खौफ़
खौफ़
डर की वास्तविक परिभाषा क्या है? कोई नहीं बता सकता।क्या डर होता भी है या कोई मनोवैज्ञानिक कल्पना मात्र क़ो डर की संज्ञा दे दी जाती है। मन का वहम, कोई सच, अन्धविश्वास क्या है डर? कुछ ऐसे ही प्रश्नों से समर जूझ रहा था।
समर की नयी-नयी पोस्टिंग हुई थी। इस छोटे से पहाड़ी कस्बे में अभी वो अकेला ही आया था। परिवार दिल्ली में था।यहां सरकार की ओर से घर मिला था। साथ ही एक पहाड़ी नौकर, नाम था -प्रकाश। बिलकुल बात न करने वाला, एकदम चुप! समर कुछ पूछता तो सिर हिला कर जवाब देता। एकदम अकेला आगे-पीछे कोई नहीं।
इस कस्बे में आने से पूर्व ही समर ने यहां के बारे में कुछ विचित्र बातें सुनी थीं। यहां सामान्य मनुष्यों के अलावा ऐसे लोग भी पाए जाते हैं 'जिनके चेहरे एकदम सपाट होते हैं। यानि आंख, नाक, मुंह कुछ नहीं! बस सपाट चेहरा! ये लोग जब चाहे सामान्य मनुष्य जैसे बन जाते हैं! जब चाहें सपाट चेहरे वाले!'
समर इन सब बातों से काफी ख़ौफ़ में रहता था। ये बात ओर है कि अपने 2 महीने के प्रवास में उसे अब तक ऐसा कोई व्यक्ति नहीं दिखा था।
'पहाड़ी इलाका, दूर-दूर घर, सांय-सांय चलती हवा, लंबे-लंबे पेड़, जो अँधेरे में साये से प्रतीत होते थे। एक खामोश प्रकाश! उस पर सपाट चेहरे वालों की प्रचलित कहानियां!सारा वातावरण ही समर के भीतर एक अनजाना ख़ौफ़ पैदा करता जा रहा था!'
समर अपनी गाड़ी से ही दफ्तर जाता था। एक रोज उसे दफ्तर के काम से कस्बे से बाहर जाना पड़ा। वहां की मीटिंग में उसने अपने कलीग से अपने ख़ौफ़ का जिक्र किया।
'तुम भी किन बातों पर यकीन करने लगे! ये सब यूँ ही मनगढ़ंत बाते हैं। इस इलाके की प्राकृतिक छटा का आनंद लो। नाहक ही ख़ौफ़ के साए में जी रहे हो।'
'यार, बेहद तनाव में रहता हूँ।'
'छोड़ो भी, चलो मीटिंग के बाद फ़िल्म चलते हैं। खाना भी बाहर खाएंगे।'
'ठीक है, मेरा भी मन बहल जायेगा।'
कलीग का प्रस्ताव समर को भा गया। उसने अपनी सहमति दे दी।
फिल्म ख़त्म हुई। खाना खाने होटल गये। इस सब में अँधेरा गहरा चुका था। पहाड़ों पर वैसे ही जल्दी अँधेरा हो जाता है।समर के पास गाड़ी थी। उसने कलीग को रास्ते में छोड़ते हुए घर लौटने का फैसला किया।
'गाड़ी समर चला रहा था। कलीग बगल की सीट पर था।'
'समर,सच में तुम्हें सपाट चेहरे वालों से बहुत ख़ौफ़ लगता है!' कलीग ने फिर वो ज़िक्र छेड़ दिया।
'तुमने समझाया तो अब इस ख़ौफ़ पर काबू पाने की कोशिश करूंगा।' समर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
'मेरी ओर देखो! पा पाओगे?'
समर की तेज़ चीख निकल गयी। गाड़ी सम्भाल न पाने के कारण एक ढलान पर घिसटती गयी ओर एक पेड़ से टकरायी।
गाड़ी के रुकते ही समर तुरन्त वहां से भागा। पीछे मुड़ कर देखने की हिम्मत न हो रही थी। कलीग के ज़ोर ज़ोर से हंसने की आवाज़ उसे दूर तक सुनाई दे रही थी। उसका चेहरा? समर भाग रहा था, बेतहाशा। इतनी तेज की हवा को मात दे दे।
भागते-भागते घर पहुंच गया। रात ओर ज़्यादा गहरा चुकी थी। समर ने हांफते हांफते घर की डोर बेल बजायी। इलाके में बिजली नहीं थी। घना अँधेरा! समर ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़ा पीटने लगा।
'आ रहा हूँ,साहब।' अंदर से ही प्रकाश ने आवाज़ दी।
दरवाज़ा खुला! अँधेरे में समर को प्रकाश की परछाई दिखाई दी! दरवाज़े से थोड़ा अंदर आ उसने घुटी-घुटी आवाज़ में कहा 'प्रकाश, मेरा कलीग-सपाट चेहरे वाला!'
'इसमें कौन सी बड़ी बात है!' प्रकाश ने कहते हुए हाथ में पकड़ी टॉर्च अपने चेहरे पर मारी!
समर चीख मार कर बेहोश हो चुका था!