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Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

समय प्रबंधन सीखें

समय प्रबंधन सीखें

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"साक्षात्कार हेतु हार्दिक शुभकामनाएं, सुबोध।एक अच्छी मेरिट के साथ तुम्हारा चयन हो।"-सुबोध का फोन उठाते ही मैंने उसे बधाई दी।


" धन्यवाद ,बधाई फलीभूत हो इसके तुम अपनी कार लेकर आ बस अड्डे पर आ जाओ।घर से निकल ने में आज मुझे थोड़ी सी देर हो गई और मेरी बस निकल गई है और अगली का इंतजार किया गया तो साक्षात्कार का समय निकल जाएगा।"-सुबोध ने एक ही सांस मेंथोड़ी अपनी समस्या और उसका समाधान प्रस्तुत कर दिया।


"भाई सुबोध, 'ये आज' और 'थोड़ी सी' वाली बात तेरे मामले में बड़ी अजीब है।तू तो आदिकाल से अधिकतर लेट लतीफ़ और अच्छा खासा लेट होता रहा है। चाहे बचपन से स्कूल जाना रहा हो,मूवी जाना हो,या कहीं किसी यात्रा पर जाना रहा हो।यह हम सब तेरे मित्र इन स्थितियों को संभालते रहे हैं।श्रीमान जी, मैं तो सोचता हूं कि तेरी शादी में भी तू खुद पहुंच ही पाएगा या हम लोगों को वहां भी कोई वैकल्पिक व्यवस्था करनी पड़ेगी।"-मैंने उसकी लेट लतीफी की आदत पर सदैव की भांति एक सिद्धयोगी की तरह प्रवचन दे डाला जिसका वह अभ्यस्त हो चुका है।


"भाई ये लेक्चर बंद करके जल्दी आ जा।तू परिस्थितियों को देखे बिना लेक्चर देने लग जाता है।"- सुबोध झल्लाते हुए बोला।


मैंने कहा-" आता हूं,थोड़ा धीरज धारण कर।मन शांत था।तेरा साक्षात्कार अच्छा होने के लिए मन की शांति परमावश्यक है।"


मेरा प्यारा मित्र , सुबोध कुशाग्रबुद्धि और कार्य करने में बड़ा ही निपुण है।अच्छा समय प्रबन्धन न कर पाना बचपन से उसकी कमजोरी रही है। उसकी इस कमजोरी के कारण हमारी मित्र मंडली के कई मित्रों को भी कई बार समस्याओं में फंसना पड़ा।इस समस्या के समाधान हेतु प्रायः हममें से कोई उसकी गति बढ़ाने के लिए पहुंच जाते हैं।संयोगवश आज ऐसा नहीं हो पाया। हम सबको जब किसी यात्रा पर जाना होता है तो एक दिन पूर्व उसकी पैकिंग करवा देते हैं।घर से निकालने के लिए कम से कम एक मित्र उसके घर पहुंच जाता है ।वह अपने माता-पिता की डांट-डपट के बीच ही समय से स्टेशन पहुंचने में सफल हो पाया है।बात करने में अगर व्यस्त हो जाए तो दीन-दुनिया ही भूल जाए। घर से सब्जी खरीदने के लिए निकले और किसी मित्र के साथ किसी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे पर बहस में उलझ जाए तो घर पर लाल बनाने का ही विकल्प बचे।


हम सबके बीच सुबोध जैसे प्रेरणा के जीते-जागते मुहम्मद तुगलक यत्र-तत्र-सर्वत्र पाए जाते हैं जो हमें यह सीख देते हैं कि प्रभु-प्रदत्त तीव्र मस्तिष्क ही पर्याप्त नहीं है। योजनाओं के नियोजन और कार्यान्वयन में सामान्य सामाजिक विवेक भी अति महत्त्वपूर्ण है।


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