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Sajida Akram

Fantasy

4  

Sajida Akram

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सुरमई शाम

सुरमई शाम

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विनीत कई दिनों से घर के बोझिल माहौल से उकता गई थी।घर में जब-तब होती मां-बाबा की कलह से तंग आकर। दोनों के बीच मतभेद इसलिए थे कि विनीता की शादी की उम्र निकली जा रही है।

विनीता अपने नाम के अनुरूप बहुत ही शालिन और सुघड़  साथ ही घर-गृहस्थी के कामों में निपुण थी।सांवली रंगत होने के बावजूद तीखे-नैन नक्श, विनीता के व्यक्तित्व को आकर्षित बना देता था।

विनीता अपनी जॉब और फेमिली में ख़ुश रहने वाली लड़की रहती है। परेशान तब हो जाती है जब उसको लड़के के सामने शादी के लिए दिखाया जाता और लोग उसमें कमियां गिनाने लगते सबसे पहला प्रहार तो रंग पर ही होता हमें तो सुन्दर लड़की चाहिए।

विनीता उदास थी ,घर में बिना बताए गाड़ी उठा कर निकल पड़ती है। लड़की बिन शादी के क्यों? जीवन नहीं गुज़र सकती। उसके दिमाग में यही उथल-पुथल मची थी।कितनी बार मुझे सांवली रंगत पर ताने सुनने पड़ेंगे।

विनीता बेवजह सड़कों पर घूमती रही जैसे ही शाम ढ़लने लगी। उसे प्रकृति से बहुत प्रेम था, हर कभी गंगा के तट पर ऊंची सी शिला पर बैठ कर।

 "सुरमई"होती शाम को निहारना, मंदिर में बजते घंटी और शंखनाद की मधुर ध्वनि के साथ गौधूलि की बेला में रंभाती गायों का अपने घरों को लौटने का दृश्य ,आकाश का सुरमई रंग , पक्षियों का कलरव करते अपने घोंसलों में लौटते।

 इतना मनोरम दृश्य में विनीता खो सी जाती और अपनी सारी परेशानियों को भूलकर प्रकृति नमन् करती।आज गंगा घाट पर बैठे धीरे-धीरे सूर्य भी गंगा के आगोश में समा गया। 

अंधकार घिरने लगा पर विनीता का मन वहां से जाने का नहीं हो रहा था ,निराशा में डूबी शिला के पीपल का बड़ा सा वृक्ष था। उसके तने से टिक कर उसे अहसास होता,

 जैसे प्रकृति मां की गोद में समा जाए बस यूं ही आंखों से आंसू बह रहे थे विनीता को अहसास हुआ जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसे अपने में समा रही हो। बंद आंखों में नज़ारे घूमने लगे "सुन्दर परी"नीली सी राजसी वस्त्र पहने हुए पीछे पंख लगे जैसे बचपन में परीकथाओं में परियों का विवरण पढ़ा।

अलौकिक दुनिया में ले जाती है। मनोरम दृश्यों से पूरा देश भरा हो झरने , पहाड़ों पर हरियाली, सुन्दर हिरणों का झूंड , तितलियों का फूलों पर मंडराना भांति-भांति के फूलों से महकते बाग आलिशान हवेलियां विनीता परीलोक में पहुंच गई।

नीलांबर वस्त्र वाली परी विनीता को लेकर उनकी "महारानी परी"के पास ले जाती है। विशाल महल रत्न , स्वर्ण जड़ित बड़े से सिंहासन पर बैठी हुई।

विनीता को वो अपनी 'जादुई छड़ी'से छूती है, तो विनीता को होश आ जाता है। हम तुझसे ख़ुश हुए हैं।तेरी निश्छल प्रेम से अभिभूत हैं। तुझे एक वरदान देते हैं। तेरी सारी मनोकामनाएं पूरी होगी।

विनीता की नींद खुलती है।तो वो अपने घर के बिस्तर पर सोई रहती है। उस दिन से उसका जीवन ही बदल जाता है।उसके व्यक्तित्व में निखार आता गया।

कुछ ही दिनों में उसके लिए उसके ही ऑफिस से रिश्ता आता है। शशांक और उसकी मां,बहन विनीता को देखने आतें हैं। शशांक की मां विनीता के माता-पिता से कहती है। हमें आपकी बेटी बहुत पसंद आई।

आप लोग आपस में विचार-विमर्श कर के हमें बताना फिर आगे कि रस्म कर लेंगे। उनके जाने के बाद विनीता सोच में पड़ जाती है। ये क्या वहीं सपना पूरा होता लग रहा है।

मां बहुत खुश-ख़ुश आती है। विनीता तुम्हारे ऑफिस में काम करते हैं।तुने बताया नहीं बेटा विनीता मां को बताती है ,मां मैं ने सुना था कोई प्रोजेक्ट मैनेजर ट्रांसफर हो आएं हैं।

मैं नहीं पहचानती इन्हें बहुत बड़ा ऑफिस है हजारों कर्मचारियों इधर से उधर ट्रांसफर होते रहते हैं। मुझे कुछ भी नहीं मालूम है इनके बारे में मां के तो क़दम जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं।

अरे हां मैं तो भूल ही गई तेरे बाबूजी ने कहा है विनीता का की मर्जी जान लो सोच-समझ कर जवाब देना बेटी विनीता ने मां को कभी इतना ख़ुश नहीं देखा था।

वो चाय की प्याली लेकर अपने रूम की खिड़की के पास जाकर खड़ी हो जाती है। सुरमई शाम का समय है, आसमान सुनहरी छटा बिखेरे है।


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