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Shishpal Chiniya

Drama

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Shishpal Chiniya

Drama

सुजला सरगम

सुजला सरगम

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आप अक्सर किसी की शादी या पार्टी में जाते होंगे। या फिर किसी उत्सव या समारोह में शामिल होते होंगे। जिनमें कुछ हादसे या कहूं तो कुछ स्मृतियां हमारे हमेशा के लिए याद बन जाती है।


हमारे कॉलेज में एक बार एक उत्सव था, जिसका नाम था ‘सुजला सरगम’ इस उत्सव में बहुत कार्यक्रम होने थे।

जिनमें 'वाद - विवाद प्रतियगिता', ‘आशु भाषण’, ‘एकल नृत्य’, ‘एकल गायन’, ‘समूह गायन’ और अनेक कार्यकम।


एक मुख्य कार्यक्रम जो वाद - विवाद था। उसमें दो आमने-सामने के बैच जिनमें फर्स्ट राउंड में चार चार के समूह, सेकंड राउंड में तीन तीन के समूह और थर्ड राउंड में दो दो के समूह और अंतिम में एक को विजयी होना था।


इसका विषय था - ‘दहेज एक - संस्कृति या अभिशाप’

इसमें मैंने भाग लिया था और मेरे नेतृत्व के समूह में फर्स्ट राउंड में दो लड़की और एक लड़का और एक मैं था।

और विरुद्ध नेतृत्वकर्ता मेरी छोटी बहन थी जो बोलने में बेहद चालाक थी।

जो मुझे घर में कभी नहीं जीतने देने वाली आज तो स्टेज पर थी तो कैसे जीतने देगी।

और ऊपर से लॉटरी में मेरे समूह का संस्कृति पक्ष में वोट आ गया।


अब काफी समय तक हम आपस में एक दूसरे की बात काट रहे थे और अब तक हमारा रिज़ल्ट बराबर था।

फर्स्ट राउंड में हम हार गए और जो दो चुने जाने थे उनमे मेरा नंबर आ गया।

और विरुद्ध में फिर मेरी छोटी बहन और दो लड़के।


अबकी बार विषय अलग था - ‘सोशल मीडिया - वरदान या अभिशाप!’

इस विषय में हमारे समूह को ‘वरदान’ की लॉटरी लगी। और हम जीत गए।

थर्ड राउंड में मैं और एक लड़की और विरुद्ध में मेरी बहन और एक लड़का चुने गए।

ये भी हम जीत गए।


अब अंतिम चरण था जिनमे दो चुनना था, लॉटरी निकाली गई जिसमे संयोग से मेरा और मेरी बहन का नाम आ गया।

एक मेज लगाई हुई थी जिस पर जस्टिस बैठे थे। एक तरफ मैं और दूसरी तरफ मेरी विरुद्ध नेतृत्वकर्ता मेरी बहन।


हमारी आंखे देखकर जज बोले - "आप सिर्फ अपने मत रखियगा, आप दुश्मन नहीं है जो इतने घुर रहे है।”

हमें हंसी आ गई।

इस बार विषय था ‘प्राइवेट स्कूल - एक शिक्षा केंद्र है या एक लूटपाट केंद्र’

इस विषय में मेरा ‘शिक्षा केंद्र’ में नंबर आ गया।


हम दोनों ने अपने पांच पांच मत दिए जिनमे इन दो मतों के आधार पर हम दोनों को विजयी घोषित किया गया जो इस प्रकार थे।


’एक शिक्षा केंद्र’

मैं - "मिलॉर्ड प्राइवेट स्कूल एक निजी संस्था है जो समाज में शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ावा देकर समाज को आगे बढ़ाने का काम कर रहे है। अतः हम इसे एक लूटपाट केंद्र नहीं कह सकते है।”


‘एक लूटपाट केंद्र’

विरुद्ध नेतृत्वकर्ता मेरी बहन - "तो भैया आप वहीं चले जाओ इस सरकारी कॉलेज में एडमिशन क्यों लिया है आपने।

मिलोर्ड मैं इस बात को कतयी मना नहीं कर रही हूं लेकिन ये सत्य है कि आज प्राइवेट स्कूल की फीस इतनी बढ़ गई है कि फीस जमा नहीं होने के कारण विद्यार्थियों को अपनी पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ती हैं ।”


ये दिन मेरी जिंदगी का एक अहम हिस्सा था जिसमें मेरी बहन मुझे हरा नहीं सकी और मैं उससे जीत नहीं सका।


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