सोचो

सोचो

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एडवोकेट रजत शर्मा वकालत की दुनिया का एक जाना-माना नाम जिनका अपना एक खास रुतबा है, बाहर भी और घर में भी। तीन बहनों के इकलौते बड़े भाई, बहनों को अपने भाई पर बड़ा नाज था, माता-पिता बड़ी बेटी की शादी के एक महीने बाद कार एक्सीडेंट में मौत की आगोश में चले गए ! बेटी की ससुराल उसे लेने जा रहे थे सामने से आते हुए ट्रक से कार टकरा गई ओन द स्पोट ही चले गए। बहन रीना को लेने जाने वाला तो रजत था लेकिन LLB के फाइनल इयर के एग्जाम थे इसलिए पति-पत्नी दोनों चले गए और गए तो फिर लौटे ही नहीं। रीना अपने पति व सास-ससुर के साथ आई थी,रजत जिस वजह से नहीं नहीं जा रहा था वो वजह भी बीच ही में रह गई, एग्जाम नहीं दे सका, अगले साल दिया और प्रथम रहा। अपने ही सर खन्ना के अंडर में प्रेक्टिस करने लगा, प्रेक्टिस अच्छी चल पड़ी। दोनों बहनों हेमा और आशा की शादियां बड़े धूमधाम से की। अच्छी तरह सेटल होने के बाद खुद ने भी एडवोकेट राधा से शादी कर ली दोनों आपस में प्यार करते थे सो परिणाम रहा शादी। दोनों की शादीशुदा जिंदगी की गाड़ी पटरी पर बड़े अच्छे से चल रही थी मगर किस्मत और कुदरत के आगे खुशहाली कब बदहाली में बदल जाती है पता ही नहीं चलता। उनके दो बच्चे जुड़वां थे रमन और अमन। जब ये आठ साल के थे तब सिर्फ तीन दिन के बुखार में राधा चल बसी। इतने सारे टेस्ट और इलाज के बावजूद राधा ने इस दुनिया को अलविदा कह दी ! फिर रजत ने बहनों व रिश्तेदारों के समझाने के बाद भी दूसरी शादी नहीं की। बच्चों की देखभाल और घर के कामों के लिए दिन भर की एक बाई रख ली इस तरह फिर से गाड़ी पटरी पर चलने लगी।

बच्चे बड़े होने लगे, पढ़ने में दोनों अच्छे थे। रमन ने आर्मी ज्वाइन की और अमन ने अपने पापा का पेशा अपनाया, वो अपने पापा की वकालत एवं उनके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित था, प्रभावित तो रमन भी था पर उसे आर्मी की वर्दी बहुत ही आकर्षक लगती थी उसी आकर्षण ने बना दिया आर्मी आफिसर। शादियां भी दोनों ने अपनी-अपनी मर्जी से की, रमन ने तो आर्मी की डाक्टर शीना से और अमन ने अपने मित्र की विधवा दीपा से शादी की, वह दीपा से प्यार करता था वो भी उससे प्यार करती थी लेकिन शादी उसके मित्र रीतेश से उसके पिता ने कर दी। दीपा का पिता और रीतेश का पिता दोनों बिजनेस पार्टनर थे 30 70 के। दीपा के पिता का हिस्सा 30% का था लेकिन अभी तक अपना पूरा हिस्सा दे नहीं पाया था सो रीतेश के पिता ने अपने बेटे के लिए दीपा का रिश्ता मांगा तो उन्होंने हां कर दी उन्हें दीपा के प्यार का पता भी नहीं था, उसने मां से दबी जुबान में कहा भी मगर मां ने दुहाई दी अपने सुहाग की,अगर यह शादी नहीं हुई तो तू अपनी मां को विधवा देखने की हिम्मत रखती है तो ठीक है। पहले अपने पापा से बात नहीं कर पाई थी , अब तो बिल्कुल उम्मीद ही नहीं थी इसलिए बेचारी दीपा चुप रही। लेकिन शादी के एक साल बाद ही रीतेश का मर्डर हो गया बिजनेस के आपसी झगड़ों में। बाद में उसने किसी की परवाह न करते हुए अमन से शादी कर ली उसने प्रस्ताव रखा तो हां कर दी। शादीशुदा जिंदगी दोनों भाइयों की अच्छी चल रही थी। रमन आर्मी में होने के कारण जहां-जहां पोस्टिंग होती वहीं रहता अपनी पत्नी के साथ, छुट्टियों में पति-पत्नी आते रहते और अमन वहीं पिता के साथ ही रहता था। दीपा दिल की अच्छी थी लेकिन स्वभाव की थोड़ी तेज भी थी। रजत खुश था कि परिवार फिर से बस गया, हालांकि रजत की दिलीख्वाहिश थी कि रमन भी यहीं साथ में रहता तो कितना अच्छा होता लेकिन यह भी सही था - रमन का यहां रहना संभव नहीं है फिर भी यह उस पिता की ख्वाहिश थी जिसने अपने बच्चों को मां बन कर पाला, खैर ख्वाहिश तो ख्वाहिश हीं होती है। अमन के एक बेटी हुई और रमन को बेटा। बाप-बेटे की वकालत काफी अच्छी चल रही थी, अमन अक्सर अपने पापा से कहता - पापा, अब आप आराम कीजिए, इधर-उधर घूमिये, काम तो आपने बहुत किया। हां - ना करते चार साल और गुज़ार लिए आखिरकार उन्होंने सोचा, अमन ठीक ही तो कह रहा है अब अगर अपने मन का नहीं किया तो कब करूगा, थोड़े दिन रमन के पास भी जाना चाहिए। अमन का दूसरा बच्चा भी एक साल का हो गया था।

इस बार बेटा हुआ था, रमन को एक ही बेटा था। रजत को दीपा की कभी कोई बात अखर जाती थी लेकिन कभी कुछ नहीं कहते, गुस्सा भी आता तो चुप ही रहते। इस हिसाब से शीना उनको सुलझी हुई समझदार व्यक्तित्व एवं मृदु स्वभाव की लगी।

अपने प्रोग्राम के मुताबिक रमन के पास दिल्ली आये चार - छः महीने रहने के इरादे से। वैसे सब ठीक था बस नई जगह पर दोस्त वगैरह न होने के कारण टाइम पास जरा मुश्किल से होता था। अपने मिलनसार स्वभाव के चलते अपने दोस्त भी बना लिये एक महीने के अंदर। रजत यहां भी अपना घर समझता था बेटे का घर जो था तो उसका भी तो हुआ। जैसे उसका वहां का घर सबका था। रमन का भी ऐसा ही ख्याल था मगर शीना का खयाल ऐसा नहीं था, दो-तीन बार बड़ी मधुरता से कहा लेकिन वो मधुरता भी चुभ जाती थी। एक दिन तो हद ही हो गई, रजत ने शीना से कहा - बेटा, पुलाव देसी घी से बनाना और चावल भी घी में भूनना, पुलाव बहुत स्वाद बनेगा, मगर शीना ने करारा जवाब दिया कि पूछो मत, इस तरह का जवाब सुनकर किसी को भी अच्छा नहीं लगेगा, कहती है, वहां आपके घर में आप लोग ऐसा ओइली पुलाव बनाते होंगे मेरे घर में ऐसा नहीं बनता, हम लोग पसन्द नहीं करते ! सुनकर रजत को बड़ा अटपटा लगा, ओह, अपनी सगी बहु, बेटे की पत्नी होकर ऐसी बातें करके एक तरह से परायेपन का अहसास ही तो दिलाती थी। कहने की तो बहुत दूर की बात है रजत ने तो कभी सोचा भी नहीं कि वो अपने घर में नहीं आया है बल्कि मेहमान बनकर आया है वो खुद को मेहमान नहीं समझता था लेकिन बहु तो यहां अपना एकल राज्य समझती थी जैसे इस घर पर रजत का कोई हक नहीं, मेहमान है मेहमान की तरह रहे ना कि मालिकाना हक़ जमाए, कुल मिलाकर तीन बार ही आया, हर बार परायेपन का अहसास, ऐसे में कतई मन नहीं लगता था ऊपर से बात-बात में इस तरह के शब्दों का प्रयोग करना कि खुद-ब-खुद इन्सान परायेपन का अहसास करे, ये लोग जब आते अमन, यहां तक कि दीपा भी इस तरह के शब्दों का प्रयोग कभी नहीं करती बल्कि वो उन्हें इसी घर का ही समझती थी लेकिन शीना ने किसी बात पर एक दिन तो ऐसे कह दिया- पापाजी क्या आप अपने घर में वहां ऐसा करते हैं ?

रजत को आम बहुत पसंद है इतने-इतने पसंद है जितने भी हो, पेटभर के खा सकते हैं एक दिन शीना ने हद ही कर दी आमों की टोकरी आई थी चार-पांच दिन रजत ने छककर खाये, शीना ने फट से कह दिया- पापाजी, आप अपने घर में भी ऐसे ही इतने सारे आम खाते हैं ? सुनकर रजत को बड़ा इंसल्टिंग लगा, उसने तो कभी ऐसा सोचा भी नहीं था कि पराये घर के आम खा रहा है, अपने घर में और अपने ही पैसे से खा रहा है, बेटे के पैसे अपने ही तो है जैसे उसके पैसे बच्चों के हैं ! शीना पढ़ी-लिखी और वो भी डाक्टर,,, बातें इतनी ओछी,,,, बातें क्या सोच भी ओछी है ! एक बार तो रमन ने भी शीशा की शिकायत पर कह दिया - पापाजी, आप अपने काम से काम रखिए,,,बेकार ही अपने शीशा को हर्ट किया क्या जरूरत थी ज्ञान देने की, ऐसा करो, वैसा मत करो, इस तरह की बातें अखरती थी रमन कहाँ, ओह, वो तो बहुत ही अखरा था ताज्जुब है वो बेटा भी इस तरह की बेगानों जैसी बातें करता है ! रमन का कहा रजत को जख्मी कर गया ! बहु की बात को इतना मन पर नहीं लेता था जितना बेटे का कहा कुछ ज्यादा ही चोट कर गया उस दिन से निर्णय कर लिया कि अब दुबारा नहीं आना है, मिलने की इच्छा होगी तो वे खुद ही आयेंगे। उसके बाद रजत दुबारा कभी नहीं गये हालांकि रमन ने कहा भी कई बार आने के लिए, एक बार तो यह भी कहा - पापा आपके पास अमन तो रहता ही है फिर भी आप वहीं ज्यादा रहते हैं मेरे पास तो रहते ही नहीं हैं।

बेटा जब तू यहां मेरे पास आकर रहेगा तो तेरे पास भी रहूंगा।

वो तो मैं वहां आऊंगा तब ना ! लेकिन यहां क्यों नहीं आते ?

इस बात पर तुम दोनों सोचो ! अपने पापा के इस छोटे से वाक्य को सुनकर उसका दिल धक से रह गया ! कुछ बोल ही नहीं पाया !


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