Savita Negi

Inspirational

4.2  

Savita Negi

Inspirational

सुगंधा

सुगंधा

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उफ्फ! ये घर शिफ्ट करना भी बड़ी आफ़त है। नया शहर, नए लोग । सब कुछ एक किनारे से शुरू करो। जब तक अच्छे दोस्त बनते हैं ट्रांसफर हो जाता है । थोड़ी कमर सीधी कर लूं, सोच ही रही थी कि बेल बजी। मैंने दरवाज़ा खोला तो सामने बहुत ही सौम्य सी दिखने वाली एक महिला खड़ी थी। हाथ मे एग्जाम कॉपीज का रोल पकड़ा हुआ था और दूसरे कंधे में बैग टंगा था। देखने से कोई टीचर लग रही थी। चेहरे में एक तेज था और मधुर मुस्कान थी।


"हेलो! मैं सुगंधा, आपकी पड़ोसन। आप लोग नए आये हो यहाँ सोचा आपसे मिल आऊं। कोई हेल्प चाहिए आपको तो प्लीज, निसंकोच बोल दीजिएगा। मेरे सास ससुर घर पर ही रहते हैं। मैं टीचर हूँ तो तीन बजे के बाद ही मिलूंगी। आप आइए अभी साथ में चाय पीते हैं, उस बहाने दोस्ती भी हो जाएगी।" 


सुगंधा जी उसी समय स्कूल से आई थी। आते ही सीधा मुझे चाय का निमंत्रण देने आ गई । उन्होंने जिस प्यार और अपनेपन से मुझसे बात की मैं मना ही नहीं कर पाई। मैंने भी तुरंत उनके निमंत्रण पर हामी भर दी और थोड़ी देर बाद अपना हुलिया ठीक करके उनके घर चली गयी।


सुगंधा जी जिस स्कूल में पढ़ाती थी उसी स्कूल में उनके दोनों बच्चे भी पढ़ते थे। बेटा दसवीं में और बेटी सातवीं में। उनकी सास और ससुर जी भी बहुत ही सज्जन और व्यवहारिक लगे। मुझसे औपचारिक बातें करके उनकी सास ने कहा ...


"सुगंधा तुम इनको अपने कमरे में ले जाओ वहीं दोनों आराम से बैठकर बात करो। मैं चाय बनाकर लाती हूँ।"


 मैं महसूस कर रही थी कि कितना अच्छा परिवार है। सभी मिलनसार और सभी के चेहरों में प्रसन्नता । तभी सुगंधा जी मेरा हाथ पकड़कर बोली " अरे अपना नाम तो बताओ ?"


"मीनू"


उनके कमरे की सजावट से मैं अंदाजा लगा सकती थी कि उनके पति आर्मी में होंगे। कमरे की चारो दीवारें फ़ोटो फ्रेम से सजी थी। जिनमें सुगंधा जी , उनके बच्चों की उनके पति की बहुत सारी तस्वीरें थी। बेड के सामने वाली दीवार सिर्फ उनके पति की तस्वीर से भरी थी। कुछ आर्मी की यूनिफार्म में भी थी। बहुत सारे मेडल्स, ट्रॉफी सब कुछ सलीके से रखे थे। मेरी नजरों को चारों तरफ निहारते हुए देख उन्होंने कहा..


 "क्या देख रही हो मीनू?.... ये मेरे पति विक्रम हैं, आर्मी में हैं। वो खड़ी हो गई और विक्रम की एक तस्वीर में हाथ फेरने लगी। "बहुत कम मिल पाते हैं हम दोनों। पोस्टिंग बहुत दूर है उनकी । वो एरिया वैसे भी रिस्क जोन में आता है। छुट्टी की दिक्कत भी होती है। आना ही नहीं हो पाता।"

 तभी उनकी सास हमारे लिए चाय ले आईं।


फिर तो चाय पीते-पीते हँस मुख सुगंधा जी ने अपनी और विक्रम की यादों का पिटारा ही खोल दिया। मुझसे पूछने लगी तुम्हारी शादी लव है या अरेंज? अभी तो कम ही महीने हुए हैं शायद।"


" जी चार महीने , और हमारी अरेंज है। आपकी?


 "हमारी लव मैरिज थी। एक ही कॉलेज में पढ़ते थे  दोनों। उन्होंने आर्मी जॉइन की मैं बीएड करने लगी। सेटल होने के बाद हमारी शादी हो गयी । घर से भी सभी राजी थे। शादी के बाद भी हम कम साथ रह पाते थे। जहाँ उनकी पोस्टिंग थी वहां मैं नहीं जा सकती थी। साथ ही मैं खुद भी सेटल होना चाहती थी। 


पता है विक्रम मुझे चिट्ठी भेजते थे ,फोन पर घंटो बात करने के बाद भी। बोलते थे चिट्ठी की बात ही कुछ और है। जो जज़्बात बोल नहीं सकते वो शब्दों में बहुत अच्छे से पिरोए जा सकते हैं। और पता है चिट्ठी का पेपर हमेशा गुलाबी रंग का होता था।"


 सुगंधा जी जब अपने पति की बातें बता रही थीं तो उनके चेहरे में पच्चीस साल की लड़की की तरह शर्म और आंखों में चमक के भाव उभर रहे थे। "तुम कभी फुरसत से आना तो मैं तुमको उनके भेजे हुए गिफ्ट भी दिखाउंगी।" बहुत उत्सुकता से सुगंधा जी ने बोला। 


धीरे -धीरे समय बीत रहा था । और किसी को जानती नहीं थी। सुबह गमलों में पानी डालती तो सुगंधा जी अपने बच्चों के साथ स्कूल जाते हुए दिख जाती थी। वही चेहरे में मधुर मुस्कान और एक तेज़ के साथ। उनके व्यक्तिव से मैं बहुत ज्यादा प्रभावित थी। उनसे मिलना ,ढ़ेरों बात करना बहुत अच्छा लगता था। उनके व्यक्तित्व में झलकता संयम और आत्मविस्वास मेरे अंदर भी गज़ब की सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करती थी। 

 


एक दिन किसी काम से उनके घर गयी तो वो अपने कमरे में अलमारी की सफाई कर रही थी।


 "आजा मीनू अंदर.....इनकी अलमारी है । काफी दिन से साफ नहीं की, कल संडे है तो समय मिल गया।"..... तभी उन्होंने एक गुलाबी रंग का कुर्ता निकाला और दिखाते हुए बोली "पता है ये विक्रम को मैंने दिया था उनके जन्मदिन पर । तो बदले में वो भी मेरे लिए एक गुलाबी साड़ी लेकर आये की दोनों मैचिंग मैचिंग पहनेंगे।"....... थोड़ी देर तक उन्होंने विक्रम के कुर्ते को अपने सीने से लगाकर रखा। हमेशा चमकती आँखों में उस दिन मैंने पानी तैरता हुआ देखा।......


" मैं समझ सकती हूँ आप उनको बहुत मिस करती होंगी न ।आपके पति कब छुट्टी आएंगे?"..... उन्होंने झट से बात पलटी और हँसने लगी। 


"चाय पीयेगी मीनू... रुक, तू यहीं बैठ मैं बनाकर लाती हूँ। फिर आराम से बात करेंगे ।" 


 अलमारी खुली पड़ी थी। उनके पति के सूट कवर के अंदर रखे थे। आर्मी की कैप, बेल्ट , जूते सब कुछ सलीके से रखे थे। बाहर टेबल में उनके पर्स और घड़ी देखकर मैंने पूछा 'ये भी आपके पति के हैं।".....उन्होंने झट से सब कुछ उठाकर अलमारी में रख दिया।


 " हाँ , उन्ही के हैं। जब आते हैं हमेशा छोड़ जाते हैं, फिर वहीं खरीदते हैं।" कह कर जोर -जोर से हँसने लगी। और हम दोनों बहुत देर तक बातें करते रहे।


एक दिन सुगंधा जी स्कूल गयी थी और मैं सर्दियों में उनकी सास के साथ धूप सेखने बैठ गयी। बातों ही बातों मैं पूछ बैठी कि, आपके बेटे कब छुट्टी आएंगे?  सुगंधा जी उन्हें बहुत मिस करती हैं ।"

 उन्होंने मेरी तरफ देखा और बूढ़ी आंखों से मोटे-मोटे अश्रुओं की धार बहने लगी । रुँधे गले से कहने लगी ..


 "कभी नहीं बेटा, वो अब कभी नहीं आएगा लौटकर। उसको शहीद हुए तो वर्षो बीत गए। उसकी बेटी एक महीने की थी उसको देखने आया था। फिर वापस शहीद होकर तिरंगे में लिपट कर ही आया। उग्रवादियों से एक मुठभेड़ में उसने तीन को मारा था, न जाने कहाँ से एक गोली उसके सीने में लग गयी और वो हमसब को छोड़कर चला गया।

जितना वीर वो था उंससे कहीं ज्यादा सुगंधा है। अपने दर्द को अपने अंदर तक ही समेट कर रखा। एक मजबूत खम्ब की तरह जीवन की लड़ाई में डटी है। हमारे लिए बेटे का फर्ज़, बच्चों के लिए पिता की भूमिका निभा रही है।


 सुगंधा ने  अपनी यादों में, इस घर में उसको जीवित रखा है। विक्रम की यादों को दूसरे के साथ साझा करके अपने मन को एहसास दिलाती है कि वो अभी यहीं है और न ही हमें मानने देती है। हमसे भी यही कहती है कि कभी उसके लिए रोना नहीं, ऐसा सोचो कि वो हमसब के साथ ही है , वो...वो..कहीं दूर अपनी ड्यूटी में हैं।" 


बुझे कदमों से मैं घर लौट आयी। इतनी हिम्मत कहाँ से आती है? हमारे जांबाज़ वीर शहीद तो महान हैं ही, उनके परिवार उनसे भी ज्यादा साहसी और महान हैं।


सुगंधा जी के व्यक्तित्व से तो मैं पहले से ही प्रभावित थी, अब मैं उनके व्यक्तित्व का दिल से सम्मान करती हूँ। वो प्रेरणा है समाज के लिए खासतौर पर मेरे लिए की स्त्री कितनी सहनशील , संयमी और मजबूत होती है जो आँसुओं का सहारा न लेकर खुद को कमजोर नहीं करती है ।स्त्री किसी भी परिस्थिति में अपने परिवार की गाड़ी को लक्ष्य तक पहुँचाने में पूर्णतः सक्षम होती है । आज भी जीवन में कोई दुःख या चिंता आती है तो सुगंधा जी की जीवनी हमेशा एक प्रेरणा बनकर मेरा आत्मविश्वास  बढ़ाती है।




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