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Rohit Yadav

Abstract

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Rohit Yadav

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स्टेशन

स्टेशन

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तुम स्टेशन पर छूटती आखिरी रेल की तरह हो जिसे पकड़ना मेरे लिए बेहद ज़रूरी है। ये स्टेशन तारों की छाँव जैसा है और ये छूटती रेल मुझे सवेरे की और ले जाने वाली थी। मैने पूरी कोशिश की लेकिन पहुँचने में शायद देर हो चुकी थी और अब सवेरे के इंतज़ार में वक़्त स्टेशन पर ही गुज़ारना पड़ेगा।

      रात गहरी काली हो चुकी है और चारों तरफ़ सन्नाटा आवाज़ कर रहा है, जो काफी डरावना है। स्टेशन के पीछे के दरवाजे से भी निकला जा सकता है लेकिन उस तरफ़ खाई है और कूदना पड़ेगा। शायद अभी मैं उतना निराश नहीं हुआ हूँ कि पीछे की और निकल जाऊं।

      ये स्टेशन थोड़ा अजीब लग रहा है। अंधेरा बढ़ता ही जा रहा है। घड़ी की टिक टिक भी वक़्त नहीं बता रही है। उधर कुछ लिखा हुआ धुँधला धुँधला दिखाई पड़ रहा है। ध्यान से देखने पर पता चला कि वो घड़ी भी अलग थी, जैसे किसी इंसान का दिमाग हो और उसमें वक़्त कुछ इस तरह बताया जा रहा था कि "अभी अंधेरा है लेकिन सवेरे का होना तुम पर निर्भर है।" किसी से इसका मतलब पूछने के लिए मैंने स्टेशन पर नज़र दौड़ाई मगर वहाँ कोई नहीं था सिवाय मेरे।

      यह अंधेरा भी अजीब है। मेरे हिसाब से 12 घण्टे हो चुके हैं लेकिन सवेरा होने के बजाय अंधेरा गहराता ही जा रहा है। धरती पर तो 12 घण्टे में दिन से रात या रात से दिन हो जाता है। तो क्या ये दुनिया अलग है या फ़िर मैं कोई डरावना सपना देख रहा हूँ ?

      इसी उधेड़बुन में खोए हुए मेरा ध्यान स्टेशन पर बढ़ते शोर की तरफ गया। वहाँ पर लोगों का हुजूम सा दिखाई पड़ने लगा है। बात करने पर पता चला कि उन सबकी भी अपनी तरह की आखिरी रेल छूट गयी है, लेकिन मैंने तो इधर से कोई रेल गुजरते नहीं देखी। फ़िर छानबीन की तब पाया कि यह कोई आम स्टेशन नहीं है। इसमें पीछे सिर्फ एक दीवार है जिसका काम है खाई में सीधे गिरने से रोकना और आगे एक अनंत तक फैला हुआ पटरियों का समंदर है जिस पर से रोज़ाना अनगिनत रेल गुज़रती हैं।

      जो लोग और आये थे, उनमें से कुछ ऐसे भी थे जो पहले इस स्टेशन से सही सलामत निकल चुके थे। उन्होंने निकलने का रास्ता बताया, जो जितना आसान था उतना ही मुश्किल, कि एक सही इंसान का हाथ थामों और भरोसा करके चलना शुरू करो। कुछ वक़्त लगेगा लेकिन तुम निकल जाओगे यहाँ से बाहर जहाँ अंधेरा डरावना नहीं है, दिन और रात भी सही वक्त पर होते हैं, घड़ी की टिक टिक अच्छी लगती है। 

      कुछ लोग आए भी मेरा हाथ थामने, शायद उनमें से कुछ सही इंसान भी होंगे लेकिन मुझको शायद यह स्टेशन अच्छा लगने लगा था या फ़िर मेरे दिमाग में कहीं चल रहा था कि छूटी हुई रेल कभी तो वापस आएगी। शायद इसी वजह से मैं यहाँ इंतज़ार में रुक गया हूँ। काफी वक़्त बीत चुका है। मैंने खाई में कूदते लोग देखे हैं, हालाँकि उस दीवार ने बहुत जतन किये थे उनको रोकने के लेकिन इस अंधेरे से शायद वो लोग इतना डरे हुए थे कि खाई में कूदने का डर खत्म हो गया होगा।

      काफ़ी वक़्त बीत चुका है ,स्टेशन पर रहते हुए और मैं अब भी इंतज़ार कर रहा हूँ। इसकी एक खासियत और नाम बताकर विदा लेना चाहूँगा। खासियत ये है कि यहाँ आने वाले लोगों को इसका नाम, रास्ता, वक्त कुछ मालूम नहीं होता है कि वो यहाँ पर कब, कैसे, और क्यों आए, और यहाँ से निकल चुके लोगों से नाम मालूम हुआ है, नाम है - डिप्रेशन, उदासी, तन्हाई या फ़िर निराशा, जो आपको अच्छा लगे कह सकते हो।


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