता तो सकता हूं कि उनके पास कौन सा गुप्त धन लेकिन उससे पहले आपको उस धन को महसूस कराना चाहता हूं। मैं जब कुषाण से डलकी गया था, तब आपने जो धन डलकी के राजा के लिए भेजा, वह उन्होंने प्रजा में बांट दिया।
राजा सूरजमल ने हंसते हुए कहा, “यह कोई गुप्त धन नहीं बल्कि राजा मानसिंह की एक गुप्त मूर्खता है।”
तीरथ ऋषि कहते है, “महाराज शायद आपकी नजरों में यह एक मूर्खता हो, लेकिन यह एक अच्छे शासक का सबसे शक्तिशाली गुण है कि वह अपनी सफलताओं को अपना न बताकर उस सफलता का श्रेय सारे राज्य को दे।”
राजा सूरजमल कहते है, “अगर ऐसा है, तो मैं अपना सारा धन प्रजा में बंटवा दूंगा।
तीरथ ऋषि कहते है, “महाराज आपको अपनी भावनाओं पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है। आप जल्दबादी में कोई फैसला न ले। यह मात्र उस आनंदमय जीवन की रूप रेखा है, संपूर्ण जीवन परिचय के लिए आपको धैर्य बनाए रखने की जरूरत हैं।“
तीरथ ऋषि ने अपने डलकी के अनुभवों को राजा सूरजमल के समक्ष प्रस्तुत करना प्रारंभ किया।
तीरत ऋषि कहते है महाराज मैं एक दिन दोपहर के समय डलकी राज्य में प्रजा से जानने की कोशिश कर रहा था कि क्या कारण है जो वह इतना आनंदमय जीवन व्यतीत कर रहे है। उस दिन अचानक बे-मौसम बरसात होने लगी। तब मैं एक पास के मकान में गया या यूं कहें कि मैं एक झोपड़ी में बरसात से बचने गया। उस झोपडी की छत में हर तीन गज बाद पानी टपक रहा था तो मैंने झोड़पी के मालिक से पूछा, “इस छत से हर तीन गज बाद पानी क्यों टपक रहा है?” इसे ठीक क्यों नहीं करते? तो उस व्यक्ति ने मुझे जबाव दिया “ऋषिवर आप मेरे घर को देखिए।”
मैं थोड़ा सा आश्चर्य में पड़ा कि यह क्या कह रहा है, लेकिन मैंने थोड़ी देर उसकी झोपड़ी को देखा तो मुझे ऐसा कुछ भी नहीं दिखा जो मुझे यह बताए कि इस झोपड़ी की छत में हर तीन गज बाद पानी क्यों टपक रहा है, मैंने जबाव देते हुए कहा “मैंने आपके इस घर को देख चुका हूं।”
उसने फिर कहा “ऋषिवर फिर भी आप एक बार पुनः देखिए।”
मुझे समझ नहीं आ रहा था वह ऐसा क्यों कह रहा था। मैंने उसके कहने पर उसकी झोपड़ी को पुनः ठीक तरीके से देखा तो पाया कि जहां जहां से पानी टपक रहा था वहां मिट्टी के गमले रखे हुए थे। तब मैंने उससे कहा कि “छत से पानी गिर रहा है उस जगह मिट्टी के गमले रखे है, एवं उन गमलों में कमल खिल रहा है।”
उस व्यक्ति ने पुनः कहा “ऋषिवर शायद आपने अभी भी मेरी झोपड़ी को ठीक तरह से नहीं देखा।”
अब मैं पूरी तरह निःशब्द हो चुका था, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि झोपड़ी में ऐसा क्या है जो वह व्यक्ति मुझसे बार बार देखने को कह रहा है। जब मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया तो मैंने उस व्यक्ति से पूछा कि ऐसा क्या है इस झोपड़ी में, जो मुझे नहीं दिखाई दे रहा है।
उस व्यक्ति ने जबाव दिया “इस झोपड़ी में एक अनुशासन है। इस में रखी हुई है चीज हर दिन अपने उचित स्थान पर होती क्योंकि अगर वह वस्तु उसके उचित स्थान के अलावा कहीं और रखी गई और आज की तरह अचानक बरसात होने लगी तो वह भीग जाए।”
तब मैंने पूछा कि फिर गर्मी और सर्दी के मौसम तो यह हाल नहीं होगा क्यों कि उस समय बारिश नहीं होती है और बारिश में भी वह वस्तु कैसे भीगेगी क्योंकि जहां जहां छेद है वहां तो गमले रखे हुए हैं।
तब उस व्यक्ति ने कहा “ऋषिवर आपको एक बड़े ही मजे की बात बताता हूं कि जब बारिश नहीं होती तो आसमान में सूरज निकलता है और छत के इन छेदों से सूरज की रोशनी आ कर यह बता देती है कि यहां कोई भी वस्तु नहीं रखी जायेगी।”
उसके बाद मैंने पूछा “कभी कभी ऐसा भी होता कि सूरज बादलों में छिपा होता है उस स्थिति में आप क्या करते है?”
व्यक्ति ने कहा “ऋषिवर अगर आप बुरा न माने तो एक प्रश्न मैं आप से पूछूं? उसके बाद मैं आपके प्रश्न का जवाब दूंगा।”
मैंने कहा “बिलकुल पूछिए!”
वह व्यक्ति कहता है “अगर कोई व्यक्ति एक दिन किसी कारण से सो नहीं पाता है तो क्या वह अगले दिन भी नहीं सोएगा?”
मैंने ने कहा “नहीं। शायद अगले दिन तो उसे नींद इतनी जल्दी आ जायेगी की शायद वह भोजन भी न करे और सो जाए!”
तब उस व्यक्ति ने जबाव दिया “अगर एक दिन मेरी झोपड़ी की वस्तुएं बिखरी भी पड़ी रही तो कोई बात नहीं लेकिन दूसरे दिन मुझे और मेरे पूरे परिवार को चिंता होगी कि हम वस्तुएं अपने स्थान पर क्यों नहीं रख पाए।”
मैंने उस व्यक्ति को सुझाव देते हुए कहा, “इससे अच्छा तुम छत के छेदो को सुधार सकते हो।”
उस व्यक्ति ने कहा है “आवश्यकता से अधिक सुविधाएं इंसान को आलसी बना देती हैं।”
तब तक बारिश थम गई थी और मैं उस झोपडी से बाहर आया और महल की ओर चल दिया....
इतना सुनकर ही सूरजमल कहते है “अगर ऐसी ही बात है तो हमारे राज्य में भी हम लोगों के मकान में छेद करवा देते है।”
तीरथ ऋषि कहते है “महाराज! यह आप क्या कह रहे है।
“अगर इससे हमारे राज्य के लोगों में अनुशासन आ सकता है वह खुश रह सकते है तो हम उनके घर की छत पर छेद करवा देते है।” राजा सूरजमल ने कहा,
तीरथ ऋषि कहते है, “महाराज अनुरोध है कि आप मेरे डलकी के पूर्ण अनुभव को सुनने के बाद कोई निर्णय ले।”
इतना कह कर तीरथ ऋषि ने फिर से अपने अनुभव को बताना शुरू किया!
तीरथ ऋषि कहते है, “महाराज जब मैं महल से नगर के लिए प्रस्थान करता था तो रास्ते में एक बड़ा सा खेत रास्ते में आता था, जिस पर कुछ गुलाम कार्य किया करते थे और उनका मालिक दिन भर उन पर नजर रखा करता था। मैं प्रतिदिन उस खेत में गुलामों को कार्य करता हुआ देखता था, वह मालिक, गुलामों से भी एक निश्चित समय तक कार्य करवाता था, जो कार्य कुषाण के गुलाम एक दिन में कर सकते है वही कार्य करने में डलकी के उस खेत के मालिक के गुलाम डेढ़ दिन में कर रहे थे। एक दिन मैंने सोचा कि क्यों न इस किसान से पूछा जाए कि वह गुलामों से भी एक निश्चित समय तक कार्य क्यों करता है, जो कार्य उसके गुलाम दो दिन में कर रहे है वही एक दिन में भी कराया जा सकता है। मैं इस मंशा के साथ उस खेत के मालिक के पास गया और मैंने कहा “महोदय अगर आपकी आज्ञा हो तो क्या मैं आपसे एक प्रश्न पूछ सकता हूं?”
खेत के मालिक ने कहा “ऋषिवर मैं कैसे आज्ञा दे सकता हूं? आप कोई भी प्रश्न बेझिझक हो कर पूछ सकते है।”
मैंने पूछा “आपके खेत में कार्य करने वाले यह सभी आपके गुलाम है, तो फिर क्या कारण है कि आप इन सभी से एक निश्चित समय तक ही खेत में कार्य कराते है और इन सभी के प्रति प्रेमभाव से पेश आते है।”
खेत के मालिक ने कहा “अगर इसका संक्षिप्त में उत्तर दूं तो ऋषिवर वह सभी भी एक इंसान ही हैं।”
मैंने पूछा “लेकिन आपने इनको खरीदने के लिए अपना धन गंवाया है।”
खेत का मालिक कहता है “मैंने धन गंवाया है लेकिन अगर मैं उनसे उनकी कार्य क्षमता से अधिक कार्य कराऊं, तो शायद वह बीमार पड़ सकते है, और बीमार होने के बाद शायद उनमें से किसी की मृत्यु भी हो सकती है। उसके पश्चात मुझे फिर से गुलाम खरीदना होगा और तब मेरा धन बर्बाद होगा। अभी मुझे अपने गुलामों पर पूर्ण विश्वास है कि वह एक दिन में ना सही लेकिन दो दिन में तो कार्य जरूर पूरा कर देंगे और वह सभी स्वस्थ रहेंगे। वर्षों तक मुझे गुलाम खरीदने में अपना धन खर्च नहीं करना पड़ेगा जिससे मैं बचा कर किसी अन्य कार्य में ले सकता हूं।
इतना सुनते ही सूरजमल को समझ आ गया था कि वहां के लोग क्यों खुश रह रहे है।
जीवन में खुश रहने के लिए सिर्फ आपकी संतुष्टि, दूसरे के प्रति दयाभवना, अनुशासन, अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है। इसके बाद राजा सूरजमल ने भी अपने जीवन में तीरथ ऋषि की बातों को लागू किया और एक खुशहाल जीवन के मार्ग पर चल दिए।
