सनशाईन - एक लड़की भीगी सी
सनशाईन - एक लड़की भीगी सी
रिया और साहिल की शादी के दस साल हो गये हैं, पर अभी तक दोनो संतान सुख से वंचित ही हैं। दोनों ने कई डॉक्टरों को भी दिखाया पर कहीं से कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी।
अस्पताल के कॉरिडोर में बैठा साहिल अतीत में डूब गया। कुछ देर पहले हुए एक्सीडेंट ने उसे अतीत में धकेल दिया।
साहिल महसूस करने लगा था कि अब रिया कुछ कुछ चिड़चिड़ी हो गई थी, हर बात पर गुस्सा, बेबजह का खीज़ना और रोज लड़ना - झगड़ना। साहिल बहुत कोशिश करता रिया को खुश रखने की पर ना जाने क्यूँ अब वो खुश होना ही नहीं चाहती थी। रिया को अब साहिल का उसके लिए कुछ करना भी पसंद नहीं आता था, उलटे वो झगड़ने लगती। किसी भी रिश्तेदार या पड़ोसी की खुशियों में शामिल होने से कतराने लगी थी। हर बात, हर व्यक्ति में बुराई निकालने लगी थी।
ऐसा नहीं था कि रिया हमेशा से ऐसी थी। साहिल को आज भी याद है जब उनकी नई नई शादी हुई थी। रिया की जिंदादिली से उसके घर में खिलखिलाहट गूँजने लगी थी। जब भी किसी रिश्तेदार या दोस्त के घर शादी या जन्मदिन की पार्टी होती, रिया अपनी खूबियों से उनमें जान भर देती थी। वो कहते हैं ना खुशियाँ बाँटने से बढ़तीं हैं बिल्कुल वैसे ही रिया सभी को खुशियाँ बाँटती थी। शादी के तीन चार साल तक तो सब सही था पर फिर घरवालों ने बच्चे के लिए ज़िद करना शुरू कर दी। रिया और साहिल भी अब बच्चा चाहते थे पर रिया कंसीव नहीं कर पा रही थी। वक्त के साथ साहिल के माता पिता का दबाव भी बढ़ रहा था, उन्हें जल्द से जल्द अपने पोते पोतियों को गोद में खिलाना था।
दो साल और बीते अब तो सब रिश्तेदार टोकने लगे थे जैसे वो बच्चा रिया और साहिल से ज्यादा जरूरी उन रिश्तेदारों के लिए था। कभी कभी कुछ रिश्तेदारों की आवाज में फिक्र कम एक ताना और व्यंग्य ज्यादा दिखता था। साहिल को पता ही नहीं चला जाने अनजाने रिया डिप्रेशन का शिकार हो गई थी। उसने हँसना छोड़ दिया था, सजना सँवरना छोड़ दिया था, वो रिया जो दूसरों को खुशियाँ बाँटती थी उसे किसी की नज़र लग गई थी। साहिल रिया को लेकर कई डॉक्टरों से भी मिला पर कहीं से उनकी खुशियों की चाबी नहीं मिली। यूँ कहने को तो दोनों पढ़े लिखे थे पर जब विज्ञान हाथ खड़े कर देता है तब इंसान उम्मीद का सिरा अंधविश्वासों में तलाशने लगता है। कोई कहीं भी भगत या मंदिरों के बारे में बताता तो साहिल की उदास आँखें उम्मीद से चमकने लगतीं फिर वो अपने विश्वास पर रिया को भरोसा दिलाने की कोशिश करता और पहुँच जाता उस मंदिर में मन्नत के धागे बाँधने, भगतों के पास झाड़-फूँक करवाने। धीरे धीरे उनकी शादी को नौ साल हो गये पर बच्चे की खुशी अभी नसीब नहीं हुई।
इन बीते सालों में साहिल के माता पिता का रवैया भी रिया के प्रति कड़वा होता जा रहा था। वो हर मुसीबत का कारण रिया को ठहराने लगे। एक दिन जब दोनों सास बहु पड़ोस की एक औरत की गोद भराई में गईं तो रिया ने महसूस किया कि लोगों को उसका आना अच्छा नहीं लगा, औरतें दबी जुबान में रिया को अपशगुनी , बाँझ और ना जाने किन किन नामों से संबोधित कर रहीं थीं। बेचारी रिया किसी तरह अपने आँसू रोककर आरती का थाल हाथ में पकड़ने के लिए झुकी , तभी एक औरत ने उसके हाथ को झटककर थाल उठा लिया और बोली -" तुम्हें नहीं पता बाँझ औरतों के हाथ में आरती की थाल नहीं दी जाती वरना होने वाले बच्चे के साथ गलत हो जाता है। "
रिया इतना अपमान सह नहीं पा रही थी, वो उसी वक्त अपने घर भाग आई। दरवाजा बंद करके रोती रही , रोती रही ।
शाम को साहिल घर आया तो उसकी माँ ने आज का पूरा किस्सा नमक मिर्च लगाकर बताया, कि उन्हे रिया की वजह से कितना बेईज्जत होना पड़ा। साहिल के माता पिता ने अपना फरमान सुना दिया कि एक साल के भीतर अगर रिया बच्चा पैदा ना कर पाई तो साहिल को दूसरी शादी करनी होगी। अगर साहिल ने शादी से इंकार किया वे दोनों अपनी जान दे देंगे। साहिल खूब समझाने की कोशिश की , पर माता पिता अदालत में रिया के हक दी गई साहिल की दलील अनसुनी साबित हुई । साहिल कमरे में गया , वो रिया से नजरें नहीं मिला पा रहा था, उसे लग रहा था रिया उसे गलत समझेगी। रिया ने बाहर हो रहे ड्रामे को सुन लिया था, वो भी साहिल को दूसरी शादी करने के लिए मनाने लगी।
साहिल बोला - "रिया, मैं तुमसे प्यार करता हूँ, मैं किसी और से शादी कैसे कर सकता हूँ। मुझे नहीं चाहिये बच्चा, मुझे मेरी पत्नी चाहिये ,तुम चाहिये। कितने ही लोग होते हैं जिनकी औलाद नहीं होती क्या वो जीना छोड़ देते हैं? नहीं ना। तो हम क्यों छोड़ें। माँ पापा का गुस्सा एक दो दिन में शांत हो जाएगा, तुम फिक्र मत करो।"
वो ये सब कह कर रिया को समझाना चाहता था या खुद को बहलाना, पता नहीं। पर उस रात दोनों पति पत्नी एक दूसरे की तरफ पीठ किये रोते रहे, अपने भाग्य को कोसते रहे, खुद से - भगवान से सवाल करते रहे, जागती आँखों में कब सवेरा हो गया पता ही ना चला।
साहिल ऑफिस जाने के लिये तैयार हुआ , रिया अभी भी बिस्तर पर लेटी थी। साहिल नाश्ते की मेज पर पहुँचा तभी माँ पापा को सामने खड़े देखा, उनके हाथ में बैग थे।
साहिल ने पूछा -" आप दोनों कहीं जा रहे हैं?"
पापा गंभीर स्वर में बोले - "हम दोनों गाँव जा रहे हैं। अब हम यहाँ तभी लौटेंगे जब तुम हमें हमारे पोते या पोतियों का मुँह दिखाओगे। एक साल का समय है तुम्हारे पास खुद को दूसरी शादी के लिए तैयार कर लो या तो हमारा मरा मुंह देखने के लिए। इससे पहले किसी तरह हमसे मिलने की या बात करने की कोशिश मत करना।"
साहिल अपने माँ-पापा को समझाता रहा, उनके आगे हाथ जोड़ता रहा पर वो टस से मस ना हुये और घर छोड़ कर चले गये।
कुछ देर बाहर ही टेंशन में बैठा माँ-पापा का ऑटो दूर जाते देखता रहा। साहिल रिया के पास आता है तो देखता है रिया अपनी कलाई काट चुकी थी। वो जल्दी से उसे लेकर अस्पताल जाता है ,जहाँ डॉक्टर रिया के कट पर टाँके लगाकर पट्टी कर देते हैं। रिया की जान तो बच गई पर वो जीना भूल गई थी। हर वक्त चिड़चिड़ी सी रहती, लड़ने लगी थी हर बात पर साहिल को दूसरी शादी के लिये मनाने लगी थी। वो साहिल से कतराने लगी थी, अब रिश्तेदारों, दोस्तों के यहाँ भी नहीं जाती। लोगों से ,भीड़ से डरने लगी थी। रिया ने लोगों द्वारा संतान को लेकर पूछे जाने वाले सवालों से और खामोशी से सवाल करती नजरों से बचने के लिए सबसे मिलना छोड़ दिया था। हर बीतते दिन के साथ वो कमजोर होती जा रही थी। उसने अपने चारो ओर एक दीवार खड़ी कर ली जिसे पार करना किसी के बस में नहीं था।
साहिल भी अब टूटने लगा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। वो रिया के बिना अपनी जिंदगी सोच भी नहीं सकता था। वो कैसे समझाये अपने माता पिता को , रिया को कि शादी दूसरे सभी रिश्तों से अलग रिश्ता है। शादी का मतलब किसी इंसान के साथ एक कमरे में रहना नहीं होता, जिसके साथ भावनाएं ना हों वो उसको अपनी पत्नी कैसे बना ले। फेरे ले भी लिये तो वो उस नयी पत्नी के पास बिना भावनाओं के कैसे जा सकता है? पर साहिल कहे तो कहे किससे? उसे कोई समझना ही नहीं चाहता, सब उसे मजबूर करके अपनी जिद्द पूरी करवाना चाहते हैं।
ऐसे ही एक दिन साहिल और रिया कार से कहीं जा रहे थे, रास्ते में तेज बारिश के कारण पेड़ टूट कर गिर गए थे। जगह जगह पानी का भराव और टूटे पेड़ों के कारण लोगों का निकल पाना मुश्किल हो रहा था। हाईवे पर साहिल की कार थोड़ी आगे बढ़ी ही थी कि देखता है पुलिस ने रास्ता रोक रखा है। पूछने पर पता चला -
"एक ट्रक ने एक महिला को टक्कर मार दी है, महिला की मौके पर मौत हो गई है लेकिन उसकी गोद में एक बच्ची थी जो उछलकर पानी से भरे गढ्ढे में गिर गई। रास्ते से गुजर रहे लोगों ने उस भीगी बच्ची को निकाल लिया था, पर पानी उसके फेफड़ों मे जम गया है । एंबूलेंस माँ और बेटी को जिला अस्पताल लेकर गई हैं।"
पता नहीं क्यों साहिल और रिया उस बच्ची को देखने जिला अस्पताल पहुँच गये। डॉक्टर से परमीशन लेकर वो उस वार्ड में दाखिल हुए जहाँ वो बच्ची एडमिट थी। रूम पहुँचते ही उसके कदम रूक गये, धड़कने तेज हो गईं, किसी तरह खुद को संभालकर बच्ची के पास पहुँचा, जैसे ही रिया ने झुककर अपनी उंगली उस 15-20 दिन की बच्ची के हाथ पर रखी बच्ची ने कसकर रिया की उंगली पकड़कर अपनी छोटी छोटी मुट्ठियाँ बंद कर लीं। बच्चे के नाजुक गर्म स्पर्श से रिया दिल पर जमी उदासी की बर्फ पिघलकर आँखों से बहने लगी।
साहिल भी रिया को देखकर भावुक हो गया। दोनों तब तक अस्पताल में ही रहे जब तक वो बच्ची पूरी तरह से ठीक नहीं हो गई। इस बीच पुलिस ने बताया की वो औरत पास के ही मंदिर में कई महीनों से अकेली रह रही थी। वो औरत भी शायद अनाथ थी या शायद घर से निकाली हुई परिस्थिति की मारी यहाँ रहने आई थी। पुलिस बच्ची को अनाथाश्रम वालों को सौंपने की तैयारी में थी। लेकिन रिया और साहिल को उस बच्ची से लगाव हो गया था वो उसे गोद लेना चाहते थे। साहिल ने उस बारिश में भीगी बच्ची को गोद लेने के लिए जरूरी कागज़ी कार्यवाही पूरी कर ली।
वो बारिश में भीगी बच्ची साहिल और रिया की जिन्दगी का सूरज बनकर रिश्तों में गर्माहट लेकर आई थी। साहिल ने अपने माता पिता को फोन करके कहा -पापा, दादा दादी बनने की बधाई हो, बेटी हुई है।
साहिल के माता पिता भी पोती होने की खुशी में दौड़े चले आये थे। उन्होंने रिया और साहिल को ढ़ेर सारे आशीर्वाद दिये। वो बच्ची पूरे परिवार की आँखों का तारा बन गई थी। उसके दादा दादी ने जुलाई में जन्म लेने के कारण उसका नाम रखा था - बर्खा।
रिया और साहिल उसे सनशाईन नाम से पुकारते थे। क्योंकि पानी में डूबी और मौत को हराकर लौटी वो भीगी सी बच्ची पूरे परिवार की सीलन भरी जिंदगी में धूप और रोशनी की किरण खुशियों के रूप में लेकर आई थी। भगवान जाने रिया और साहिल ने बर्खा को अच्छी जिन्दगी दी या बर्खा ने रिया और साहिल को दूसरा जन्म दिया। पर अब सब खुश थे।
