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Kalpesh Patel

Drama Romance Classics

4.5  

Kalpesh Patel

Drama Romance Classics

सपने अपने प्यार के सच हुए.

सपने अपने प्यार के सच हुए.

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🌹 सपने अपने प्यार के सच हुए.


वार्ड नंबर 7 की सुबह हमेशा की तरह शांत थी। मशीनों की बीप, दवाइयों की हल्की गंध, और खिड़की से आती सुनहरी धूप — सब कुछ जैसे किसी मौन कहानी का हिस्सा हो।


प्रतीक्षा सफेद यूनिफ़ॉर्म में हमेशा की तरह अपने फाइल्स लेकर मरीजों का हालचाल ले रही थी। वह एक समर्पित नर्स थी — अनुशासित, संवेदनशील, और हर चेहरे के दर्द को समझने वाली।

उसी वार्ड में कुछ दिन पहले एक नया मरीज आया था — पियूष मेहता, उम्र लगभग साठ वर्ष, दिल की बीमारी से पीड़ित। बालों में सफेदी, आँखों में अनुभव की झील, और मुस्कान में एक अजीब-सी सच्चाई थी।
पहले दिन प्रतीक्षा ने जब उनकी ब्लड प्रेशर की जाँच की, तो पियूष ने मुस्कुराते हुए कहा था —
“बेटा, तुम्हारे हाथों में तो कोई जादू है, दर्द भी शरमा जाए।”

प्रतीक्षा ने हल्का-सा मुस्कुराते हुए कहा था —
“जादू नहीं, बस सेवा का मन है, पियूष जी।”

धीरे-धीरे दिन बीतते गए। इलाज के बीच दोनों के बीच कुछ अनकहे पल जमा होने लगे — कभी सुबह की चाय के दौरान हल्की बातचीत, तो कभी रात के समय पियूष की पुरानी कविताओं का ज़िक्र।
प्रतीक्षा को एहसास हुआ कि यह मरीज कुछ अलग है — वह सिर्फ़ बीमारी से नहीं लड़ रहा, बल्कि जीवन के हर रंग को फिर से महसूस करना चाहता है।

एक शाम पियूष ने कहा —
“प्रतीक्षा, मैं सोचता हूँ, जब कोई दिल से किसी की देखभाल करता है, तो वह दवा से ज़्यादा असर करती है।”

प्रतीक्षा ने जवाब दिया —
“और जब कोई मन से किसी के लिए प्रार्थना करता है, तो चमत्कार हो जाते हैं।”

शायद उसी पल दोनों के बीच कोई अदृश्य धागा बुन गया था — विश्वास और स्नेह का।

दिन बीतते गए। पियूष का स्वास्थ्य सुधरने लगा। discharge का दिन आया, तो प्रतीक्षा को कुछ अजीब-सा खालीपन महसूस हुआ।
पियूष ने जाते-जाते कहा —
“अगर ईश्वर ने चाहे, तो हम फिर मिलेंगे... किसी अस्पताल में नहीं, किसी बगीचे में।”

कुछ महीनों बाद अस्पताल के बाहर, एक सामाजिक कार्यक्रम में, प्रतीक्षा ने पियूष को फिर देखा — एक स्वस्थ, प्रसन्न, और नए जीवन से भरे इंसान की तरह।
उसने मुस्कुराकर कहा —
“कहा था न, हम फिर मिलेंगे?”

प्रतीक्षा की आँखों में नमी थी, लेकिन होंठों पर मुस्कान —
“हाँ, और इस बार बिना स्टेथोस्कोप के।”

उस दिन दोनों ने एक-दूसरे के दिल की आवाज़ स्वीकार की।
प्यार ने उम्र, पेशा, और परिस्थितियों की सीमाएँ पार कर ली थीं।

कुछ सालों बाद, प्रतीक्षा और पियूष ने एक छोटे-से समारोह में विवाह किया।
लोग कहते थे — “वो नर्स और वो मरीज... उनका प्यार तो जैसे दुआ बन गया।”

और सच में —
उनके सपने अपने प्यार के सच हो गए।

समापन की छाया में एक नई सुबह

अब प्रतीक्षा और पियूष किसी अस्पताल के वार्ड में नहीं, बल्कि एक छोटे से घर के बगीचे में सुबह की चाय पीते हैं — जहाँ गुलाब की कली खिलती है, और हर बीप की जगह पक्षियों की चहचहाहट है।

उनके जीवन की डायरी में वह पन्ना अब बंद नहीं, बल्कि खुला है — जिसमें सेवा, स्नेह और संयोग ने मिलकर एक नई कविता लिखी है।

और उस कविता का शीर्षक है —
"सपने अपने प्यार के सच हुए" 🌸

समाप्त 🌸



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