Shailaja Bhattad

Inspirational

5.0  

Shailaja Bhattad

Inspirational

सरहद पर बसंत पंचमी

सरहद पर बसंत पंचमी

1 min
216



====

"मां ! लेकिन पिताजी न तो पकवान खा पाएंगे, न हमारी तरह उत्सव का आनंद ले पाएंगे।" उदास मन से शीतू ने अपनी मां से कहा। "क्या पिताजी कुछ दिनों के लिए घर नहीं आ सकते?" 

"नहीं, शीतू बेटा! अभी तुम्हारे पिताजी को छुट्टी नहीं मिल सकती, पिताजी की आवश्यकता हमसे ज्यादा सीमा पर है।" "लेकिन एक साल हो गया, मां ! पिताजी अभी तक एक बार भी नहीं आए।" विचलित मन से शीतू ने कहा। "जानती हूं, लेकिन क्या कर सकते हैं ?" 

"क्या कर सकते हैं?" मां!  हम बहुत कुछ कर सकते हैं।" चहकते हुए शीतू ने कहा, मानो उसे अलादीन का चिराग मिल गया हो। "मां इस बार ज्यादा मिठाई बनाओ। मैं अभी पतंग और हर्बल रंग बाजार से लेकर आती हूं, पिताजी नहीं आ सकते तो क्या हुआ, हम तो उनके पास जा सकते हैं, हम पिताजी के साथ एक दिन तो बिता ही सकते हैं न, माँ! "हां, विचार अच्छा है, इस बार की बसंत पंचमी हम सरहद पर सभी सैनिकों के साथ मनाएँगे, बस तुम्हारे पिताजी से फोन पर एक बार पूछ लेती हूं"।कहकर मां अंदर चली गई।

इधर शीतू एक दिन की योजना बनाने लगी- "सुबह बसंत पंचमी मनाएंगे, दोपहर में होली खेलेंगे फिर शाम को पतंग उड़ाएंगे। बहुत मजा आएगा।"  प्रफुल्लित मन से शीतू बाहर अपने सभी मित्रों को बताने चली गई।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational