सपनों के पंख
सपनों के पंख


"लल्ली, लल्ली बेटा कहां है तू ? देख बाबा क्या लाए तेरे लिए आज।"
बाबा की पुकार पर लल्ली दौड़ी चली आती है और दरवाज़े की ड्योढ़ी पर खड़ी होकर बाबा के हाथ में थामे साइकिल को हैरानी और खुशी के साथ देखने लगी।
" बाबा, ये साइकिल क्यों लाए ? अब क्या खेत में साइकिल पर जाया करोगे ?"
उसकी बात सुनकर बाबा ने ठहाका लगाया और बोले," ये साइकिल तो मैं अपनी लल्ली के लिए लाया हूं। इस पर बैठकर वो साथ वाले गांव के बड़े स्कूल जाया करेगी और खूब पढ़ लिख कर हमारा और अपना नाम रोशन करेगी।"
लल्ली बाबा के गले लग गई और साइकिल को धीरे से सहलाने लगी। उसके सपनों को उसके बाबा ने आज पंख दे दिए थे।