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bela puniwala

Romance

3  

bela puniwala

Romance

गलियाँ भाग-1

गलियाँ भाग-1

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                   गलियाँ ( Part-1 )    


आज भी हमें याद है, वो गलियाँ, जहाँ पहली बार दीदार हुआ था उनका, उनकी " वो झुकी हुई सी पलकें, वो रेशमी, मुलायम काले घने लहराते हुए बाल, वो पीला दुपट्टा, वो मद-भरी मुस्कान और भी मदहोश किए जाती थी हम को, उनकी वो कातिल अदाएँ, क्यों ना हो जाए दीवाना कोई ?" लगता था, जैसे खुदा ने बड़ी फुरसत से बनाया था  उनको।  

    वो गलियाँ जिसे हम छोड़ आए थे पीछे, उसे देखते ही वक्त थम सा जाता था, सांसें एक पल के लिए रुक सी जाती थी। जहाँ सांसें बसती थी हमारी, जहाँ जान रहती थी हमारी, ये वही तो वो गलियां है, जहाँ से गुज़र ने को हम कई बहाने बनाया करते थे। उनके एक बार दीदार करने को कई बार किसी न किसी बहाने से जाया करते थे। दोस्त भी हमारा मज़ाक उड़ाया करते थे, पर हमें परवाह कहा थी किसी की, जब वो आती थी झरोखे से बाहर तो चुपके से हम उनका दीदार किया करते थे, माली से वह जब फूल लिया करती थी तब जैसे सारी गलियाँ फूलों की खुशबू से महक जाती थी। कभी पास से गुजर जाए तो हमारी सांसें पल दो पल के लिए थम सी जाती थी, उनका वो पिला दुपट्टा हमें यूँ एक बार छू के गया, ठंडी हवा का हो झोंका जैसे, वक्त का था हमें होश कहा। उनकी एक झलक देखने सुबह के इंतज़ार में सारी-सारी रात जगा करते थे, सबसे पहले जाकर बैठ जाते उस चौराहे पे जहाँ से वो गुज़रने वाली होती थी। 

    " प्यार उनको भी था, प्यार हम को भी था, बस भूल हुई इतनी हमसे, कभी दिल की बात ला ना सके इन लबों पे। " ऐसा भी क्या था उनमें की उनको देखकर एक चुप्पी सी छा जाती थी इन लबों पे, बस उनको देखते ही रह जाते थे, उनका वो चुपके से हम को देखना और नजरें चुराना आज भी हमें याद है। 


  आँखों ही आँखों में बातें करते रहे, वक़्त बीतता चला गया, एक दिन सोचा आज तो इज़हारे महोब्बत करना ही है, चाहे आऐ आँधी या तूफ़ान। आज तो दिल की बात बताके ही रहेंगे उनसे, बहुत हुआ अब तो आंँखों ही आँखों में बातें करना, अब नहीं तो कब बताएंँ दिल की बात? आँखों में थे कई सपने और दिल में कई अरमान। ना कुछ सोचा ना कुछ समझा। चल दिए बस उनकी ओर, हमको लगा कि आज जैसे सारी कायनात हमको उससे मिलाने के लिए तैयार थी, हम मानो पहुँच ही गए थे, अपने दिल की बात बताने उनकी गलियों तक। मगर हम ने देखा कि " उनकी गलियांँ जहाँ वह रहती थी, वह गलियांँ आज फूलों से महक रही थी, चारों और ढोल तासे बज रहे थे, कानों में जैसे शहनाईयाँ बज रही थी, दिल की धड़कने और भी तेज़ होती जा रही थी।" उतने में हम ने देखा, कि हमारी हुसन-ए-सबाब डोली में बैठकर किसी और की होने जा रही थी। 

   हम ने अपने आप से कहाँ, " चार दिन क्या गए हम इस शहर से दूर, यहाँ तो हवाओं ने अपना रुख ही बदल डाला। एक और दिन हमारा इंतज़ार न किया ज़ालिम ने, हमको सपने देकर वो चल दिए किसी और के संग ! " 


 उसने डोली में से एक नज़र हमको देखा, उस पल हम को लगा जैसे उनकी निगाहें कर रही थी एक सवाल, " अगर प्यार करते थे हमसे इतना, तो ज़रा सी हिम्मत करके, हमको बताया होता सिर्फ एक बार, हमको भी था इंतजार इज़हार-ए-इश्क़ का, हम दौड़ के तेरी बांहों में चले आते, तोड़ देते सारे बंधन, अगर तूने एक बार बताया होता। प्यार हमको भी था प्यार तुमको भी था, फिर क्यों हो गए इतने फासले, क्यों तुम हमको बता ना सके ? वक्त को क्या यही मंजूर था ? "

   " सपना टूटा, दिल टूट गया। " उनको किसी ओर का होता देखते रह गए, अब आहें भर ने से क्या फायदा जब वक्त को भी ये मंजूर नहीं था। दिल से अब तो सिर्फ यही दुआ निकलेगी, " तू जहाँ भी रहे, खुश रहे, आबाद रहे तू, तेरी झोली हमेशा खुशियों से भरी रहे, हमारा क्या है हम तो तेरी यादों के सहारे जी लेंगे, मगर इन गलियों से ना गुज़रेंगे कभी, जहाँ देखे थे इन आँखों ने सपने कई। "

   दिन बदले, मौसम बदले पर हम ना बदले।

   आज भी आँखें बंद करूं, तो वही मुस्कुराता चेहरा नज़र आता है। वो झुकी हुई पलकें, वो मदहोश कर देने वाली निगाहें, वो हवा में लहराते रेशमी बाल और भी बहुत कुछ, बस इन्हीं यादों के सहारे जी रहे हैं हम। और आज भी दिल से आवाज़ यही निकले, तू जहाँ भी रहे खुश रहे, आबाद रहे।

   मगर उस आशिक़ को क्या पता था ? कि आज भी उसकी महबूबा उसका इंतज़ार कर रही है उन्हीं गलियों मैं। 


   तो दोस्तों, कैसे मिलेंगे दो बिछड़े दिल, जानने के लिए अंश २ का इंतज़ार कीजिए। 

क्रमशः

                                                                   

                       


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