PRIYA KASHYAP

Abstract

4.4  

PRIYA KASHYAP

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सफर

सफर

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ट्रेन दिल्ली स्टेशन से बनारस के लिए निकल चुकी थी। मैंने अपना सामान सीट के नीचे सरकाया और दोनों पांव ऊपर करके अपने सीट पर बैठ गई। मैं अपने ऑफिस के कुछ दोस्तों के साथ अपने ऑफिस कि हीं दोस्त दिया कि शादी पर बनारस जा रही थी। 

मैं खिड़की से बाहर झांकने लगी। ट्रेन से सफर करने का अपना एक अलग ही मज़ा है। खिड़की से बाहर के सारे नज़ारे कितने अच्छे लगते हैं। हम ट्रेन के साथ चलते हैं पर मन में एक ठहराव सा होता है। मैंने अपने पर्स से अपनी एक छोटी सी डायरी और पेन निकाला, थोड़ी देर बाहर की तरफ देखा और फिर लिखना शुरू किया।

 सफ़र।

जैसे मन का कोई भाव 

जैसे बंजारा सा एक ख्वाब

जैसे भोर की ठंडक

जैसे शाम का सुकून

न रास्ते की फ़िक्र 

न कहीं पहुँच ने का जुनून

खेत के नज़ारे

कहीं गेहूं के 

कहीं सरसों के

मिल जाए कई लोग नए 

या कोई मीत पुराने बरसों के

लुत्फ़ उठाएं राहों का 

मन में हो बेफ़िक्री 

इत्मीनान रहे इन्हीं राहों पे

कहीं मिले मंजिल खड़ी

सफ़र।

मैंने डायरी बंद कर के पर्स में रख लिया। अंधेरा होने वाला था, ट्रेन में थोड़ी चहल-पहल कम हो गई थी। पर मेरे सीट के बगल वाली सीट की कतार में एक 5- 6 साल की बच्ची कभी खिड़की से बाहर झांकती कभी इधर उधर भागती तो कभी अपनी मां से ढ़ेर सारे सवाल पूछती। 

मां ट्रेन से सब कुछ पीछे भागता हुआ क्यो दिखता है? ये ट्रेन कैसे चलती है? रात में ड्राइवर को कैसे पता चलेगा कि ट्रेन कहां पहुंची?। 

उसकी मां उसे बार बार समझा रहीं थीं कि अब वो थोड़ा स्थिर से चुप कर के बैठ जाऐ पर वो कहां मानने वाली थी। 

बच्चे तो ऐसे ही तो होते हैं, बेबाक।चंचल।ये सोच के मैं मुस्कुरा दी।

"आप मुझ पर हंस रहीं हैं।" उसने भौहें सिकोड़ते हुए कहा। 

"नहीं तो" मैंने कहा " मैं ऐसा क्यों करूंगी भला|" "क्योंकि मैं बहुत सवाल पूछती हूं ना इसलिए" उसने बड़ी मासूमियत से कहा। 

मैंने उसकी ओर थोड़ा झुक हुए कहा "मैं आपसे एक सवाल पूंछू?" 

उसने हां में सर हिलाया। 

"नाम क्या है आपका ?" मैंने मुस्कुराते हुए पूछा।

"धरा" उसने कहा। "अब मैं आपसे एक सवाल पूंछू?" उसने तपाक से कहा तो मैंने हामी भर दी। 

फिर वो बोली "सब कहते हैं कि भगवान होते हैं|"

मैंने कहा, "हां होते हैं।"

अच्छा तो आपने भगवान को देखा है?"उसने पूछा।

"नहीं मैंने तो नहीं देखा है|" 

मेरे बोलते ही वो बोली"तो फिर आपको कैसे पता कि भगवान होते हैं ?" 

फिर मैंने उससे पूछा "बच्चे क्या तुमने कभी हवा को देखा है ?"

उसने भोलेपन से कहा, "हां देखा है। आपको पता नहीं चल रहा? देखो हम दोनों के बाल हवा में कैसे उड़ रहे।"  

तो मैंने कहा"अच्छा! तो फिर बताओ कि कैसे दिखते हैं ये मिस्टर हवा? काले हैं या गोरे हैं, लंबे हैं या छोटे हैं?"

वो खिलखिला कर हंस दी और कहा"वो दिखाई थोड़े न देते बस मेहसूस कर सकते हैं न।" 

तो मैंने धरा के गाल खिंचते हुए प्यार से कहा "हां बच्चे , वैसे ही भगवान दिखाई भले ही न दें पर यकीन रखो तो मेहसूस होंगे।"

वो मुस्कुराई |

"यकीन हो तो प्यार भी महसूस किया जा सकता है पर कुछ लोगों को तो सुनना ही नहीं है।" 

मैंने मूड़कर देखा," क्या यार मंजर।" मैंने मुंह बनाते हुए कहा।

"क्या हुआ मीरा!!" उसने भोले बनते हुए कहा।

"तुम भी न। कहीं पे भी। कुछ भी।" मैंने धरा की ओर इशारा करते हुए कहा।

मंजर ने धरा कि ओर देखते हुए कहा " मैंने भी तो तुम्हारी ही बात का सपोर्ट किया न"।

"अच्छा?" मैंने कह।

तो उसने कंधे उचकाते हुए कहा "हां। एज ऑलवेज" और जोर से हंस दिया।

 उसे देखकर मुझे भी हंसी आ गई।


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