Sadhana Mishra samishra

Drama

4.5  

Sadhana Mishra samishra

Drama

सोपान

सोपान

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सुन्न से रह गये थे दुबे जी...जब कल बड़े बेटे किशन ने शाम को उनसे कहा कि "पापा...यह देखिए, यह मेरा अप्वाइंटमेंट लेटर...मुझे यहाँ से दोगुनी सेलरी की नौकरी 

दिल्ली में लग गई है।"

" दोस्त को कह दिया था, वह एक घर किराये पर ठीक कर चुका है, कल ही निकलना होगा।"

"ट्रेन टिकट कंनफर्म हो चुके हैं और हाँ पापा, रजनी भी मेरे साथ जा रही है, रोज-रोज होटल का खाना मुझे पचता नहीं है।"

समझ ही नहीं पाए थे दुबेजी कि बेटा आज्ञा मांग रहा था या अपना निर्णय सुना रहा था ? कहा तो था कि" बेटा यहाँ की नौकरी में क्या तकलीफ है, अपना घर, अपना शहर है तो खर्च भी तो कम है।" साथ रहने का सुकून भी तो है। कैसे झुंझलाकर कहा था किशन ने, तो ?

"मुझे बेड़िओं में बांध रखना चाहते है आप।" फिर कुछ न कहा गया...

रात भर दुबे-दुबाइन जी गुमिया कर आंसू बहाते रहे..बेटा-बहू सामान बाँधते रहे।

और अभी ही स्टेशन से गाड़ी पर बिठाकर लौटे तो देखा कि पुराने जमाने से आज तक का... उनका दोस्त मिलने के लिए आया हुआ उनके इंतजार में बैठा है। और दुबाइन जी अपने साड़ी के अचरा से आंसू पोंछ रही है।

कुछ वे कह पाते, पहले दोस्त ने ही कहा..." मुझे मालूम है यार...बहुत बुरा लग रहा है न किशन का ऐसे ही छोड़कर जाना।"

 "नहीं यार...आज मुझे पहली बार यह महसूस हुआ कि जब यही बात मैंने आज से तीस साल पहले अपने बाबूजी से गांव में बोली थी तो उन्हें कैसा लगा रहा होगा।"

"समय का चक्र ही घूमा है...भावना तो वही है यार... कुछ नहीं बदला, तब मेरे पिताजी इस सोपान पर खड़े थे, आज मै खड़ा हूँ.... कल कोई और खड़ा होगा। यही तो जीवन चक्र की नियति है।"

कभी कुछ नहीं बदलता सिर्फ महसूस करने वाले दिल बदले है बस.... ! शेष रह गया एक गहन निःश्वास....!


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