ताज
ताज


जब से लल्ला नें एक झोला उठा कर यह कह कर घर से बाहर कदम उठा कर महानगर की ओर रुख किया था कि "अब तो मैं कुछ बन कर ही लौटूंगा।" अम्मा की हलक़ से निवाला उतरता ही न था। आंखों की नींद भूख प्यास सब उड़ गयी थी। उस दिन कितने प्यार से उसने सारा भोजन बेटे की पसंद का बनाया था कि बी. बी. ए. का आखिरी पर्चा दे कर लौटने पर वह ढंग से चैन पूर्वक रुच कर भोजन करेगा।
पर घर आते ही उसने धमाका कर दिया। कि "मेरे पास समय बहुत कम है। तैयारी करनी है। ट्रेन का रिजर्वेशन भी नहीं है और परसों ही आगे की पढ़ाई के लिए वहां जा कर उपस्थिति दर्ज करानी है। बड़ी मुश्किल से प्रतियोगी परीक्षा पास करने पर लिस्ट में नाम आया है। " वह घर से क्या गया घर की रौनक ही जैसे चली गयी। और अब ज
ब उसने फोन कर अपनी सफलता के बारे में बताया कि " माँ तुम्हारी तपस्या सफल हो गयी है तुम्हारे आशीर्वाद से मुझे बहुत बड़ी जिम्मेदारी का पद संभालने के लिये नियुक्त किया गया है। " "जुग जुग जियो मेरे लाल।
खूब तरक्की करो उन्नति करो। सफलता तुम्हारे कदम चूमे। पर हमारी एक बात हमेशा याद रखना चाहे जितनी ऊँचाइयां छूना पर कभी अहंकार को सिर पर चढ़ने मत देना।
जितना ऊँचा पद उतना ही काँटो भरा ताज। समझे! "ऊपर देखना पर नजर हमेशा धरती पर रखना।"कहते हुए अम्मा नें ढेरों आशीष के साथ नवाजते हुए नसीहतें भी दे डाली। आखिर अम्मा नें भी जमाना देखा हुआ था" एक ऊँचाई के बाद ढलान शुरू हो जाती है। जो संभल कर नहीं चलते वो लुढक जाते हैं। ".....अम्मा का समझाना जारी था।