स्वालंबन

स्वालंबन

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मानसी के कॉलेज के पेपर आरंभ होने वाले थे, अतः मानसी अपने भाई से बोली- “अगले सप्ताह से तुम मुझे परीक्षा हाल छोड़ने व लेने जाने का दायित्व संभालना।” क्योंकि कॉलेज बस की सुविधा परीक्षा के समय पर संभव नहीं हो पायी थी। मानस ना नुकुर करने की स्थिति में नहीं था क्योंकि मानसी कॉलेज की बस से आती जाती थी।

मानस भी कॉलेज में सीनियर था, मानस अपनी दिनचर्या में मित्रों के साथ सिटी बस-स्टाप पर हमेशा समय बीताते थे। दोस्तों के साथ लाल- दुपटटा, हरा-दुपटटा जैसी हरकतें भी करते थे। बस-स्टाप उन दोस्तों के लिए एक अड्डा जैसा ही था, जहँ सभी लोग मिलते थे।

आज मानसी का पेपर था, मानव सुबह के समय छोड़ने आया था, अतः मानसी आश्वस्त थी कि वह लेने भी आयेगा। आज का पेपर जल्दी होने के कारण मानसी कॉलेज के परीक्षा-हॉल के बाहर आ गयी। मानव का इंतजार करने लगी। मानस को समय पर न आता देख मानसी ने बस-स्टाप की ओर कदम बढ़ा दिये। वह अगली बस से घर को लौट रही थी आदतन मानव कॉलेज लेट पहुँचा तो मानसी को न पाकर बैचेन हो गया। मानसी को फोन भी नहीं लगा सकता था। और ना ही घर पर फोन कर सकता था। जैसे-तैसे मानव घर पहुँचा। घर पहुँचने तक मानस के मन में शंका-कुशंका के बादल घुमड़ रहे थे कि बहन कैसे घर पहुँची होगी या..। बस- स्टाप पास होने के कारण बस से तो नहीं चली गयी या फिर किसी सहेली के साथ घर लौट गयी होगी।

बस-स्टाप की बात याद आते ही उसका मन विचलित हो गया कि बहन को परेशानी का सामना करना पड़ा होगा। मानव जब घर पहुँचा तो उसकी जान में जान आयी क्योंकि घर में बहन की आवाज सुनायी दी। मानसी ने अकेले में भाई को समझाया कि तुम लोग लड़कियों को ‘भेड़ का झुंड’ समझते हो। लेकिन लड़कियाँ अपनी ताकत खुद ही है। भाई मानव, बहन के व्यंग को समझ चुका था। वह सिर झुकाये खड़ा था। बहनों के स्वालंबन का कारण भाइयों की लापरवाही भी है।


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