डाॅ सरला सिंह "स्निग्धा"

Inspirational

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डाॅ सरला सिंह "स्निग्धा"

Inspirational

संजना

संजना

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"दीदी कोई काम हो तो बताना ।"

 एक दुबली ,पतली साधारण सी महिला सामने खड़ी थी ।उसके चेहरे पर मुस्कान थी,

उदासी का कोई नामोनिशान तक न था ।

"अरे कहाँ थी संजना कब से मैं तुम्हें ढूँढ़ रही थी ।"

" क्या करूँ दीदी कम्पनी में जब छुट्टी होती है तभी मैं आ पाती हूँ । इधर आदमी का भी कुछ तबियत ठीक नहीं है ,सो छुट्टी वालेदिन भी आना नहीहो पाता है ।अब वो थोड़ा ठीक है तो मैं चली । कुछ काम कर लेंगे तो कुछ पैसा ही मिल जायेगा ।"वो बोलती रही और मैं उसका चेहरा ही देख रही थी ।

 एक छुट्टी कम्पनी से मिलने पर वह उस समय भी कुछ काम करके पैसा चाहती है ताकि अपने घर का खर्च उठा सके ।उसकापति बूढ़ा मंदबुद्धि व बीमार है ।वह कुछ भी नहीं कर सकता है । अपने आप नहा तक नहीं सकता ।

 एक दिन बातों ही बातों में संजना ही बताने लगी..

" दीदी मै उसे सुबह सुबह नहलाकर कपड़े बदल देती हूँ ।छुट्टी वाले दिन ठीक से नहलाती हूँ सिर विर धोकर ।"फिर घर का काम करके उसे खाना वाना खिलाकर आ जाती हूँ। दोपैसा मिल ही जाता है ।

संजना कितनी उम्र होगी तुम्हारे पति की ?

"अस्सी पच्चासी साल का है ।"बहुत उदास होकर वह बताने लगी दीदी हम लोग बहुत गरीब थे । माँ व पिताजी ने इस बूढ़े के साथ मेरा शादी कर दिया । मैं भी निभा ले गयी । दूसरा होता तो भाग जाता ।

 हाँ, सभी तो नहीं निभा सकती मैने उसका समर्थन किया ।

सगे माँ व पिता ने तुम्हारी शादी की थी ?

हाँ दीदी,सगा था ,सगा । सगा वाला ने ऐसा किया ।

मुझे लग रहा था शायद सौतेली माँ या सौतेला बाप होगा । पर यहाँ तो सगे माँ- बाप ने ही बूढ़े आदमी के साथ अपनी पन्द्रह साल की बेटी ब्याह दी थी ।

"घर में और कौन कौन हैं संजना ?" मैने उससे उसके बच्चों के बारे में जानना चाहा ।

दीदी दो बच्चे यहाँ रहते हैं और दो बच्चे गाँव में पढ़ाई करते हैं । गाँव में एक टीचर है उसी के घर में दो बच्चे एक लड़की और एक लड़का रहते हैं । मैं उनकी पढ़ाई के लिए दो हजार रू महीने भेज देती हूँ ।यहाँ एक बेटा छोटा मोटा काम करता है और बड़ी बेटी का विवाहकर चुकी है"। 

"और बेटा ?"

"बेटा का भी जल्दी ही शादी कर दिया । क्या करूँ अच्छा रिश्ता मिल गया और मैने उसका शादी कर दिया ।"

" बहू कैसी है?" मैने हँसते हुए कहा ।

"बहू भी बहुत अच्छी है दीदी । बेटा हुआ है उसके बेटा ,बहुत सुन्दर है ।सालभर का होने जा रहा है ।"

   बूढ़े, बेकार बेरोजगार पति को संभालना,बच्चे पालना ,कम्पनी में भी काम करना और अवकाश के दिन घरों में भी काम करना गजब की हिम्मत है । कभी भी उसऔरत को मैने रोते हुए या शिकायत करते हुए नहीं देखा।आज छोटी छोटी बात पर डिवोर्स तक पहुँचने वाली महिलाओं के बीच ही संजना भी है ।वह सारे दुखों को न जाने कहाँ फेंककर बस मुस्कुरा देती है,मानों विधाता से कह रही हो आओ तुम मेरी परीक्षा लो और मैं तुम्हारी। देखें कौन जीतता है।संजना अपने पति के बारे में बताते बताते कभी तो रो देती है ।

   " दीदी मैं अपने बारे में क्या कहूँ ,किससे कहूँ ?लोग सुनते कम हँसी ज्यादा उड़ाते हैं ।"

 "ये भी सही है संजना ",

 मैने उसका समर्थन किया । वह फिर अपनी बात में वजन डालते हुए कहने लगी -- "लोग सुनेगा तो खाने को तो देगा नहीं ,हँसी और उड़ायेगा तो क्या फायदा? अपनी परेशानी तो हमें खुद ही झेलनी पड़ती है दीदी ।"

मुझे संजना अपने से भी बुद्धिमान दिखाई देने लगी थी । हम लोग जरा जरा सी बात पर हारने लगते हैं।अपना संयम खो देते हैं । लेकिन संजना का धैर्य और सहनशीलता ,नम्रता व उदारतासभी कुछ सराहनीय था ।

  


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