STORYMIRROR

Sangeeta Aggarwal

Inspirational

4  

Sangeeta Aggarwal

Inspirational

ससुराल गैंदा फूल या ??

ससुराल गैंदा फूल या ??

5 mins
348

"मां मन को मार के खुश नहीं रहा जा सकता ये बात समझो तुम!" श्वेता अपनी मां शैलजा जी से बोली।

" तो मैं कौन सा उसका मन मार रही हूं। जो चाहती वो कर तो रही!" शैलजा जी तुनक कर बोली।

" ये मन मारना ही तो है मां ... भैया को ऑफिस से आ घंटों अपने पास बैठाए रखना उन दोनों को कहीं बाहर ना जाने देना...नई शादी हुई है उनकी एक दूसरे के साथ समय बिताएंगे तभी तो खुश रहेंगे ... वरना उनके दुखी रहने से क्या ये घर खुश रह पाएगा सोचो आप!" श्वेता बोली।

" मतलब तुझे ये लगता मेरा बेटा मेरे पास बैठ समय बीताता ये गलत है उसे आते ही अपनी बीवी के पास चले जाना चाहिए ... फिर मेरा क्या मैं तो घर में अकेली पड़ जाऊंगी ना एक बेकार फर्नीचर की तरह!" शैलजा जी बोली।

" उफ्फ मां आप कहां की बात कहां ले जाते हो मैं ये नहीं कह रही के भैया आपके कमरे में ना आ सीधा भाभी के कमरे में जाएं... पर थोड़ी देर बाद उन्हें भेज दिया करो ना कभी कभी दोनों को खाना साथ खाने दिया करो आपके पास भाभी सारा दिन रहती उनसे बातें किया करो आपका भी मन लगा रहे उनका भी !" श्वेता फिर बोली।

" उस कल की आई से क्या बात करूं मैं । मेरा बेटा मुझे समझता है मुझसे बात कर उसे भी खुशी मिलती है !" शैलजा जी बोली।

" वो कल की आई अब जिंदगी भर यहीं रहने वाली है मां ... मैं अपने ससुराल में हूं भैया सारा दिन जॉब पर रहते बची कौन आपके पास बस भाभी । उन्हें दिल से अपनाओगी तो वो भी आपको अपनाएगी वरना एक गांठ पड़ जाएगी आप दोनों के रिश्ते में जिससे भैया सबसे ज्यादा परेशान रहेंगे !" श्वेता फिर बोली।

" हम्म तो तेरी नजर में मुझे क्या करना चाहिए ?" शैलजा जी ने बेटी से सवाल किया।

" आप भाभी को मेरी तरह अपने सुख दुख का साथ बनाओ। अच्छा ये बताओ जब आपकी शादी हुई थी आप नहीं चाहती थी पापा आपके साथ ज्यादा वक़्त बिताएं। आपको नहीं लगता था दादी आपको प्यार से सब सिखाए जैसे नानी सिखाती थी आपको। क्या मन की पूरी नहीं होने पर आप खुश रहती थी।" श्वेता ने मां से पूछा।

" अरे तेरी दादी तो चाहती नहीं थी तेरे पापा उन्हें छोड़ मेरे पास आएं ... और कोई गलती होने पर कितना सुनाती थी वो मुझे सिनेमा का कितना शौक था पर तेरी दादी ने कभी जाने ही नहीं दिया की बहुएं अच्छी नहीं लगती ऐसे सिनेमा देखने जाते हुए!" शैलजा जी जैसे अतीत में खो गई।

" मां आपको नहीं लगता आप भी कहीं ना कहीं भाभी के साथ यही कर रहे हो!" श्वेता मां की गोदी में लेटती हुई बोली।

" ओह... सही कहा तूने कम उमर में तेरे पापा मेरा साथ छोड़ गए अकेले तुम्हे पाला पोसा। तुम्हारी शादी बाद तुम दूर चली गई जो स्वाभाविक है पर मुझे लगने लगा कहीं शलभ भी मुझसे दूर ना हो जाए शादी बाद ... अपने इसी स्वार्थ में मैं मानसी के साथ तो अन्याय कर ही रही साथ साथ शलभ के साथ भी !" शैलजा जी बोली।

" मां हम सब आपको बहुत प्यार करते हैं आपने हमारे लिए को त्याग किए सब याद हैं हमें हम आपको कभी अकेला नहीं होने देंगे ... भाभी भी बहुत अच्छी है आपके बारे में सोचती हैं तभी चुप रहती पर उनके चेहरे की उदासी मैने महसूस की है बस इसलिए आपसे ये बात की मैने !" श्वेता बोली।

" मुझे अपनी गलती का एहसास है बेटा साथ ही ये खुशी भी है कि मेरी लाडो इतनी समझदार हों गई जो अपनी मां को गलत करने से रोक रही।" शैलजा जी बेटी का माथा चूमते हुए बोली।

बाहर मानसी जो चाय लेकर आ रही थी ये बात सुन उसकी आंख भर आई ...वो खुद से सोचने लगी " कौन कहता है ससुराल में बेटी अकेली होती है श्वेता दीदी जैसी समझदार ननद हो तो हर भाभी को सहेली मिल जाती है ... और मम्मी जी ठीक है थोड़ी सी गुस्से वाली हैं पर उनका सोचना भी गलत नहीं मैं खुद आगे बढ़ अब अपनी इस सुंदर सी ससुराल रूपी बगिया में खुशी के फूल खिलाऊंगी !" 

" लीजिए मम्मी जी , दीदी चाय पीजिए !" कमरे में आ मानसी बोली।

" आइए ना भाभी आप भी हमारे साथ पीजिए!" श्वेता बोली।

" वो दीदी खाने की तैयारी करनी सोच रही हूं मम्मी जी की पसंद के लौकी के कोफ्ते बना लूं!" मानसी बोली।

" कोई जरूरत नहीं कोफ्ते बनाने की तुम चाय पियो फिर तैयार हो जाओ शलभ आता ही होगा आज घूम आओ थोड़ा खाना बाहर ही खा आना यहां हम देख लेंगे !" शैलजा जी बोली।

" नहीं मम्मी जी घूमने जाएंगे तो सब साथ !" मानसी बोली।

" नहीं भाभी आपकी नई शादी है आपको भैया के साथ अपना रिश्ता मजबूत करना चाहिए उनके साथ समय बिता!" श्वेता प्यार से बोली।

" दीदी रिश्ता तो आप सबके साथ भी मजबूत चाहती मैं !" मानसी श्वेता का हाथ पकड़ते हुए बोली।

" देखा मां कितनी समझदार भाभी है मेरी !" श्वेता भाभी को प्यार से गले लगा बोली।

" हां तो बहू किसकी है आखिर!" शैलजा जी हंसते हुए बोली और बेटी बहू को गले लगा लिया।

आज मानसी का चेहरा सच में खिले फूल जैसा हो गया था।

दोस्तों शैलजा जी की तरह बहुत सी माओं की सोच होती के शादी के बाद बेटा दूर हो जाएगा .. पर अगर जरा सी समझदारी से चला जाए तो बेटा तो अपना रहता ही है बल्कि बहू के रूप में एक बेटी, एक दोस्त भी मिल जाती।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational