Priyanka Gupta

Drama Romance Fantasy

4.5  

Priyanka Gupta

Drama Romance Fantasy

सपनों वाली लड़की (#Non stop November #advanced # day-1)

सपनों वाली लड़की (#Non stop November #advanced # day-1)

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आई पी एस अधिकारी कुणाल के मम्मी -पापा ने कई लड़कियों के रिश्ते अपने बेटे के लिए सुझाये ;लेकिन कुणाल को कोई लड़की पसंद ही नहीं आती थी। अप्सरा जैसी सुन्दर, अच्छी पढ़ी -लिखी आदि कई लड़कियों के रिश्ते आये ;लेकिन फोटो देखने से आगे बात नहीं बढ़ी।

मम्मी -पापा ने कई बार पूछा भी कि, "अगर तुम्हें कोई लड़की पसंद हो तो बता दो। हमें तुम्हारी पसंद की लड़की से शादी करवाने में कोई समस्या नहीं है। "

"कोई लड़की नहीं है। जब कोई होगी तो आप लोगों को जरूर बताऊँगा। ",कुणाल हमेशा यही कहता। वह अपने मम्मी -पापा को कैसे बताता कि, "वह उस लड़की की तलाश में है ;जो अक्सर उसे सपनों में दिखाई देती है। वह उसके प्रति एक अलग सा आकर्षण महसूस करता था। उसने तो पुलिस की नौकरी भी केवल इसीलिए चुनी थी ताकि वह उस तक पहुँच सके। 

"बेटा, आजकल जैसे lgbt समुदाय के अधिकारों को महत्त्व दिया जा रहा है और उनके संबंधों को सम्मान पूर्वक स्वीकार किया जा रहा है ;वैसे ही अगर तुम्हारे दिल में कुछ और हो तो तुम हमें बता सकते हो। ", कुणाल के पापा ने अत्यंत संकोच के साथ कह ही दिया। 

"नहीं, मम्मी -पापा ऐसी कोई बात नहीं है। ",कुणाल फ़ोन अटेंड करने के बहाने से वहाँ से चला गया था। 

पता नहीं ;ऐसी कोई लड़की है भी या नहीं। वही लड़की मुझे अलग -अलग वेशभूषा में दिखती है। कभी ऊपर से नीचे तक गहनों से लदी हुई नृत्य करती दिखती है। कभी लहँगा -चुन्नी पहने हुए, मंदिर में शीश झुकाते हुए दिखती है। कुणाल हमेशा की तरह उस लड़की के बारे में सोच रहा था। 

कुणाल को एक दिन रेड अलर्ट क्षेत्र में किसी अव्यस्क लड़की को अगवा करके लाने की सूचना मिली। कुणाल एक बच्ची को इस दलदल में फँसने से बचाना चाहता था। उसने अपने चुनिंदा लोगों के साथ उस क्षेत्र में रैड डाली और उस बच्ची को वहाँ से निकाल लिया। जब कुणाल बच्ची की ऊँगली पकड़े उन अँधेरी और सँकरी गलियों से बाहर निकल रहा था ;तब उसे एक घर की बालकनी से झाँकते हुए वही सपने वाली लड़की दिखाई दी। कुणाल फ़ौरन गली से बाहर मुख्य सड़क तक आया और बच्ची को अपनी टीम के सबसे सीनियर मोस्ट व्यक्ति को सौंपा और कहा, "तुम टीम को लेकर जाओ। चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट भी पहुँच जायेगी। उसके साथ बच्ची थोड़ा सहज हो जायेगी। मैं एक जरूरी काम ख़त्म करके आता हूँ। "

कुणाल तेज़ी से उसी अँधेरी गली में सपने वाली लड़की को ढूंढने लौट गया। वह उसी घर के नीचे जाकर रुका। अब तक लड़की अंदर जा चुकी थी। वहाँ एक आदमी खड़ा था, कुणाल ने ऊपर बालकनी की तरफ इशारा करते हुए पूछा, "वहाँ अभी एक लड़की खड़ी थी ;वह कहाँ गयी ?"

"साहब, यहाँ तो जैसी चाहो वैसी लड़की मिल जायेगी। आपकी सेवा में कोई कमी नहीं आएगी ;बस हम पर अपनी दया दृष्टि बनाये रखियेगा। ",उस आदमी ने अपने तम्बाकू से गंदे हुए, दाँत निपोरते हुए कहा। 

"नहीं, मुझे वही बालकनी वाली लड़की चाहिए। तुम उससे मिलवा सकते हो तो कहो। "कुणाल ने कहा। 

"चलिए, ऊपर चलिए। अभी कुछ ही देर में धंधे का वक़्त हो जाएगा। जल्दी -जल्दी ऊपर चलकर देख लो। ",उस आदमी ने सीढ़ियाँ चढ़ते हुए कहा। 

"चलो। ",कुणाल भी उसके पीछे हो लिया था। कुणाल सीढ़ियों से बालकनी में पहुँच गया था। छोटे -छोटे डिब्बे से घुटे हुए कमरे थे ;जिनमें न कोई खिड़की थी और न ही कोई रोशनदान। "कैसी नरक की ज़िन्दगी जीती हैं ये लड़कियाँ। जिस्मफ़रोशी के बाज़ार में इंसान की कीमतें कितनी कम हैं। ",सोचते हुए कुणाल का मन खट्टा हो गया था। 

वह आदमी कुणाल को उस कोठे की संचालिका के पास ले गया और कुणाल के बारे में बताया। कोठे की संचालिका ने कुणाल के पद के खौफ के कारण अपने कोठे की सभी लड़कियों को बुलवा लिया और कुणाल से पूछा, "इनमें से कोई है क्या ?"

उन लड़कियों में वह नहीं थी। कुणाल बड़ा निराश हो गया था। "क्या सभी लड़कियाँ आ गयी हैं ?",कुणाल ने पूछा। 

"नहीं, मैडम की लाडली मंदाकिनी नहीं आयी है। ",उनमें से एक लड़की ने दबी जुबान से कहा। 

"मन्दाकिनी को बुलाइये। ",कुणाल ने कहा। 

"अरे साहब, रहने दो। उसे क्यों बुलाना है ?यहाँ एक से बढ़िया एक माल है। ",संचालिका ने कहा।

"आप मन्दाकिनी को बुलाइये। ",कुणाल ने थोड़ा ऊँची आवाज़ में कहा। 

कुणाल के साथ आये आदमी ने संचालिका को इशारा करते हुए मन्दाकिनी को बुलवाने के लिए कहा। 

"अभी बुलवाती हूँ। रेशमा जा, जरा मंदा को बुला ला। ",संचालिका ने अनमने होते हुए कहा। 

मन्दाकिनी को देखते ही कुणाल को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था ;मन्दाकिनी वही सपनों वाली लड़की थी। बस अंतर इतना ही था कि वह सलवार कमीज में थी और उसने अपने बालों को खुला छोड़ा हुआ था। वह एकदम इस तरीके से बुलवाये जाने से थोड़ी हैरान और परेशान ज्यादा थी। 

"यह है मन्दाकिनी। अपने नाम के जैसे ही पवित्र।कीचड़ में खिले हुए कमल के जैसे। ",संचालिका ने आगे घटित होने वाली किसी भी अनहोनी को टालने के लिए कहा। 

"जी।", कुणाल अभी भी उसे आँखें फाड़े हुए देखे जा रहा था। उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि अब तक उसके सपनों में आने वाली लड़की असलियत में भी हो सकती है। 

"मैं मन्दाकिनी से कुछ देर अकेले में बात करना चाहता हूँ, अगर मन्दाकिनी को कोई समस्या नहीं हो। ",कुणाल ने कहा। 

कुछ देर सोचने के बाद, संचालिका ने मन्दाकिनी की तरफ देखा और फिर कुणाल की तरफ देखकर बोला, "ठीक है। "

मन्दाकिनी और कुणाल अब अकेले थे।मन्दाकिनी की आँखें गोल -गोल घूम रही थी ;उसकी आँखों की गति, उसके मन की हालत बयां कर रही थी। कुणाल ने बात शुरू की। 

"क्या आप सपने देखती है ?",कुणाल ने पूछा। 

"नहीं। यहाँ रहने वाली लड़कियाँ पूरी रात जागती हैं, तो सपने देखने का वक़्त ही कहाँ होता है। कोयले की खान में काम करने से कालिख तो लगती ही है।अम्मा मुझे धंधे में नहीं डालती, लेकिन बाहर की दुनिया मुझे कुछ और काम भी कहाँ करने देती है।अम्मा ने तो मुझे यह कोठा छोड़कर जाने के लिए कहा था ताकि बाहर की दुनिया मुझे अपना ले, लेकिन अम्मा को छोड़कर कैसे जाऊँ ?अम्मा और मेरी माँ बहुत पक्की सहेलियाँ थीं।माँ की मृत्यु के बाद अम्मा ने ही मुझे सम्हाला        था।",मन्दाकिनी एक ही साँस में बोल गयी थी। 

"समझ सकता हूँ। मैंने तुम्हें अक्सर अपने सपनों में देखा है। तुम्हें बहुत वर्षों से ढूँढ रहा था ;आज तुम मिली हो। ",कुणाल ने कहा। मन्दाकिनी कुणाल को आँखें फाड़कर देखे जा रही थी ;उसे उसकी बातें समझ नहीं आ रही थी। 

"सिर्फ तुमको यही बात करनी थी।",मन्दाकिनी ने पूछा। 

"आज के लिए इतना ही। ",कुणाल ने कुछ सोचा और कहा। 

कुणाल वहाँ से आ गया था। पुलिस स्टेशन आकर, उसने उस अव्यस्क बच्ची के घरवालों से संपर्क किया। उनके उस बच्ची को आकर ले जाने तक उसने उसके रहने की व्यवस्था करवाई। 

कुणाल कुछ देर के लिए अकेला रहना चाहता था ;इसलिए वह अपने चैम्बर में चला गया था। कुणाल मन्दाकिनी के बारे में सोच रहा था कि तब ही उसकी झपकी लग गयी। 

" शाक्य कुल के राजकुमार सिद्वार्थ अपना घर छोड़कर रात्रि वेला में चले गए हैं। उनकी भार्या यशोधरा का रो -रो कर बुरा हाल है। ", किसी एक स्त्री ने कहा। 

कुछ स्त्रियाँ बातें कर रही थीं। उन्होंने नीचे धोती स्टाइल में साड़ी पहन रखी थी ;ऊपर स्तनों को ढँक रखा था और दुपट्टा डाल रखा था। उन्होंने बालों को जुड़े में बाँध रखा था। स्त्रियां किसी नदी के किनारे पर बैठी हुई थीं। उनके हाथों में मिट्टी के कलश थे। 

"सुना है यशोधरा सिर्फ एक ही बात कहती है कि वह मुझे बताकर तो जाते। ",किसी ने कहा। 

"अरे तुमने सुना है क्या ?",किसी ने पूछा। 

"चैताली का नगर वधू के लिए चयन हो गया है। ",जिसने पूछा था, उसी ने बताया। 

"श्रावस्ती की नगरवधू बनेगी चैताली। कल कौशल महाजनपद के महाराज के संदेशवाहक आये थे। चैताली की नृत्यकला के लिए उसका चयन किया गया है। ",किसी और ने सम्पूर्ण सूचना देते हुए कहा। 

"चैताली जाने की तैयारियाँ हो गयी ?",चैताली की माता ने पूछा। 

"माँ, मुझे नगरवधू नहीं बनना। नगरवधू बनने के बाद मैं शशांक से विवाह नहीं कर पाऊँगी। ",चैताली ने कहा। 

"पुत्री, महाराज के राज्य में रहना है तो उनके आदेशों की पालना करनी ही पड़ेगी। तुम्हारा इंकार तुम्हारे पूरे परिवार के अनिष्ट का कारण बन सकता है। नगरवधू का पद एक अत्यंत प्रतिष्ठित पद है। ",माँ ने समझाया। 

"माँ, शशांक यात्रा से आ जाए ;तब उससे मिलकर चली जाऊँगी। ",चैताली ने इसरार करते हुए कहा। 

"नहीं पुत्री, उतना वक़्त नहीं है। कल महाराज अपने महाबलेश्वर को तुम्हें सकुशल श्रावस्ती लाने के लिए भी देंगे। उनके यहाँ पहुँचते ही तुम्हें निकलना होगा। ",माँ अपनी बात कहकर वहाँ से चली गयी थी। 

चैताली शशांक से मिले बिना श्रावस्ती आ गयी थी। वासवी, जो की पुरानी नगरवधू थी, ने चैताली का स्वागत किया। वृद्धावस्था के कारण वासवी नगरवधू के पद पर सुशोभित नहीं रह सकती थी। वासवी चैताली को नृत्य, गायन आदि कलाओं क प्रशिक्षण देने लगी। चैताली की उदासी वासवी से छुपी हुई नहीं थी। 

एक दिन शशांक उससे मिलने आया। चैताली छुपके से शशांक से मिलने गयी ;लेकिन वासवी ने उसे देख लिया। चैताली से उसकी पूरी कहानी सुनकर, वासवी ने कौशल महाजनपद छोड़कर जाने में उनकी मदद करने का वादा किया। वासवी ने चैताली और शशांक के वैशाली गणतंत्र में जाकर बस जाने का प्रबंध कर दिया। 

दुर्भाग्य से शशांक और चैताली दोनों भागते हुए पकडे गए। महाराज ने चैताली को वापस वासवी के पास भिजवा दिया। शशांक को सभी के सामने मृत्युदंड देने का निर्णय लिया गया। शशांक के सिर को कलम कर दिया गया। 

आह .. कुणाल के मुँह से एक दर्दनाक चीख निकल गयी थी और वह नींद से जाग गया था। चैताली वही सपनों वाली लड़की और आज की मन्दाकिनी थी। शशांक कोई और नहीं स्वयं कुणाल ही था। 

कुणाल अगले दिन फिर उन अँधेरी गलियों में निकल गया था। वह तेज़ी से सीढ़ियाँ चढ़ते हुए संचालिका के सामने पहुँच गया था। संचालिका ने कुणाल को ऊपर से नीचे तक देखा, मानो कह रही हो कि फिर आ गए। 

"एक बार मन्दाकिनी को बुला दीजिये। कुछ जरूरी बात करनी है। ",कुणाल ने संचालिका से निवेदन किया। 

"मंदा ओ मंदा, ज़रा आना। ",संचालिका ने मन्दाकिनी को आवाज़ लगाई। 

कुणाल ने मन्दाकिनी से कहा कि, "हमारा पिछले जन्मों का कुछ नाता है, इसीलिए तुम मुझे सपने में दिखाई देती थी। "

"आप कैसी बातें कर रहे हो ? ऐसी बकवास बातों के लिए मेरे पास वक़्त नहीं है। ",मन्दाकिनी ने कहा। 

कुणाल ने मन्दाकिनी को पूरी बात बताई ;लेकिन मन्दाकिनी को कुणाल की बातें ज़रा भी समझ नहीं आ रही थी। कुणाल कुछ देर बाद वहाँ से चला आया था। 

कुणाल वापस आ गया था। कुणाल पूरा दिन अपने सपनों के बारे में सोचता रहा। वह सोच रहा था कि मन्दाकिनी को कुछ याद क्यों नहीं आ रहा ?

कुणाल घर लौट आया था। अपना डिनर करके कुणाल अपने कमरे में सोने चला गया था। 

"महाराज, हम युद्ध जीत चुके हैं। राजकुमारी नयनतारा अभी आपके समक्ष हाज़िर होंगी। ",सेनापति ने महाराज के शिविर में प्रवेश करते हुए कहा। 

"वाह सेनापति जी ;अब तो नयनतारा को हमसे विवाह करना ही होगा। नयनतारा को राजमहल में राजमाता के पास भिजवा दीजिये। ", महाराज ने खुश होते हुए कहा। 

राजमहल में नयनतारा बहुत ही दुःखी थी। राजमाता ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो नयनतारा ने बताया कि, "मुझे अपने राज्य के राजकवि से विवाह करना है। हम दोनों एक -दूसरे का मन ही मन वरण कर लिया था। किसी दूसरे की पत्नी का हरण घोर पाप है। "

"यह पाप नहीं होगा। हम महाराज से बात करेंगे। ",राजमाता ने कहा। 

महाराज ने राजमाता की बात को स्वीकार कर लिया। राजकवि को बुलवा भेजा और राजकवि तथा नयनतारा दोनों को अपने राजमहल की दीवार से यह कहते हुए फेंक दिया कि, "अगर नयनतारा तुम मेरी नहीं हो सकती तो तुम्हें किसी और की भी नहीं होने दूँगा। "

कुणाल पसीने -पसीने हो गया था। कुणाल ही राजकवि था और मन्दाकिनी नयनतारा। वह राजमहल कुणाल के शहर में ही स्थित सुदर्शनगढ़ था। कुणाल जब भी सुदर्शनगढ़ की उस दीवार के पास से गुजरता था तो दुःखी हो जाता था। आज उसे अपने दुःखी होने का कारण समझ आ गया था। 

चिड़ियों की चहचहाट से कुणाल को पता लग गया था कि सुबह हो गयी है।  कुणाल ने आज मन्दाकिनी को अपने साथ सुदर्शनगढ़ ले जाने का निर्णय लिया।  मन्दाकिनी को काफी मान -मनौव्वत के बाद कुणाल सुदर्शनगढ़ लाने में कामयाब हो गया था।  सुदर्शनगढ़ में घूमते ही मन्दाकिनी को धीरे-धीरे सब कुछ याद आ गया था।  मन्दाकिनी ने कुणाल के प्रस्ताव को स्वीकार लिया था।  कुछ दिनों बाद मन्दाकिनी और कुणाल की शादी हो गयी।  


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