गृहविष्णु -गृहलक्ष्मी
गृहविष्णु -गृहलक्ष्मी
पड़ोस के फ्लैट में नए लोग आए थे ।नन्दा को बहुत उत्सुकता थी ।देखूं कौन लोग हैं ? अपने फ्लैट से बाहर झांका तो उनके फ्लैट के बाहर नेमप्लेट देखी -- गृहविष्णु …!
“ ये कैसा नाम है ?”
नन्दा के मन में सवाल उठा ।उसने चाय बनाई ।केतली में डाली ।कुछ नाश्ता लिया और पड़ोसियों की बेल बजाई ।
एक 35साल के युवक ने दरवाजा खोला ।
“ आप ?”--युवक ने प्रश्न पूछा ।
“ जी मैं आपकी पड़ोसी हूँ ।मेरा नाम नन्दा है ।आप लोगों ने अभी शिफ्ट किया है तो चाय -नाश्ता लायी हूँ ।”“ बहुत बहुत आभार ।आइए अंदर आइए ।”
“ कीर्ति ,देखो हमारी पड़ोसी नन्दा जी आयी हैं ।” - युवक ने आवाज़ लगाई ।नन्दा हाल में सोफे पर बैठी थी ।अंदर से एक बहुत सुंदर युवती आयी ।परस्पर नमस्कार का आदान -प्रदान हुआ ।
“ मेरा नाम कीर्ति है ।ये मेरे पति हैं --रौनक ।” --युवती ने परिचय दिया ।
तब तक रौनक चाय के कप ट्रे में सजा कर नाश्ते के साथ हाजिर था ।
“ नन्दा जी ,आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।चाय व नाश्ते के लिए ।” --कीर्ति व रौनक एक साथ बोले ।
“ इसमें धन्यवाद कैसा ।आप लोग अभी आये हैं ,सामान की सेटिंग में थक गए होंगे ।सोचा चाय ही ले चलूं । हम सामने रहते हैं ।इनका कपड़े का व्यापार है ।बेटी विवाहित है ।बेटा कॉलेज में है ।”नन्दा ने एक सांस में अपना परिचय दे दिया ।
नन्दा कुछ रुकी ।मन में रुके हुए प्रश्न को आखिर शब्द दे ही दिए --” एक बात पूछुं ! ये बाहर नेमप्लेट पर गृहविष्णु का क्या अर्थ है ?”
कीर्ति व रौनक दोनों मुस्कुराए ।कीर्ति बोली
“ मैं एक कम्पनी में पी आर मैनेजर हूँ ।रौनक हाउस हस्बैंड हैं पर मैं इन्हें गृहविष्णु कहती हूँ ।”
नन्दा का असमंजस और बढ़ गया था ।“हाउस हसबैंड !”
स्थिति को भांपते हुए रौनक ने कहा --
” मैं घर सम्भालता हूँ ।यानी हाउस वाइफ की तरह हाउस हस्बैंड ।कीर्ति जॉब करती है ।7 साल पहले मैंने जॉब छोड़ दी ।एक बेटा है 8 साल का ।उसे भी मैं सँभालता हूँ ।”नन्दा आश्चर्यचकित थी ।
“ समाज का जो ढाँचा है ,उसमें यह बहुत अजीब सा लगता है ।पुरूष घर व बच्चे सम्भाले ।”--नन्दा ने कुछ डरते डरते कहा ।
रौनक ने स्पष्ट किया -” नन्दा जी , समाज से अधिक मैं अपने परिवार का भला देखता हूँ ।कीर्ति की इनकम शुरू से मुझसे ज्यादा रही ।बच्चे के पैदा होने के एक साल तक हमने एडजस्ट किया ।बच्चे को क्रेच में छोड़ते ,आया भी रखी ।घर के कामों के लिए अलग से नोकरानी रखी ।हम दोनों की इनकम का बड़ा हिस्सा इसमें जाने लगा ।बच्चा फिर भी नेगलेक्ट होता था ।समाज हमारे घर व बच्चे को संभालने नहीं आता था ।
कीर्ति ने आगे बात बढ़ायी --” यह रौनक का फैसला था ।तुम ज्यादा कमाती हो तो जॉब कंटीन्यू करो ।मैं घर संभालूंगा ।रौनक ने सबको काम से निकाल दिया ।घर का सारा काम स्वयं करते हैं ।हमारे बेटे की पढ़ाई ,स्कूल छोड़ना ,लाना सब सम्भालते हैं ।बेटे को स्वयं पढ़ाते हैं ।बेटा पिता के नियंत्रण में रहता है । “
रौनक ने मुस्कुराते हुए कहा ---
“नोकरों ,आया ,क्रेच ,बेटे की ट्यूशन के बहुत पैसे बचते हैं। कभी कभी घर से कुछ असाइनमेंट पूरे कर ,कुछ आर्टिकल लिख कर पैसे भी कमा लेता हूँ । यदि जॉब करता तो हम पैसा नहीं बचा पाते । “
कीर्ति व रौनक दोनों मुस्कुरा रहे थे ।
कीर्ति बोली “ जैसे घर की स्त्री को गृह लक्ष्मी कहते हैं वैसे ही मैनें रौनक को नाम दिया है गृहविष्णु ।मैं व रौनक स्त्री -पुरुष को समान मानते हैं इसलिए स्त्री के समझे जाने वाले काम व पुरुष के समझे जाने वाले काम भी समान धरातल पर गिनते हैं ।”
“ अच्छा नन्दा जी ,खाना खा कर जाइयेगा ।कुछ ज्यादा तो नहीं -- मैनें मटर पुलाव व रायता बनाया है । अभी सब अस्त -व्यस्त है ।कुछ दिन बाद आपको परिवार सहित खाने पर बुलाएंगे ।खूब बढ़िया पकवान खिलाऊंगा ।”नन्दा ने बात बदलते हुए कहा --” बेटा कहाँ है ?”
“ दो दिन के लिए नानी के घर गया है ।
आइए खाना खाते हैं ।”
नन्दा ,कीर्ति व रौनक खाना खा रहे थे ।नन्दा को पुलाव सचमुच बहुत स्वादिष्ट लग रहा था ।
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