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bela puniwala

Classics

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bela puniwala

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ससुराल

ससुराल

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शीला की पढाई के बाद उसने अपने मम्मी-पापा की मर्ज़ी से उनके पसंद के लड़के के साथ शादी की, शीला के मम्मी-पापा ने बहुत अच्छा घर और लड़का देखा था और तो और पैसो की भी कोई कमी नहीं थी, समाज में शीला के ससुराल वालों का नाम और रूड़बा भी बहुत अच्छा था। 

शीला के ससुराल में उसके सास, ससुर, बड़े भाई-भाभी, छोटी नन्द, जो अभी कॉलेज में पढ़ती थी, वह सब साथ में रहते थे, शीला के पति सुशांत और उसके बड़े भाई एक ही कंपनी में काम करते थे, इसलिए वह दोनों साथ में ही टिफ़िन लेकर ऑफिस चले जाते और छोटी नन्द भी अपना टिफ़िन लेकर कॉलेज चली जाती, घर में शीला, उसकी जेठानी और उसकी सास, ससुर रह जाते, घर का सारा काम मिल-जुलकर कर लेते, उसके साथ-साथ शीला को लिखने का नॉवेल पढ़ने का भी बहुत शौक था।

शीला को जब भी वक़्त मिलता तो नॉवेल पढ़ लेती या अपनी डायरी और पेन लेकर कुछ लिखने बैठ जाती। यह बात उसके पति सुशांत को भी पता थी, मगर इस बात से सुशांत को कोई तकलीफ नहीं थी, कभी-कभी वह अपने शायरी, कविता या कहानी अपने पति सुशांत को भी सुनाया करती। सुशांत को भी उसकी कविता और कहानी अच्छी लगती, वह उसकी तारीफ़ करता। शीला ने एक किताब लिखी थी, जो सुशांत को भी नहीं पता था, लेकिन एक दिन अपनी अलमारी से फाइल ढूंँढते वक़्त सुशांत के हाथों में शीला की वह डायरी आ गई, सुशांत ने डायरी के पहले दो पन्ने उसी वक़्त पढ़ लिए, जो बहुत ही दिलचस्प लगे, इसलिए सुशांत ने वह डायरी अपने पास रख ली और वह उसे ऑफिस ले गया, जैसे ही सुशांत को थोड़ा सा वक़्त मिलता, वह शीला की डायरी पढ़ने लगता, ऐसे कर के कुछ ही दिनों में उसने वह डायरी पढ़ ली और सच में वह एक बहुत अच्छी प्रेम कहानी थी। जिस में जैसे शीला के दिल की हर एक बात हो, ऐसा सुशांत को डायरी पढ़ के लगा, तब सुशांत के मन में ख्याल आया, कि क्यों ना इस डायरी को ही किताब का नाम दिया जाए और ये प्रेम कहानी सब को सुनाई जाए, इसलिए अपने मम्मी-पापा और भैया-भाभी से बात कर के उनकी इजाज़त लेकर चुपके से सुशांत ने वह डायरी को एक किताब का रूप दे दिया। 

और शीला की सालगिरह पर सुशांत ने उसी की लिखी हुई डायरी, किताब के रूप में उसे देते हुए कहा, कि अब तुम्हारे पास एक साल और है, अपनी नई किताब लिखने का, हम सब को तुम्हारी ये प्रेम कहानी बहुत पसंद आई है, तो अब दूसरी किताब लिखना भी शुरू कर दो। 

ये बात सुनते ही शीला के तो होश ही उड़ गए, क्योंकि उस किताब के बारे में उसने कभी किसी को नहीं बताया था, उसे यह किताब सुशांत के हाथों कैसे लगी ये भी नहीं पता था, तभी घर के बाकि लोग भी तालियांँ बजाते हुए शीला को मुबारक बाद देने लगे, उसने सोचा भी नहीं था, कि ससुराल में उसके लिखने की कला को इतना मान-सम्मान दिया जाएगा, क्योंकि मायके में तो जब भी वह लिखने बैठती तो वह लोग कहते, कि तुम्हारी शायरी और किताब ससुराल में कोई नहीं पढ़ेगा, बल्कि चपाती गोल बनी या नहीं, सब्जी स्वादिष्ट बनी या नहीं, ससुराल में यही सब देखा जाएगा। 

 ये सब याद आते ही शीला की आँखों से ख़ुशी के आँसू बहने लगे, क्योंकि शीला एक बहुत सिंपल सी लड़की थी, जैसा उसने आज तक ससुराल के बारे में सुना या देखा था, उस से बिलकुल उल्टा उसका ससुराल और उस घर के लोग थे। यहाँ जो जो देखा, सुना था, उस से उल्टा ही हो रहा था, शीला के ससुराल वाले शीला की बहुत तारीफ करते और जहाँ भी जाते सब के पूछने पर बड़े गर्व से कहते, कि हमारी शीला हाउस वाइफ के साथ-साथ एक बहुत अच्छी राइटर भी है और ये कविता और कहानी बहुत ही अच्छी लिख लेती है।

तो दोस्तों, हर बार ससुराल वाले गलत ही हो, ये भी सही नहीं, कई घर में आज कल बहु को बेटी का दरज्जा दिया जाता है, मगर ये बात भी सच है, कि बहु को भी ससुराल में सब को मान-सम्मान देना चाहिए, तभी वह उनके दिल में अपनी जगह बना सकती है, क्योंकि ताली एक हाथ से नहीं बजती, वैसे ही अगर ससुराल में आपको मान-सम्मान चाहिए तो पहले सब को मान-सम्मान देना भी सीखना होगा। 


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