anuradha chauhan

Drama

0.2  

anuradha chauhan

Drama

स्वप्न में

स्वप्न में

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कीर्ति बहुत खुश थी। खुश क्यों न हो, आज बड़े दिनों बाद उसे उसकी मनमर्जी से घूमने की इजाजत जो मिली थी।

कीर्ति,सोनल, रिया,रूपा सब झील के किनारे बैठे हुए थे।

आज मैं बहुत खुश हूँ कीर्ति बोली।क्यों आज क्या खास है? अरे माँ ने मुझे पिकनिक मनाने के लिए भेज दिया यही तो खास बात है।

कीर्ति इकलौती बेटी थी अपने माँ-बाप की इसलिए वह उसे कहीं भेजने से डरते थे ‌।

वरना हर साल की तरह इस बार भी मैं अकेली घर में रहती और तुम सब मजे करते।

हाँ यह बात तो सही है, आठवीं कक्षा में आकर तुझे पिकनिक मनाने का अवसर मिला।

अरे लड़कियों वहीं बैठी रहोगी क्या ? आओ बोट भर जाएगी। आए दीदी सारी लड़कियाँ बोट की तरफ दौड़ पड़ती है।

तभी कीर्ति के सिर पर कोई कसकर हाथ मारता है। कहाँ ध्यान है तेरा पूरा दूध गिरा दिया।

ओह यह एक स्वप्न था। मैं तो घर में ही हूँ.. पिकनिक का आनंद तो मेरी सहेलियाँ उठा रही है। और मैं पिकनिक की कल्पना में खुश थी।

कीर्ति!! क्या हुआ? कुछ नहीं माँ....थोड़ी देर से बुलाया होता तो मैं झील की सैर कर आती। कीर्ति उठकर कमरे में चली गई।

अब इसे क्या हुआ ? बड़बड़ाते हुए माँ फैला हुआ दूध साफ करने लगी।


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