आखिरी बार
आखिरी बार
उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में किदवई नगर मेरे पसंदीदा जगहों में एक है। यहीं के भारती विद्यापीठ स्कूल से मेरी सातवीं तक की पढ़ाई भी पूरी हुई है। यहीं पर मनीष कुमार जैन का बहुत बड़ा मकान था। कानपुर के सी ओ डी में किसी बहुत अच्छे पद पर कार्यरत थे। अपनी पत्नी तथा माता-पिता के साथ काफी खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे। धीरे-धीरे समय आगे बढ़ता रहा और उनके भी आँगन में दो पुत्र तथा एक पुत्री का आगमन हुआ। दोनों ही पुत्र तथा पुत्री की शिक्षा दीक्षा में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी।
बच्चों के बड़े होने पर दोनों बेटों तथा बेटी की शादी बहुत धूमधाम से सम्पन्न की। बड़ा बेटा इंजीनियर था तो उसकी तो उन्हें कोई चिन्ता नहीं थी किन्तु छोटे बेटे ने ग्रेजुएशन करने के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी। छोटी मोटी नौकरी वह करना ही
नहीं चाहता था। सम्पन्न परिवार के इज्जत का प्रश्न उनके सामने आ जाया करता था। बड़े भाई के बढ़ते हुए रुतबे से भी खास तौर पर दुखी ही रहते।
एक समृद्ध परिवार के होते हुए भी दोनों ही भाइयों में कभी भी निभ नहीं सकी । छोटे भाई का परिवार बड़े भाई से हमेशा ही धन खींचना चाहता था। वह इसके लिए किसी भी तरह के हथकंडे लगाने को सदैव ही तत्पर रहता। पिता भी
हमेशा ही छोटे का ही पक्ष लिया करते थे। "पापा जी मैं अब कोई बिजनेस करना चाहता हूँ, बड़े भइया अगर मदद कर दें तो।" "हां ,हां क्यों नहीं । कुछ वह करेगा और कुछ मैं करूँगा। तुम कुछ करो तो सही।"
"पापा जी मैं तो बहुत कुछ करना चाहता हूँ मगर यह पैसों की कमी ही मेरा रास्ता रोक देती है।" विजय ने आँखें नीचे किये हुए ही जवाब दिया रात में खाना खाने के बाद मनीष कुमार जैन ने अपने बड़े बेटे सुगम को अपने पास बुलवाया। छोटी बहन की शादी के बाद से ही दोनों भाई अलग-अलग रह रहे थे। ऊपर का हिस्सा बड़े को तथा नीचे का हिस्सा छोटे को मिला था। मां व पिता छोटे बेटे के ही साथ रहते थे। जी पापा जी, आपने बुलाया है? हां ,कभी-कभार मुझसे मिलने भी आ जाया
करो बेटा।
"क्या कह रहे हैं पापा जी मैं तो हर दूसरे तीसरे दिन आ ही जाता हूँ और हालचाल तो रोज हीपता करता हूँ।" सुगम ने छोटे भाई विजय की ओर देखते हुए कहा। सो तो है बेटा। हाँ तुमसे कुछ कहना था। कहिए पापा जी।
"अरे यह विजय कोई बिजनेस करना चाहता है आठ दस लाख लगेंगे। पांच लाख तुम दे दो बाकी मैं कर दूँगा ।"
अभी तो पिछली बार ही चार लाख दिये थे जिसे इन्होंने डुबो दिया। आपने भी तो कुछ दिया
ही होगा ? यह तो बिजनेस है, नफा नुकसान तो लगा ही रहता है बेटा। देखो इसबार इसका काम कराना
है। जैसे भी करो। पिता की बात सुनकर सुगम जैन मन मसोस रह गए। पिता हमेशा ही छोटे की ही तरफदारी
किया करते हैं। एक वह है की इंजीनियर होते हुए भी कर्ज ही भरता रहता है। पिता को रिटायर्मेंट के
बाद जो भी मिला वह सब उन्होने छोटे को ही समर्पित कर दिया। अब करीब साठ हजार की
पेंशन भी छोटे को ही देते हैं।
कुछ दो साल पहले तक माँ थीं तब वे पापा जी को थोड़ा-बहुत समझाती भी थीं पर अब तो वे
किसी की भी नहीं सुनते। कर्ज छोटा भाई करता है और भरना उनको पड़ता है। बड़े घर की बड़ी
इज्जत का सवाल जो ठहरा।
बड़े भाई की पत्नी भी सरकारी नौकरी में है इससे छोटे भाई का परिवार और भी ईर्ष्या किया
करता है। कई बार छोटे की पत्नी ने उस वक्त सीढ़ियों पर तेल बिखरा दिया जब उनका काम से
लौटने का समय होता परन्तु हर बार वह बच गई। देवरानी साहिबा के नीयत में खोट तो इस कदर थी की दो साल पहले जब मां की तबियत ज्यादा ही खराब हो गयी तब ऊपर से बड़े के परिवार को बुलाया गया। सारे लोग मां के पास
बैठे थे । उनकी अन्तिम सांसें चल रहीं थी।कोई उनके मुख में गंगाजल डाल रहा था कोई तुलसी
पत्ता। सभी मां को जाते हुए देखकर रो रहे थे । इसके बाद मां के प्राणपखेरू उड़ गये। फिर मां के
मृत काया को ड्राइंग रूम में लाया गया। तब तक लगभग सभी लोग एकत्रित हो गये थे। शाम हो गई थी तो अन्तिम संस्कार भी दूसरे दिन ही होना था। इसी बीच छोटी बहू उठी और मां के कमरे में जाकर अन्दर से दरवाजा बन्द कर लिया। उसने
जल्दी जल्दी सासू मां के आलमारी अटैची तथा अन्य चीजों की तलाशी ले डाली और जो भी गहने व पैसे थे पहले तो सभी को अपने कब्जे में लिया फिर ले जाकर अपने कमरे में आलमारी में रख आयी फिर बाहर ड्राइंग रूम में आयी। समझ तो सभी रहे थे परन्तु ऐसे मौके पर बोलता भी तो कौन? सुगम क्या सोचा है? कुछ व्यवस्था हुई?
पापा जी मैं इतने पैसे कहाँ से ले आऊं? आप तो देख ही रहे हैं की अभी बेटी की शादी की है मैंने। उसमें भी आप लोगों ने कुछ सहयोग नहीं किया था। बेटा भी अभी बेरोजगार ही है उसके बारे में भी तो हमें सोचना है। हां ठीक है पर तुम दोनों ही कमाते हो और विजय तो अकेला ही बिजनेस करता है और वह भी ठीक नहीं चल रहा है। पर इतने अधिक पैसे मैं कहाँ से ले आऊँ? ऐसा करो तुम ऊपर का आधा हिस्सा छोड़ दो। उसको बेचकर मैं छोटे के बिजनेस के लिए पैसों का इन्तजाम कर दूँगा।
सुगम जैन आश्चर्य में पड़े रह गये की पिता के मन में केवल छोटे बेटे से ही प्रेम था। उसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार थे।
नहीं पापा ऊपर का हिस्सा नहीं बिकेगा मैं किसी भी तरह आप को पांच लाख लाकर दे दूंगा लेकिन यह आखिरी बार होगा यह आप भी समझ
लीजिए।