सम्मान
सम्मान
कुएँ पर पानी भरती औरते , रोज़ की तरह हँसी -ठिठोली और बातें करने पास के ही पेड़ों के नीचे चबूतरे पर बैठी हुई थीं। तभी बिमला जी और उनकी बहू भी पानी भरने आ गए।
"माँजी आप वहां बैठो, तब तक मैं पानी भर लेती हूं।" कहकर बहू ने बिमला जी के हाथ की मटकी भी ले ली।
वह कुएं पर पानी भरने चली गई। बिमला जी भी सब औरतों के बीच आकर बातें करने लगीं।
"अरे वाह बिमला क्या जादू चला रखा है अपनी बहू पर ! कठपुतली की तरह तुम्हारे इशारों पर नाचती है।" हँसते हुए सावित्री जी बोल पड़ीं थीं।
जो खुद अक्सर अपनी बहू की बुराई सबसे करती फिरती थीं।
दामिनी जी भी कठपुतली वाली बात पर हंस रही थीं। जो अपनी बहुओं को छोटी छोटी बातों पर हर समय लताड़ने में ज़रा भी संकोच न करती थीं।
"हमने तो क्या क्या जुगाड़ लगाए तब भी बहुओं को अपने वश में ना कर पाए" जानकी जी की बातों में कुछ कुढ़न थी।
बिमला जी बोल पड़ीं " औरत कभी किसी के हाथ की कठपुतली नही होती , ना ही कोई उसे अपने इशारों पर नचा सकता है। बस उसको प्यार और इज़्ज़त देकर कोई भी उसका मन जीत सकता है, फिर तो वह अपना सर्वस्व लुटाने को तैयार हो जाती है।
अगर कोई उसके सम्मान पर वार करे तो सच बताऊ बहनों वह करोड़ों की सम्पत्ति को भी ठुकरा कर इज़्ज़त की सूखी रोटी और प्रेम के ठंडे पानी में भी गुज़ारा कर सकती है।
कहकर बिमला जी बहू के पास चली गईं। सभी औरतें दोनों सास-बहू को जाते देख रहीं थी। हँसी ठिठोली कहीं गायब हो गई थी।