सुबह
सुबह
निशा गर्भवती थी| उसका पाँचवां महीना चढ़ गया था | स्कूल में पढ़ाती थी |देवर की शादी थी इसलिए स्कूल से छुट्टी ले लिया था |पूरा घर मेहमानों से भरा था |ऐसे में आराम करना तो दूर की बात, थोड़ी देर बैठ पाना भी मुश्किल था |वह घर की बड़ी बहु थी |ना -ना करके भी बहुत सी जिम्मेवारियाँ निकल ही आती थी |यथासंभव सबकुछ सही तरीके से निपटाने के प्रयास करती |उसे सबसे बड़ा लगाव था |पिता समान ससुर, और माँ जैसी सास मिली और दोनों देवर, जैसे दोनों भाई हों उसके |
शादी के लिए बारात दिल्ली गयी थी |दो दिन बाद सब वापस आ रहे थे |निशा तो ख़ुशी से फूली ना समा रही थी |आज उसे सदा के लिए देवरानी मिलने वाली थी |उसने मन ही मन सोच रखा था कि उसे इतना प्यार देगी कि उसे अपने घरवालों की याद नहीं आएगी |उसका इंतज़ार ख़त्म हुआ |परियों सी खूबसूरत देवरानी को उसने घर -आंगन में रस्मों रिवाज के साथ उतारा |देवर -देवरानी साथ -साथ कितने प्यारे लग रहे थे | अब रिसेप्शन होना था |सभी रिश्तेदार व आसपड़ोस वाले आये |सबने बेटे -बहु को ढेरों आशीर्वाद दिया |निशा की सास की सहेली कांता आंटी भी आयीं थीं |उनका निशा काफी सम्मान भी करती थी |
उन्होंने नयी बहु व उसके साथ आये सभी सामानों का पूरा निरीक्षण कर लिया फिर निशा की ओर मुड़ीं और पूछ बैठी "बहु !तुम्हारा दहेज़ कहाँ है?तुम अपने साथ कुछ ना लायी थी??"सवाल सहज था, पर जवाब कठिन था |
उसे ऐसा लगा कि उसके कानों में गरम सीसे का घोल डाल दिया गया हो |क्षण भर के लिए सोचने लगी कि उसके मायके की वस्तुओं से, भला उन्हें क्या लाभ होना था? इसका मतलब यही था कि सवाल घरवालों के थे |बस जुबान बाहरी थी |ये ज्यादा दुखकर था |क्यूंकि निशा एक मध्यमवर्गीय परिवार से आयी थी |कुछ फल -मिठाई और मामूली तोहफों के अलावा कुछ खास ना लायी थी |जबकि नयी बहु आईएफएस की बेटी थी |उसके साथ आयी हुयी विदेशी दहेज़ ने घर का कोना -कोना भर दिया था |
उसे लगा कि शादी के दो सालों तक उसके द्वारा की गयी सेवा का कोई मोल ना था इससे कही अच्छा होता कि वह भी धन -दौलत से सबके मुंह बंद कर पाती | निशा को समझ में आ गया था |उसका सच्चा प्यार व बड़ों के प्रति श्रद्धा नीलाम हो रही थी |उनकी बोली कौड़ियों के भाव, लगी थी |द्रौपदी के समान भरे दरबार में उसका चीर -हरण हो रहा था |आंखे बरस रही थी |कंपकंपाते लब से शब्द ना निकले |मन में श्री कृष्णा का स्मरण कर अपनी आबरू बचाने की प्रार्थना कर रही थी |
दो दिन बाद ही अख़बार में समाचार छपा था |सास की उस सहेली का घर नीलाम हो रहा था |बिज़नेस में अच्छा -खासा नुकसान हो गया था | अगले महीने ही वह परिवार किराये के मकान में रहने किसी और मोहल्ले में चले गए थे |कृष्णा ने भक्त की आबरू को बचा लिया था !ससुराल में उनका प्रवेश व हस्तक्षेप बंद हो गया था ! पर उनकी बातों का सबसे बड़ा परिणाम ये दृष्टिगोचर हुआ कि निशा बदल गयी थी |अब वह अपने आप से व अपने अजन्मे शिशु से ज्यादा प्यार करने लगी थी |बाकियों के दिलों की बात तो वह जान चुकी थी |यह समझ चुकी थी उसके अमूल्य प्रेम के बजाय दहेज़ में आयी वस्तुओं का अधिक मोल था वहाँ |
किसी से बिना कुछ कहे अपने घर आ गयी |इन सबमे उसे अपने पति का सहयोग मिला क्यूंकि अपनी भोली -भाली पत्नी का सार्वजनिक अपमान उन्हें भी बुरा लगा था | वहीँ बेटे का जन्म हुआ|फिर तो मायके से सीधे पति के साथ, उनके नौकरी वाले स्थान पर ही रहने आयी| जीवन के उतार -चढ़ावों को पति -पत्नी ने मिलकर सुलझा लिया था|मायका ही नहीं बल्कि ससुराल से भी उसने मानसिक तौर पर सदा के लिए विदाई ले ली थी !!
राह चाहे कितना भी कठिन हो |रात चाहे कितनी भी काली क्यों न हो? सुबह का प्रकाश तन -मन रौशन करता ही है |भगवान अपने भक्तों को कभी अकेला नहीं छोड़ते !!