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KAVY KUSUM SAHITYA

Horror

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KAVY KUSUM SAHITYA

Horror

स्वार्थी बंदर

स्वार्थी बंदर

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स्वार्थी बंदर -छोटी सी चिड़ीया अपने अस्तित्व को जूझती छाया नहीं फल इतनी दूर की अपेक्षा की उपेक्षा के ताड़ ,खजूर के लंबे पैड़ैा अपनी हस्ती की मस्ती सुरक्षा की संरचना करती।  

 किसी तूफान शोला शैतान से जिन्दगी के सुकून प्यार परिवार का ना हो नुकसान ना हो परेशान की चिंता से व्याकुल हर जतन का इन्कलाब ।

 तीनका तीनका चुनती बारीक निगाहों से अपने आशियाने को बुनती मज़बूत खूबसूरत तिनके तिनके में अपने सर्वोत्तम भाग्य भविष्य के दिनों का विश्वास पिरोती।

 अपने प्यार परिवार के साथ अपने श्रम करम दूर दृष्टि मज़बूत इरादों परिणाम का सुख भोगती।

 सुबह से शाम दाना चुन चुन खुद की जिन्दगी बच्चों का पेट पालती भविष्य सवारति ।        

दिन महीने साल ऋतुए मौसम गुजरते जाते हर सुबह शाम नए उल्लास उमंग में बीता जाता।  

आखिर आ ही गया वो दिन जिसे दुनिया क्रूर काल कहती ना कोयी खास रूप रंग ना द्वेष दंभ ना घृणा ना प्रेम सिर्फ अपनी रफ्तार की अनंत यात्रा में आरंभ उत्कर्ष अंत ।

 अपने रफ़्तार की अनंत यात्रा में मिलते विछड़ते जीवन अनेक की विरासत को समेटे युगों युगों के ब्रह्मांड प्रगति, प्रतिष्ठा विकास, विनाश का वर्तमान, इतिहास ही काल।

कभी उत्कर्ष का गवाह युग ,कभी युग की वेदना तड़फ छटपटाहट की गाय ।

 काल ही मात्र मिशाल जो खुद की अनंत रफ़्तार की यात्रा में सुख ,दुख खुशी ,गम ,दर्द दिल जीवन ,जीव के एहसास का ईश्वर गवाह।

 छोटी सी चीड़या के आदी सुरक्षा संरचना विकास के अंत का समय आया वारसात का मौसम बंदर महाकाल रुद्र का ही अंश,आदि उत्कर्ष अंत में अंत ही उद्देश्य आया।

 ठंढ का मौसम घनघोर वारिस चीड़या अपने करम श्रम के मज़बूत आशियाने में जीवन की हस्ती की मस्ती में झूमती।

 काल का करिश्मा बंदर भी उसी ताड़ के पेड़ पर वरसात और ठंड में ठिठुरन से दांत किट किटाता हाफता कापता ।

विवस वेवस परेशान बेहाल. बंदर को देख परेशान छोटी सी चीडी़या का मन व्यथित पड़ाैसी की पीड़ा से दुखी आहत गलती से किया बेहाल परेशान बंदर से सवाल। 

क्यों नही बनाते अपने अरमानों उम्मीदाें का कर्म श्रम धर्म कर्तव्य दायित्व बोध का आशियाना?

 चाहे आए आंधी या तूफान इंद्र का कोप या ज्वाला कराल सदैव ही अपने अंदाज़ कि दुनिया की जिन्दगी के साम्राज्य के अभिमान ,होगे ना कभी परेशान ।

 बंदर को छोटी सी औकात की पंक्षी की बात ना आयी रास द्वेष ,दंभ की क्रोध अग्नि से आहत छोटी सी चीड़ीया के तमाम अरमानों उम्मीदो के श्रम ,शक्ति की उपलब्धि हस्ती की मस्ती के आशियाने को किया तार तार।

 टूटा सपनो का यथार्थ आदि उत्कर्ष का अंत,काल के अनंत यात्रा में काल बंदर का कमाल।

 सुझाव ,उपदेश, उद्देश्य विहीन के शत्रु ,छोटी सी चीड़ी‍या की छोटी सी दुनिया उद्देश्य विहीन की दिशाहीन अंधेपन का शिकार ।

यही काल की चाल आदि उत्कर्ष अंत की प्रक्रिया परम्परा प्रतिस्पर्धा के जीवन का युग ब्रह्मांड।


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