स्वादनुभूति
स्वादनुभूति
तुम मुझे बहुत प्रिय हो ।
मेरे क्लांत मन को सहला कर सहज कर देती हो। थके तन में स्फूर्ति की चिंगारी दौड़ उठती है --बस तुम्हारे स्पर्श से तुम्हारी छुअन का वो गरमीला अहसास आह!कितना सुकून देता है ।
कभी अकेले बैठे यूं ही हाथों में तुम्हें पकड़ विचारों,भावनाओं में डूबता उतरता हूँ ।कभी भरी महफ़िल में मेरी साथी बन तुम खिलखिलाहटों की साक्षी बनती हो। तुम्हारा साथ कम्पकम्पाती ठंड में मेरे अन्तस् को ऊर्जा देता है।
भरी बरसात की बूंदों में तुम्हें होंठों से लगा मानो तृप्त हो जाता हुँ।गर्मी की अलसायी शाम में तुम्हारे स्पंदन की कुछ बूंदें मुझे चैतन्य कर जाती हैं।
क्या लिखूं और कैसे लिखूं ?कितनी प्रिय हो तुम?
मेरी हाथों में लिपटा तुम्हारा वजूद आह! अवर्णनीय है!
कौन हो?कैसी हो?कितने रूप,कितने स्वाद,कितनी युगीन सम्वेदनाओं से रची -बसी --
मेरी प्यारी " चाय " बहुत प्रिय हो तुम ।मेरी स्वादनुभूति का सम्बल मेरी प्यारी “चाय “ तुम्हीं मेरा प्रेम हो ।
#love