STORYMIRROR

Piyosh Ggoel

Inspirational Children

3  

Piyosh Ggoel

Inspirational Children

सत्यव्रत की कथा

सत्यव्रत की कथा

3 mins
820

कौशल देश में देवदत्त नाम से एक ब्राह्मण रहते थे। उनकी कोई भी संतान नहीं थी इस बात से वह अत्यंत दुखी रहते थे। तब एक दिन उन्होंने पुत्रयोष्टि यज्ञ करने का निश्चय करा। इस यज्ञ के प्रभाव से निसंतान को संतान मिल जाती हैं। देवदत्त ने पूर्ण विधि के अनुसार सारे कार्य संपन्न करें। बड़ा मंडप सजाया व उच्च कोटि के ब्राह्मणों को बुलवाया और ब्राह्मणों ने यज्ञ करना आरंभ करा। जब यज्ञ में गोभिल जी मंत्रों का जाप करने लगे तब सांस लेने के कारण उनका स्वर बार-बार हिलता रहा यह सब देख देवदत्त गुस्से में आ गया और बोला - " मुनिवर ! तुम बड़े मूर्ख हो मैं पुत्र प्राप्त करने के लिए यज्ञ कर रहा हूं तुमने इस साकाम यज्ञ में स्वरहीन मंत्र का उच्चारण कर दिया। "

देवदत्त की बात सुनने से गोभिल जी को क्रोध आ गया और उन्होंने देवदत्त को श्राप दिया कि तेरा पुत्र मूर्ख होगा। गोभिल जी की बात को सुनकर देवदत्त चिंता में आ गया और गोभिल जी के चरण पकड़ कर उनसे माफी मांगने लगा और कुपुत्र से बचने की कामना करने लगा। देवदत्त जानता था कि कुपुत्र होने से तो अच्छा है कि पुत्र हो ही न । तब गोभिल जी ने देवदत्त को आश्वस्त करा की वह पुत्र बाद में ज्ञानी भी हो जाएगा ।

समय आने पर देवदत्त की सुंदरी स्त्री ने गर्भधारण किया। वह रोहिणी के समान ही शुभ लक्षणा थी। देवदत्त ने विधि के साथ गर्भधारण करा और पुंसवन आदि संस्कार संपन्न किए। उसका श्रृंगार कराया। वेदों में कही हुई विधि के अनुसार सीमंतोनयन संस्कार किया। अपना मनोरथ सफल मानकर अत्यंत प्रसन्न मन से बहुत सा धन दान किया। शुभ ग्रह का नक्षत्र रोहिणी था। उसी शुभ मुहूर्त में उस रोहिणी नामक भार्य ने पुत्र पुत्र प्रसव किया। दिन में शुभ लग्न में जन्म हुआ। उसी समय ब्राह्मणों ने बालक का जातकर्म संस्कार किया। उस पुत्र का नाम उतथ्य रखा गया। उतथ्य को गुरुकुल भेजा गया पर वहां उसे कुछ भी समझ में नहीं आता था उसकी मूर्खता के कारण पिता ने उतथ्य को त्याग दिया।

उतथ्य गंगा के तट पर एक कुटिया बनाकर रहने लगा। उसे न तो संध्या वंदन आता और न ही प्रातः वंदन। वह बस सुबह उठता और सो जाता। वह हमेशा सच बोलता इसलिए उसका नाम सत्यव्रत पड़ गया। 

एक बार एक सुअर डरते हुए दौड़कर सत्यव्रत ऋषि के सामने से गुजरा तभी एक व्याध भी वहां आ धमका और वह सत्यव्रत से सुअर के विषय में पूछने लगा। यह प्रश्न सुनकर सत्यव्रत चिंता में पड़ गए क्योंकि अगर वह सच बोलते तो निर्दोष पशु मारा जाता और झूठ बोलते तो उनका सत्य बोलने का व्रत खण्डित हो जाता। तभी अपने आप सत्यव्रत के मुख से भगवती का वाग्बीज मंत्र से निकल पड़ा और उन्हें अलभ्य विद्या आ गई। तब सत्यव्रत ने व्याध से कहा - "व्याध ! जो देखनेवाली आंखें है , वो बोलती नहीं और जो बोलने वाली वाणी है, वो देखती नहीं फिर तुम एक ही प्रश्न बार - बार क्यों पूछ रहे हो "? मुनि की बाते सुनकर व्याध का हृदय परिवर्तन हो गया और वह चला गया।

जब पिता को पता चला कि सत्यव्रत इतना ज्ञानी हो गया तब पिता भी सत्यव्रत को अपने साथ ले आए ।



ಈ ವಿಷಯವನ್ನು ರೇಟ್ ಮಾಡಿ
ಲಾಗ್ ಇನ್ ಮಾಡಿ

Similar hindi story from Inspirational