सुहानी
सुहानी
सुहानी रोज़ की तरह जूते का फीता बांधते हुए कहा कि" मां मैं जा रही हुं।" फिर पीठ पर बैंग टांगा और सायकिल लेकर निकल गई। कुछ दूर जाने पर उसने देखा कि एक हमउम्र लड़की हाथ में थैला लिए तेजी से जा रही है और तीन लड़के बाइक से उसके आस पास मंडरा रहे हैं। उसके बाद उसने पलट कर वापिस जाने की कोशिश की परन्तु वे लड़के उसके सामने आ गए और कुछ कुछ बोल कर हंसने लगे। ये देख सुहानी बौखला गई और उसने बैंग से स्प्रेबाटल निकाला और उन लड़कों पर मिर्च पाउडर छिड़का इस अचानक हुऐ आक्रमण से वे लोग घबरा गए। सुहानी रस्सी निकाल कर उन लड़कों को मारा। तभी उसकी नज़र पास खड़े एक व्यक्ति पर गया जोकि मोबाइल पर विडियो बना रहा था । सुहानी ने लड़कों को छोड़ कर उस व्यक्ति से मोबाइल छीना और विडियो डीलिट किया। तभी मौका देख लड़के भाग गए जिससे सुहानी को बहुत गुस्सा आया और उसने कहा कि ॔ अंकल जी इस लड़की के गुनहगार जितने वे लड़के हैं उतने ही आप जैसे लोग भी हैं। इस मोबाइल से पुलिस को सूचना दी होती तो इसका सही उपयोग होता।उस व्यक्ति ने कहा कि ॔ मैं तुम्हारी बहादुरी का विडियो बनाया था। ॓
सुहानी ने कहा कि ॔" खैर कोई बात नहीं एक दिन मैं भी तुम्हारी तरह अकेली थी , तब भी मदद के लिए कोई आगे नहीं आया था। उसके बाद से ही मैं घर से निकलती हुं तो पूरी तैयारी से और मार्शल आर्ट सीखा है। क्यूंकि मैंने समझा लिया है कि अपनी सुरक्षा स्वयं करना है।"
वो व्यक्ति मन ही मन शर्मिंदा हुए फिर दोनों लड़कियों के सीर पर हाथ रखा मानो माफी मांगी हो या फिर आशिर्वाद दिया हो, उसके बाद वे चल दिए । सुहानी ने लड़की को समझाया फिर उसके गंतव्य तक पहुंचाया। उसके बाद ग्राउंड न जाकर वापस घर लौट आई और मां को उसने सारी बातें बताई। सुुहानी के आंखों के सामने पिक्चर भांति एक के बाद एक घटनाएं आने लगी। उस दिन भी इसी सायकिल से स्कूल जाने के लिए निकली थी। गली से निकल कर मेेंन रोड पर पहुंची ही थी कि कुछ लड़के अचानक सामने आ गए और सायकिल का हेडिल पकड़ कर हंसने लगे। इस अप्रत्याशित घटना से सुहानी को घबराया देख , लड़के मज़ा लेने लगे। सुहानी घृणा से मुुुंह फेर ली और उसके आंखों में आसूं आ गए। उसे रोता देख कर लड़के और भी मज़ा लेने लगे। बहुत मुश्किल से बचकर भागते हुए घर आई। मेंन रोड पर चहल-पहल होती है पर इस छोटी सी बच्ची के मदद के लिए कोई नहीं आया। सुहानी घर आकर बाथरूम में चली गई । उसे अपने आप से घिन आ रही थी सो नल के नीचे बैठ गई। सुुहानी के मां, पापा भैया बहुत मुशकिल से दरवाजा खुलवाया। सुहानी मां से लिपट कर रोते रोते बेहोश हो गई। जब होश आया तो कही ॔ मैंने कुछ नहीं किया। ॓ सभी ने उसे शांत किया, पर घबरा भी रहे थे कि अभी तो हंसते मुस्कुराते हुए रोज की तरह स्कूूल जाने के लिए अभी तो निकली थीं दो पल में ऐसा क्या हो गया उसे कि स््क्क ्॑॑श्श्््््॑॑श्श््््॑॑श्श््््॑॑श् रोते बेहोश हो जा रही है। भैैया निहित उस रास्ते से स्कूल तक गया पर कुछ समझ नहीं आया। एक दो दिन में जब सुुहानी कुछ शांत हो गई तब पूछने पर उसने सारी बातें बतायी, परन्तु उन लड़कों का पहचान नहीं बता पायी। परन्तु बार बार यही कहा कि ॔ मेरी कोई गलती नहीं है मैं तो स्कूल जा रही थी। ॓ पूरा घर सदमे में आ गया । हंसती खेलती जिदांंदिल बेटी ,आत्ममिश्वास से भरी हिम्मती सुहानी कहां खो गई। सुहानी की मां के लिए उसे सम्हालना कठीन हो गया सुहानी ने कहा कि ॔ मां मैं बचकर नहीं भाग पाती तो, इतने गंदे नजर से कोई कैसे देख सकता है। इतनी हिम्मत कैसे हुई कि मेरे तरफ हाथ बढ़ाये।
मैं क्या हूं मां। पूरा घर एक जगह सिमट गया। सभी की जिंदगी अस्तव्यस्त हो गई। सुहानी के पापा चिंतित हो गए कि ॔ कैसे समझाऊं, बच्चों के भविष्य का क्या होगा।
सुहानी के पापा को आफिस जाना पड़ा पर वहां भी मन नहीं लगा। आंखों में आसूं आ रहे हैं पर रो नहीं सकते। काम में मन लगाना कठिन हो गया। उनके मन में बस बातें घूम थी, ॔ बेटी मेरी स्वाभिमान है। भगवान की कृपा है कि मेरी प्यारी बेटी बच गई। उनके आंखों में आसूं आ गए उन बेेेटियों के लिए जो भग्यशाली ग्शा्हीं नहीं थी और दरिंदो की शिकार हुुई। अब उन्हें डर लगने लगा, कैसे उसके सपनों की हत्या कर घर में कैद दें। आखिर वो भी जीती-जागती इंसान है, उसके भी कुछ इच्छाएं है। कुछ सपने हैं , उसका भविष्य का क्या होगा।
उसने सोचा कि बचपन में ही हमने ही तो, बच्चों के आंखों में भविष्य का सपना दिया है। यदि बेटी को सपना साकार करने का अधिकार दिया तो समाज में घूम रहे भेड़िया से रक्षा कैसे करें ,रोज कमाना और रोज खाना ॓ यही आम आदमी की जिम्मेदारी है । सोचते सोचते घबराहट होने लगी और पसीने आ गए। किसी को पता न चलें , इसलिए आफिस से बाहर निकल आए। उनके मित्र ने पूछा, पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। कैसे कहें बेटी का मामला है। डर लगता है कि बात का बतंगड़ बना दिया तब क्या होगा ~!
शाम को घर आने पर सन्नाटा देख मन में दर्द उठा। पहले घर आते ही सुहानी हल्ला मचा देती ॔ मेरे पापा घर आ गए। ॓ पानी लाती। कभी तो ऐसा हल्ला करती जैसे शहंशाह आलम दरबार में उपस्थित हो रहेेे हो। याद करते ही होठों पर मुस्कान आ गई। पर चुपचाप बैठ गए। तभी निहित और सुुहानी दोनों अपने पापा के पास आकर बैठे।
निहित ने कहा " पापा अब हमारी सुहानी रोयेगी नहीं , ऐसे टुटपूजों को रूलायेगी।"
उसके पापा और मम्मी ध्यान से सुुुनने लगें कि निहित ऐसा क्या समझाया जिससे सुहानी आज कमरे से बाहर निकली। निहित ने आगे कहा कि ॔ सुहानी स्कूूल जायेगी और अपना लक्ष्य प्राप्त करेगी। वो भी अपने दम पर, ठीक है न सुहानी!"
सुहानी ने सीर झुकाए हां कहा। निहित अपने हाथ से उसका सीर उठाकर कहा कि ॔ कहा न, हमेशा सीर उठकर रखना और आंखे में आंंख डाल कर बातें करना। समझी।
फिर निहित पापा की ओर देखा और कहा कि "पापा मैं इसे मार्शल आर्ट सीखाने के लिए पास के ग्राउंड में भेज रहा हूं। आज के समय में लड़कियों के लिए बहुत जरूरी हो गया है। स्वाभिमान केे साथ जीना है तो मार्शल आर्ट सीखा होगा। ठीक है न पापा।"
निहित अपने पापा का समर्थन पाकर सुुहानी को ग्राउडं लेेकर गया और वहां नाम लिखा दिया। कुछ दिन निहित साथ में रहा, धीरे धीरे सुहानी अपने आप को सम्हालने लगी। अपनों के प्यार और सहयोग से सुुहानी का जीवन सामान्य होने लगा।
अभी उस लड़की को बचाकर मन को बहुत शांती मिलीं। उन लड़कों को मारकर और अंकल के संवेदनहीनता पर दो बातें सुना कर बहुत दिनों बाद आज अच्छा लगा।मन ही मन उसने कहा कि ॔ ऐसे ही भाई सभी बहन को दें। उसने सही कहा कि ॔ आज का समय छुईमुई बनाने का नहीं है। जिस दिन हालात का सामना डट कर करोगी, उसी समय आत्मविश्वास बुलंदी छू लेेेगा। ॓
सुहानी ने कहा कि "मां समाज की जिम्मेदारी सिर्फ हम लड़कियों की है, आजादी हमारी छीनी जाती है। इन लड़कों को लड़कियों के म्ज्ञ्ञ सम्मान करने की नसीहत भी नहीं देते। कैसा विचत्र है समाज।"