सुधा
सुधा
सुधा हमारी सहेली सुधा गायिका लेखिका, कविता पढ़ना, इसी सिलसिले हमारा रोज़ लगभग मिलना तय था।
कभी हम कुछ लिख कर सुनाते कभी वह कुछ सुनाती, साथ ही साथ वह बहु, माँ, बीबी सब थी उसके चेहरे पर कुछ घुटन सी रहती थी। एक दिन हमने पूछ ही लिया कुछ बताओ भी तो वह बोली कि "हमारा पढ़ना लिखना कुछ परिवार वालों को समझ में नहीं आता है उनके हिसाब से हम फ़ालतू समय बर्बाद करते हैं, हम सब कुछ छोड़कर निकल जायेगें हम सहन करना नहीं चाहते है।"
हमने पूछा पति का हिसाब कैसा है तो वह बोली सुर में सुर मिलाते है। हम कल तेरे घर आयेगे। जब उसके घर पहुँचे तो उसको ना पहचानने का भान करते हुये सारे परिवार से मिली और उन लोगों की तारीफ की और सुधा के लिये पूछा कि वह कैसी है ? सब का जवाब था सब ठीक है, पर पता नहीं क्या लिखती पढ़ती रहती है हमलोगों को समझ में नहीं आता है।
तब तपाक से हमने कहा कि वह तो कह रही है घर छोड़कर चली जायेगी सब एकदम से चुप और बोले कि नहीं नहीं वह जो चाहती है करे, पर घर छोड़कर ना जाये। आज सुधा बहुत बड़ी लेखिका है और पूरे परिवार का सहयोग मिलता है। कहने का आशय यह है कि नारी माँ बीबी बहु बेटी बहन के आलावा भी बहुत कुछ है उसका सहयोग करे ना कि आलोचना।