PRIYA KASHYAP

Drama Others

4.3  

PRIYA KASHYAP

Drama Others

रंग

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कॉलेज से आ कर मैं सीधे नहाने चली गई। दिन भर की थकान और तनाव से थोड़ी राहत मिली। कभी कभी तो मुझे ये लगता है कि काश मेरे पास कुछ समय तक सांस रोके रखने की शक्ति होती तो मैं एक दो घंटे तक पानी के अंदर ही रहती, पूरी की पूरी, शरीर को आराम मिलता और मन को शांति। 

शाम के 6 बज चुके थे, मैं अपने कमरे में लेटी थी। मेज़ पर रखी फ़ोन की घंटी लगातार बजी जा रही थी, तभी शाम की दिया बाती करते हुए मां ने कहा " रुचि..., तुम्हारा फोन बज रहा है।" मैं फोन साइलेंट करते हुए कहा "बजने दो मां, मन नहीं कर रहा। इतनी थक गई हूं कि न नींद ही आ रही न कुछ करने को ही मन कर रहा।" "एक काम करो कुछ देर के लिए छत पर जाकर बैठो। अच्छी हवा चल रही है, तुम्हें अच्छा लगेगा। "मां ने कहा तो उनकी बात मानकर मैं छत पर चली गई।

काफी अच्छा लग रहा था वहां, हल्की हल्की सी हवा सुकून दे रही थी। इस के बावजूद, एक ख्याल था जो मन कचोट रहा था। मैं सोचने लगी। 

उस दिन भी मैं हर रोज की तरह सुबह कॉलेज के लिए तैयार हो कर स्टेशन की तरफ निकल गई। रोज की तरह ही ट्रेन अपने समय से 5 मिनट देरी से आई। रोज की तरह ही ट्रेन के अंदर लोगों की भीड़, कुछ लोग जगह मिल जाने के इत्मीनान में थे तो कुछ खड़े, जल्द से जल्द अपने मंजिल तक पहुंचने के इंतजार में। थोरी थोरी देर में आते जाते, खड़े लोगों की परेशानी बढ़ाते, चना मूंगफली वाले। सब रोज़ की तरह था सिवाय एक चीज के, जब तक कि वो लोग नहीं आएं थे।

अगले स्टेशन पर कुछ किन्नर ट्रेन में चढ़े अपने तरीके से ताली बजा कर थोड़ी जबरदस्ती से सबसे पैसे वसूलने लगे। उन सब ने थोड़ी बेढंगी सी साड़ी पहन रखी थी, चमकीले झुमके, हाथ में झूलता पर्स, किसी ने तो टैटू भी बनवा रखे थे। वैसे तो हर कोई अपने तरीके से खूबसूरत होता है पर उन लोगों में से एक बाकियों से अच्छी दिख रही थीं। अगर सलीके से उसे संवारा गया होता तो लोग तुलना नहीं कर पाते कि वो लड़की है या किन्नर। एक ने अपने सर पर कपड़ा बांध रखा था और उम्र में भी सबसे बड़ी लग रहीं थीं, शायद वो उनकी प्रमुख होंगी। हां, ये सब मैंने कोई पहली बार नहीं देखा था, पर जो पहली बार था वो ये कि उनके साथ एक बच्ची भी थी महज़ 10-11 साल की, टॉप-स्कर्ट पहने हुए उसने सर पर चुन्नी ओढ़ रखी थी, बाल काफी छोटे होने की वजह से शायद, आंखों में मोटे काजल और होंठों पर चटख लाल रंग। मैं उसे मीना से संबोधित करूंगी। मीना को देख कर मुझे थोड़ी ग्लानि हुई, ये सोच कर कि इतनी सी उम्र में क्यों इन्होंने इसे अपने साथ इस काम में लगा रखा है। इसे कम से कम किसी सरकारी स्कूल में ही पढ़ने भेज सकते थे, ज्यादा नहीं तो कम से कम इतनी शिक्षा तो मिले कि वो शिक्षित कहला सके, अपना अच्छा बुरा समझ सके। लोगों ने खुद भी अपना हक़ छोर रखा है, अपनी आदतें, आपने ख्यालात, अपनी परिस्थिति बदलना नहीं चाहते फिर इल्जाम सिर्फ सरकार पर डालते हैं।

" ऐ राजा! चल 10 रुपया निकाल।" वो किसी से पैसे वसूल करने की मनसा से उसके चेहरे को जबरदस्ती बार-बार हाथ लगा कर कह रही थी। शायद पैसे न देने हों इसलिए वो मीना को जाने को कह रहा था। चिढ़ते हुए मीना ने उस आदमी के सामने अपने स्कर्ट उठा दिया और कहा " ये लो देखो, अब निकालो पैसे।" उसकी वो हरकत, उस समय से मेरा मन कचोट रही है। उस पल में मेरा मन किया था कि मैं उसे 2 थप्पड़ रसीद कर दूं और पूछूं कि किसने सिखाया उसे यह सब, प्रदर्शनी लगा रखा है? मेरे पहले सवाल का जवाब तो मुझे वहीं मिल गया, दूसरी तरफ ही उसकी साथी किन्नर भी अपनी साड़ी घुटनों से ऊपर उठाकर लोगों को पैसे देने के लिए मजबूर कर रहीं थीं। कुछ लोग परेशान हो कर तो कुछ उनकी हरकतों पर हंसकर उन्हें पैसे दे रहे थे। 

मैं सोचने लगी कि जब उन लोगों ने मीना को ये सब सिखाया होगा तो इसके पीछे की वजह बताई होगी क्या? अगर हां, तो क्या बतलाया होगा ? क्या मीना समझ भी पाई होगी? अगर समझी, तो क्या उसके बाल मन में ये सवाल नहीं आया होगा कि ये कैसा घिनौना रूप है दुनिया का?

मेरे मन में कई सवाल उभरने लगे जैसे, क्या जानवरों में भी ये तीसरा लिंग होता होगा ? अगर नहीं तो क्यों नहीं, मैं सोचती हूं कि क्या हो अगर उन में भी ये तीसरा रंग हो तो, स्त्री- पुरुष से अलग। क्या वो भी भेद भाव करते ? जानवरों में भी एक अलग समाज होता किन्नरों का ? शायद नहीं क्यों की वो इन्सान नहीं हैं, उनमें दिमाग से ज्यादा भावनाएं होतीं हैं। फिर ऊपर वाले ने ऐसी नाइंसाफी इंसानों के साथ ही क्यों की ? क्यों समाज के तीनों रंग में समानताएं नहीं हैं? मानव सभ्यता के शुरूवात से ही तीनों रंग स्त्री- पुरुष- किन्नर विद्यमान है तो फिर आज तक सिर्फ एक तबका ही समाज से अलग क्यों है?

" लगता है कोई खो गया है कहीं " सुनकर मैं चौंक गई। अपनी ही सोच में गुम मुझे पता ही नहीं चला कि कब भैया छत पर आएं। "। " क्या भैया !!! " मैंने नखरीले स्वर में कहा और हल्की मुस्कुरा दी। " प्रॉब्लम?" उन्होंने पूछा। "उउउहुं.... " मैं चुप रही। " अभी तेरी फेवरेट केसर-पिस्ता कुल्फी खा कर आया हूं" भैया ने मेरे बगल में बैठते हुए कहा। मैंने उन्हें शिकायती नज़रों से घूरा, नखरे दिखाते हुए कहा " यार वो मेरी फेवरेट थी न ..... तुम अकेले खा गए! ..... और अब आकर बता भी रहे। कितने दुष्ट भाई हो। "। "अरे गदा धारी भीम, शान्त। ये लो, तेरे लिए भी लाया हूं। बस मां से मत कहना, छुपा के लाया हूं। इतनी रात में कुल्फी पार्टी चल रही पता चला न तो .... " भैया की बात लगभग अनसुनी करते हुए मैंने बीच में ही कुल्फी खाते हुए कहा " लव यू भैया, यू आर द बेस्ट।" "अच्छा जी ! तुरंत में रंग बदल लिये " भैया ने मज़ाक में टोंट मारा तो मैंने दांत दिखा दिये " हीहीही ......।"


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